कविता -1
लम्हे
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लम्हों के शहर, से रहा था गुज़र।
सारे लम्हे,मिल गए वहीं।
जहां छोड़ा था,वहीं गये वो टकर।
शायद थोड़े से,थे गये बिखर।
बचपन से लेके,जवानी तक।
जवानी से, बुढ़ापे तक का सफर।
रक्खे थे सलीके से संजोकर,
दिल औ दिमाग़ के तहखानों में।
कोई भी लम्हा छूटा नहीं,
जो छूटा, मिला मैखानों में।
पल पल की यादें ताज़ा हुईं।
गुदगुद ,कुछ आंखें नम कर गईं।
दादा, दादी, मम्मी, पापा।
ताऊ, चाचा, छोटी आपा।
दो गुत वाली,वो मतवाली।
तीखी आंखें, पर थी काली।
हिस्ट्री टीचर, दारू पीकर।
इतिहास के फ़टे हुए पन्ने सीकर।
हां रौब जमाता था वो हम पर।
अद्भुत ही था, चालू स्पीकर।
ऊबड़, खाबड़, मन मुस्काकर।
धुंधली यादें, कुछ चमकाकर।
लम्हा, लम्हा, मिल बना सफर।
सुंदर, अनुपम, जीवन की डगर।
कुछ यादों में, कुछ वादों में।
कुछ धक्कमधक्की, बातों में।
जीवन बीता, दिन, रातों में।
मुलाक़ातों में, कुछ वादों में।
कुछ बीत गया, कुछ बीतेगा।
जीवन ससुरा, तो जी लेगा।
मदमस्त रहो, जीवन को जियो।
लम्हों, लम्हों में ही बंधू, जीवन को सियो।
जीवन को सियो, हर लम्हा जिओ।
हर लम्हा जिओ, जीवन को जियो।
लम्हों से लिपटी कुछ यादें।
गीली, सूखी कुछ बरसातें।
आंखों के कोनों पे टिके आंसू।
जीवन के पल छिन थे धांसू।
सीढ़ी, सीढ़ी, और डगर डगर।
खट्टा, मीठा लम्हों का शहर।

