किताब का हिसाब: पढ़ें अशोक प्रियदर्शी की “हाशिये पर व्यंग्य कविताएं”

पेशे से हिंदी के प्राध्यापक डॉ.अशोक प्रियदर्शी एक स्थापित लेखक,कवि, व्यंग्यकार और नाटककार रहे हैं .

Written By : प्रमोद कुमार झा | Updated on: November 13, 2024 8:09 pm

Book review : पचासी से अधिक उम्र होने पर भी अशोक प्रियदर्शी जी निरंतर लिख रहे हैं और क्रियाशील हैं.इन्होंने दर्जनों कहानियां लिखी हैं, कई संग्रह भी प्रकाशित हैं.हिंदी की सबसे लोकप्रिय पत्रिका धर्मयुग के प्रियदर्शी जी नियमित लेखक, स्तंभकार रहे हैं .

इनकी आलोचना की पुस्तक “कामायनी पढ़ते हुए”भी चर्चित रही है . “हाशिये पर व्यंग्य कविताएं” अशोक प्रियदर्शी जी की चुनी हुई व्यंग्य कविताओं का संग्रह है. सत्तर पृष्ठों के इस संग्रह में इक्यावन कविताएं हैं .इस संग्रह की सभी कविताएं मीठी चुभन देती है .मानवीय कामज़ोरियों पर कटाक्ष प्रियदर्शी जी की कविताओं की विशेषता रही है. अशोक प्रियदर्शी जी अपनी कविताओं में फूहड़ता से पूर्ण परहेज़ करते हैं.

पूरे संग्रह को पढ़ने पर आपको अनुभव होता है कि सारी कमी-कमजोरी -दोष मनुष्य के स्वभाव में है . अशोक प्रियदर्शी जी ‘एक ज़रा सी भूमिका में लिखते हैं: मैं उन दिनों जिस कस्बे में था वहां के नए नवेले साहब अपनी पत्नी पर हाथ उठा रहे थे।

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सूर के एक पद की पैरोडी करते हुए मैंने लिखा था- “मोहिं छुवौ जनि, दूर रहौ जू/ताश खेल जहं सांझ सांझ गवाई, वाही शरण गहौ जू/तुम तो नित्य क्लबनि में घूमौ, मैं बैठूं घर माहीं/चरण पूजि आरति उतारूं, मैं वह वाइफ नाहीं/ मानिनि मसान तजहु,हौं सब तैं सीधे ही घर-/अइहौं/सुपर बाजार साथ ले जइहों,साड़ी हू दिलवइहौं।” प्रियदर्शी जी की एक कविता देखिये: ‘रात भर/रेल का सफर !/मैं सो गया,/(जो सोवत है सो खोवत है)/ मेरा सारा सामान खो गया-/मेरे कपड़े,मेरे उपाधि-पत्र/मेरा ट्रांजिस्टर लेकर/ कोई चोर किसी स्टेशन पर गुम हो गया/ अपने सामानों की याद में/मैं हर पल घुटता हूँ,/पर जब-जब रेडियो पर होती है/मेरी रचनाएँ प्रसारित,/मैं खुश हो उठता हूँ।/मेरे ही ट्रांजिस्टर पर/मेरी ही रचनाएँ सुनकर/निश्चय ही चोर बन्धु को/यंत्रणा होती होगी, कि हाय ,मैंने क्या किया!/ यह तो कोई दरिद्र कवि था/जिसे उसके सामानों से मैंने वंचित कर दिया!’ (-“चोर और कवि” ,पृष्ठ 11)

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पृष्ठ 46 पर प्रियदर्शी जी की एक और छोटी कविता देखिये: “कवि के गीतों को सराहती ‘मिस’जी ने कहा-/’छीना है उनने मेरा जिया ही समझिये।/चाय अभी लाती हूँ-कह कर चली वो तो,/बोले कवि-‘ना ना, मुझे पिया ही समझिए!” (-नम्रता-प्रतिनमृता, पृष्ठ 46) सारी कविताएं पढ़ते हुए आप के पेट में गुदगुदी होती रहेगी और आप के चेहरे पर मुस्कुराहट बनी रहेगी !एक दो दर्जन और कविताओं का समावेश संग्रह में किया जा सकता था. संग्रह आप के किताबों के रैक को अवश्य ही विविधता प्रदान करेगा.

पुस्तक: हाशिये पर व्यंग्य कविताएं, कवि:अशोक प्रियदर्शी, पृष्ठ -70,

प्रकाशक:  नोशन प्रेस, मूल्य-रु.149

(प्रमोद कुमार झा तीन दशक से अधिक समय तक आकाशवाणी और दूरदर्शन के वरिष्ठ पदों पर कार्यरत रहे. एक चर्चित अनुवादक और हिन्दी, अंग्रेजी, मैथिली के लेखक, आलोचक और कला-संस्कृति-साहित्य पर स्तंभकार हैं।)

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