Poets and-Poetry
हमन इश्क़ मस्ताना
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जीता वह मस्ती से बन अल्हड़
वह अक्सर दिखता घेरे नुक्कड़।
फ़क़ीरी अन्दाज़, ख़ालिस फक्कड़
बेधड़क सच कहता वह अक्खड़।
कब लकीर खींच दे सड़क पर
रोक दे लोगों को भड़क कर ।
रौब से अपनी बात कहता
विचार कविता सा बन बहता।
कभी चाँद उसे उदास करता
सूरज से नज़र मिला हँसता।
कब खामोशी में खो जाये
भीड़ में अजनबी हो जाये।
सुना है कहीं बाहर का है
पता चला ऊँचे घर का है ।
ज़ुबान से पढ़ा लिखा लगता
प्यार के नाम सोता जगता।
कुछ उसे पागल समझते हैं
जोगी दीवाना कहते हैं।
होता हर जोगी दीवाना
उसके खोने में सब पाना।
कोई कोई रूमी, कबीर
मिलती जिस को अलख जागीर।
इसी में हमन इश्क़ मस्ताना
उस चादर का ताना बाना।
–पवन सेठी
(भारतीय फिल्म्स और टेलीविजन में पिछले 36 वर्षों से कथा, पटकथा,संवाद लेखक. 7000 से अधिक एपिसोड प्रसारित.कृष्ण प्रज्ञा पत्रिका के प्रकाशक और संपादक. दो कविता संग्रह शीघ्र प्रकाशित.)
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‘मैं नारी हूं’
मैं दुर्गा शक्ति काली हूं,
लड़ने में रणचण्डी हूं।
संस्कार में सीता हूं,
तो ज्ञान में गीता हूं,
घर घर की लक्ष्मी प्यारी हूं,
भावों में सबसे न्यारी हूं।
मैं नारी हूं जी, नारी हूं।
हां! जी हां! मैं नारी हूं।
पुरुषों का जीवन संबल हूं,
रचना में सबसे सुंदर हूं।
त्यागी और व्रतधारी हूं,
फिर भी क्यों दुखियारी हूं।
ये अबला, और बेचारी है,
यह समझें दुनिया सारी है।
मैं नारी हूं जी, नारी हूं।
हां! जी हां! मैं नारी हूं।
बहुत हुआ अबला अबला,
मैं अबला नही सबला हूं।
मैं सहनशील, हूं धैर्यवती,
जो ईश्वर ने मुझको वक्शा है।
चुप रहकर सहने के कारण,
अबला का मुझको टैग मिला।
सावधान हे! जिम्मेदारो,
न समझो मुझे बेचारी हूं।
मैं नारी हूं जी, नारी हूं,
हां! जी हां! मैं नारी हूं।
युद्ध में लक्ष्मी बाई तो,
विज्ञान में कल्पना चावला हूं।
राजनीति में मूर्मू तो,
दौड़ में पी टी उषा हूं।
व्यापार में सुधा मूर्ति तो,
जीवन की भी पूर्ति हूं।
बच्चों की किलकारी हूं तो ,
मैं भी खुश रहने की अधिकारी हूं,
मैं नारी हूं जी, नारी हूं,
हां! जी हां मैं नारी हूं।
– भास्कर इलाहाबादी
( राम सजीवन भास्कर असिस्टेंट प्रोफेसर हिंदी कौशल्या भारत सिंह राजकीय महिला महाविद्यालय ढिंढुई पट्टी प्रतापगढ़)
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poets and poetry
सत्संग
राना जब सत्संग हो,भाग लीजिए आप।
कहो-सुनो चिंतन करो,छोड़ो अपनी छाप।।
चलते जब सत्संग हैं,लहराता शुचि ज्ञान।
राना जिसमें खोजता,जीवन की पहचान।।
राना कभी न छोड़ता,जब मिलता सत्संग।
लौटा करता गेह में,लेकर नई उमंग।।
दुर्जन खोजे घात को, सज्जन चाहे ज्ञान।
राना देखे साधु को,सदा जपे भगवान।।
दुर्जन भी सत्संग से,कभी रखे मत चाह।
राना टेड़ी चाल रख,उल्टी पकड़े राह।।
*एक हास्य दुमदार दोहा -*
धना कहे अब हो रहा, सखियों का सत्संग।
परिचर्चा का है विषय,
“सीखें पतिगण ढ़ंग”।।
मुख्य अतिथी है “राना”।
सभी अब मित्रो आना।।
–राजीव नामदेव “राना लिधौरी”,टीकमगढ़
संपादक “आकांक्षा” पत्रिका
संपादक- ‘अनुश्रुति’ त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
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