आज सुबह से यूँ ही मन उदास था .Sharda Sinha वेंटिलेटर पर थीं. पूर्वाह्न से ही उनके जाने की झूठी खबर से सोशल मीडिया भरा पड़ा था. सब अफवाहें थीं. परेशान होकर शारदा जी के सुपुत्र अंशुमान को एक वीडियो के माध्यम से बताना पड़ा कि वो अभी भी वेंटीलेटर पर हैं और इलाज चल रहा है . देर शाम अंशुमान को अपनी माँ पद्मभूषण शारदा सिन्हा के परलोक गमन की सूचना देनी पड़ी! काश एक बार फिर कोई बताए कि ये भी अफवाह है !
शारदा जी के साथ हुई सारी मुलाकातें,भेंट आज याद आ रही हैं. कैसे मेरे आकाशवाणी, दरभंगा के कार्यकाल के दौरान लोकगीत की रिकॉर्डिंग के लिए आया करती थीं, कैसे उन्होंने बी ग्रेड से बी हाई ग्रेड के लिये ऑडिशन दिया. बहुत लंबा समय गुज़र गया. लगभग चालीस वर्ष. Sharda Sinha की खास आवाज़ की पहचान बिहार से देशभर ,मॉरीशस और अन्य उन सभी देशों में पहुंची जहां भी प्रवासी भारतीय स्थायी रूप से बस गए हैं चाहे फिजी हो, मॉरीशस हो,गुयाना हो, ऑस्ट्रेलिया जो ,इंग्लैंड हो, कनाडा हो या वेस्ट इंडीज जैसे देश हों शारदा जी की गायकी और उनकी”हस्की वॉइस” सीधे लोगों के दिल के तार छेड़ देती है.
कई हिंदी और क्षेत्रीय फिल्मों में उनका पार्श्व गायन शामिल किया गया था. दर्जनों देशों की यात्राएं कीं और बीसीयों अन्य पुरस्कारों व सम्मानों के अतिरिक्त पद्मश्री और पद्मभूषण से भी अलंकृत हुईं! एक अविस्मरणीय दिन याद करना चाहूंगा यहां.संभवतः 1999 की बात रही होगी. दूरदर्शन पटना के बड़ा कार्यक्रम था .नृत्य कला मंदिर के मुक्ताकाश में कार्यक्रम का आयोजन किया गया था .मुख्य अतिथि थीं तत्कालीन सूचना और प्रसारण मंत्री सुषमा स्वराज जी .कई सप्ताह से संगीत कार्यक्रम की विशेष तैयारी की गई थी.
दूरदर्शन के राष्ट्रीय चैनल पर जीवंत प्रसारण होना था डेढ़ घंटे का. बिहार के प्रसिद्ध गायक पंडित श्यामदास मिश्र और श्रीमती Sharda Sinha भी आमंत्रित थीं. सारे लोग बैठ चुके थे. कार्यक्रम प्रारंभ ही होने वाला था तब तक भनक मिली कि राजमाता विजया राजे सिंधिया का निधन हो गया है, कार्यक्रम स्थगित हो जाने की आशंका बढ़ गयी. मैं लगभग दौड़ कर बैक स्टेज गया और शारदा जी एवं श्यामदास जी को परिस्थिति बताई. मैंने आग्रह किया शारदा जी से “की कबीर भजन आ निर्गुण गाबि देबै आई शारदा जी?”उन्होंने आश्वस्त किया ‘हां किएक नैं’ ! श्यामदास जी ने याद दिलाया कि कैसे मैंने पूर्व में भी कबीर के भजन की उनकी रिकॉर्डिंग की थी.
मैं आश्वस्त होकर अतिथियों के टेंट में आया तो वरिष्ठ नेत्री प्रो. किरण घई को अपनी ओर आते देखा. पास आकर उन्होंने कहा ‘प्रमोद जी, कार्यक्रम स्थगित करवा दीजिये!राजमाता का निधन हो गया है.’ मैंने किरण जी से कहा’ किरण जी कबीर भजन और निर्गुण तो गया जा सकता है?’ थोड़ी सोच कर किरण जी बोलीं कि ‘ हाँ ये तो हो सकता है!पर आप एक मिनट मेरे साथ आइए न सुषमा जी को बता दीजिए’.मैं साथ हो लिया. किरण जी ने मेरा परिचय देकर सुषमा जी को ये बात बताई और मुझे एक्सप्लेन करने को कहा . यथोचितअभिवादन के बाद मैंने श्रीमती सुषमा स्वराज जी से कहा कि ‘ मैडम कबीर भजन और निर्गुण का कार्यक्रम तो हो सकता है न .ये तो सामयिक भी होगा ?’
उन्होंने पूछा ” हो जाएगा ?” मैंने उन्हें आश्वस्त किया कि मैंने कलाकारों से बात कर ली है. उन्होंने सरलता से कहा “फिर ठीक है ,वैसा ही करवा दीजिये!” संचालक महोदय को यथोचित निर्देश देकर कार्यक्रम प्रारंभ करने को कहा. दूरदर्शन पर समय से अधिक तीन घंटे तक कार्यक्रम का जीवंत प्रसारण हुआ. विभोर होकर श्रीमती सुषमा स्वराज कबीर भजन और निर्गुण सुनती रहीं. हज़ारों की भीड़ शांत होकर शारदा जी और श्यामदास जी के गंभीर भजनों और निर्गुण को सुनते रहे. अंतिम समय में ऐसे कार्यक्रम प्रस्तुत करना कोई आसान बात नहीं है ! तो ऐसी थीं शारदा सिन्हा जी !उन्हें याद कर आज करोड़ों लोग उदास हैं.

(प्रमोद कुमार झा तीन दशक से अधिक समय तक आकाशवाणी और दूरदर्शन के वरिष्ठ पदों पर कार्यरत रहे. एक चर्चित अनुवादक और हिन्दी, अंग्रेजी, मैथिली के लेखक, आलोचक और कला-संस्कृति-साहित्य पर स्तंभकार हैं।)
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