–सुभाष सहगल
( सुभाष सहगल का नाम मुख्य रूप से भारतीय फिल्म उद्योग से जुड़ा है। कई फिल्मों के लिए काम करने के अलावा इनकी कविताओं की
अब तक 22 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं ।)
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कविता -2
गाँव का परिवेश
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धूल भरे रस्ते बेरी के झाड़
खेतों में कृषक तोड़ रहे हाड़
पेड़ों पर कोयलिया गा रही राग
उगल रहा सूरज धरती पर आग
खाने की पोटली पीने को पानी
रमुआ और किसना करें शैतानी
चुपके से बकरी खा गयी भात
किसना ने मारी खींच के लात
छप्पर के घर हैं मिट्टी के मटके
सींके को बिल्ली देती है झटके
आँगन में माई बिलोती है छाछ
बकरी के बच्चे भरते कुलांच
कपड़ों से है भरी अलगनी
न हैं किवाड़ न हैं चटखनी
भौजी ने चूल्हे पर दाल चढ़ाई
बथुये के संग जल गयी कड़ाही
काढ़े ननदिया आँगन में बाल
कंघी से जूँ भी रही है निकाल
गुड़ के लड्डू और आटे का हलुआ
आकर आज खा गया कलुआ
गइया के संग खड़ा है छौना
रो रही मुनिया भीगा है बिछौना
नाचकर ललुआ मटकाये कूल्हा
गया था बारात में देखने दूल्हा
बप्पा का खटिया पर बुरा है हाल
खाँसी बन गयी जी का जंजाल
बरसों से दमे ने दम जो लगाया
जर्जर हो गयी है बुढ़ऊ की काया
चिलम और बीड़ी हुई दूर
अब सिगरट की लत करे मजबूर।
( -शन्नो अग्रवाल आस्ट्रेलिया में रहती हैं )
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कविता -3
निमोनिया
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जान बूझकर लापरवाही, है जी के जंजाल का कारण,
सजग हमें रहना पहले से,करवाने को कष्ट निवारण।
संक्रमण है गले से होकर, पहुँच फेफड़ो तक है जाता,
पहले करा लिया इलाजतो, प्रचण्ड रूप न धरताधारण ।।1
कफ ही एक समस्या होती,सूखी या बलगम वाली भी,
लगे तेज बुखार का आना, जो था पहले सामान्य ही।
साँस फूलने भी लग जाती, भले कर रहे आराम आप,
सीटी सी आवाजें आतीं, श्वसन रुकावट कारण भी।।2
सीने दर्द शिकायत हो तो, लक्षण गम्भीर भी मिल जाते,
तब मरीज समझ पाता, क्यों रहे अभी तक इठलाते।
गरकम वजन सामान्य से व,नवजात होय कम दिनों का ,
तो सम्भव है सब समझदार, दोषी निमोनिया ठहराते।।3
निमोनियाँ के प्रति डरना भी,हमको वाजिब लगता है,
क्योंकि सालों से बच्चों को ,वही काल कवलित करता है।
नीतियाँ हमारीं रूढ़िवादी, व हीलाहवाली करना हैं,
बच्चों को दिखलाते तब जब,वह अन्तिम साँसें लेता है।।4
निमोनियाँ का कारण होता,बैक्टीरियल संक्रमण,
जो खाँसी,छींक थूक की, बूँदों से करता आक्रमण ।
असर अधिक बच्चों पर होता, लेकिन कोई नहीं अछूता,
कमजोरों के शरीर पर वह, करता आसानी से भ्रमण।।5
आरम्भ से ही तेज बुखार, जाड़े देकर ही लगता है,
भूख कम,शरीर दर्द, उल्टी का भी डर सबको लगता है।
सीने,कंधे,पेट दर्द की भी, काफी आतीं हैं शिकायतें,
एक एक घण्टा पूरे दिन, के जैसा हमको लगता है।।6
साँस की गति के बढ़ने को, पसली का चलना कहते है,
नाड़ी की गति के बढ़ने को, मरीज ही काफी सहते हैं।
बलगम भी चिपचिपा व हलके, लाल रंग का भी हो सकता,
सूखती त्वचा दिख जाती है, बच्चे भी झटके सहते हैं।।7
अगर किसी कोयले से दमा , सिस्टिक फाइब्रोसिस होवे,
और कमजोर इम्यूनिटी या वातावरण प्रदूषित होवे।
तब भी देखा गया है अक्सर, निमोनियाँ का प्रबल प्रकोप,
रिस्क फैक्टर, चिकित्सा इतिहास, तक की कहते जाँचें होवें।।8
एक्सरे में रोग के लक्षण, भी दिखलाई दे जाते हैं,
तुरन्त शुरू नहीं किया इलाज, तो तकलीफों में फँस जाते हैं।
इसके लिए देंय रोगी को,घर में ही अब गुनगुना पानी,
सतर्क परिवार से गर्म पेय,करोगी चुस्कियां पाते हैं।।9
इसे फैलाने वाले वायरस:–
स्ट्रैप्टो कोकल न्यूमेंनियाई
स्टैफाइलोकोकल ”
क्लैबसिला ”
माईक्रोप्लाज्मा ”

– डा. सुभाष चन्द्र गुरुदेव, हमीरपुर, लखनऊ
(पेशे से चिकित्सक रहे डा. सुभाष चन्द्र गुरुदेव की कविताओं की अब तक 7 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकीं हैं जिनमें चार चिकित्सा विज्ञान पर हैं.
इन्हें स्वास्थ्य से जुड़ी कविताओं के लिए कई पुरस्कार मिल चुके हैं। )
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कविता -4
आस का दामन
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आस का दामन , मत छोड़ो ।
वक्त की तरह, तुम भी दौड़ो ।
जो टूट गया, फिर से जोड़ो ।
यदि आस ,तुम्हारी टूट गई ।
समझो कि ज़िन्दगी रूठ गई ।
ख़ुद पर तुम, पूरी आस रखो ।
सब पाओगे , विश्वास रखो ।
होगा पूरा, हर एक सपना ।
बस अपने ,पर यकीं रखना ।
पार करनी , होंगी खाईयां ।
फिर ,छू लोगे ऊंचाईयां ।
मुश्किल में, ज़रा ना घबराना ।
बस बिना ,रुके बढ़ते जाना ।
मन में ना ,रखना कोई शंका ।
बज जाएगा, एक दिन डंका ।
निश्चय ही, ऐसा पाओगे ।
दुनिया में ,नाम कमांओगे ।
आस का ,दामन मत छोड़ो ।
जो पाना है ,पाकर छोड़ो ।

– प्रगति दत्त, अलीगढ़
( प्रगति दत्त की दो पुस्तकें प्रकाशित हैं और कई पत्र-पत्रिकाओं में इनकी रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं।)
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