कवि और कविता: पढ़ें- डॉ.सत्यवान ‘सौरभ’, डॉ. राजेश श्रीवास्तव और अन्य की कविताएं

कवि और कविता के इस साप्ताहिक कॉलम में पेश हैं डॉ.सत्यवान 'सौरभ', डॉ राजेश श्रीवास्तव, शन्नो अग्रवाल और अन्य कवियों की कविताएं।

Written By : रामनाथ राजेश | Updated on: November 23, 2024 9:08 pm

कवि और कविता

 हरसिंगार

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ओ हरसिंगार
खिलो बार-बार
तेरे फूल हमें लुभायें।

श्वेत और नारंगी रंग
जब तुझ पर छा जाता
पंछी आकर नितदिन
तुझको नये गान सुनायें।

जब बहती बयार
तो झरें बार-बार
और धरती पर
बिछ जायें।

बिखरे हुये इन
फूलों को बच्चे
झोली में भरकर
अपने घर ले जायें।

उनकी माला गूँथ
पहनते स्वयं
या फिर अपनी
गुड़ियों को पहनायें।

सुरभित फूलों से
अपने केश सजाने
इंद्रलोक से धरती पर
आतीं अप्सरायें।

फूल सुकोमल तेरे
सबके मन को भाते
ईश्वर के चरणों में भी
लोग इन्हें चढ़ायें।

जब-जब आये बहार
खिलें हरसिंगार
फूलों से सारे
उपवन भर जायें।

सूरज की किरणें
चूमें पंखुड़ियां
तितली, भंवरे
तुझपर मंडरायें।

ओ हरसिंगार
खिलो बार-बार
तेरे फूल हमें लुभायें।

                               -शन्नो अग्रवाल

(आस्ट्रेलिया में रहती हैं। दो काव्य संग्रह ‘रोशनदान’ और ‘ओस’ नाम से प्रकाशित । दो और प्रकाशन की प्रतीक्षा में )

 

गांव मेरे भीतर
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पुलिसचौकी के सामने
झुंड बनाकर बैठे हैं
आवारा मवेशी

बैलगाड़ी, ट्रैक्टर ट्राली
उड़ाती है धूल
कच्ची सड़क पर

घास का गट्ठर लादे
घूंघट काढ़े
औरतें कतारबद्ध जा रही हैं

हैंड पम्प चलाती बच्ची
पानी पीती बछिया
पास में जुगाली कर रही है गाय

खेत के बीच पेड़ के नीचे
खटिया प्रतीक्षा कर रही है
किसान की

खपरैल पुराना मकान
आंगन गोबर से पुता
तुलसी का गमला बीचों-बीच

एक गांव उतर रहा है
धीरे-धीरे
मेरे भीतर

                           -डॉ राजेश श्रीवास्तव, भोपाल

 

इश्क़ में बस ये हाल होता है
सिर्फ़ उनका ख़याल होता है

क्या करूँ ए ख़ुदा!बता मुझको
हर समय क्यूँ मलाल होता है

जो पराया कहूँ तो होंगे खफ़ा
अपना कह दूँ बवाल होता है

कोई कैसे ज़वाब दे , उनका
टेढ़ा – मेढ़ा सवाल होता है

जो फँसे तो निकल नहीं सकते
इश्क़ ऐसा ही जाल होता है
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                                     –    कपिल कुमार, बेल्जियम 
( अभिनेता, लेखक और पत्रकार, 30 वर्षों से यूरोप में )


कवि और कविताएं

सहचरी 

नव किसलय सी सहचरी, जस सावन मनुहार।
लचक तरंगित पन्नगी, सोह रही रतनार।।

किंशुक प्रीत सुभोर मय, मलय सुगन्ध वतास।
तरुण तनज मद कामना, चितवन वणिक प्रवास।।
तन्वंगी तरुणी मुकुल, प्रीत प्रणय उर केलि।
अकुलाती निर कामना, जस आतुर तरु बेलि।।
अंग-अंग चंचल अथिर, ज्यों नग नद सी धार।
नव किसलय सी सहचरी, जस सावन मनुहार।
लचक तरंगित पन्नगी, सोह रही रतनार।१।

अठखेली चितचोर सी, प्रेमल परिमल हास।
तन मराल सम मणिक मन, अंकहार मधुमास।।
मंथर मधुरिम मंद पग, नूपुर ध्वनित मलंग।
चितवन चित अभिसार मय, लवण-लवण हर अंग।।
श्रृंगारित नख-शिख मृगी, चपल सुवेग अपार।
नव किसलय सी सहचरी, जस सावन मनुहार।
लचक तरंगित पन्नगी, सोह रही रतनार।२।

अधराधर मधु अम्बुमय, कर्पूरी तन क्षीर।
रक्तिम नवल पलाश सम, सलज कपोल अधीर।।
मन मयूर कटि मीन सम, कज्जल नयन सुसज्ज।
बंकिम दीठ लुभावनी, लज्जावरण निमज्ज।।
देहयष्टि कुसुमाकरी, रति षोडस श्रृंगार।
नव किसलय सी सहचरी, जस सावन मनुहार।
लचक तरंगित पन्नगी, सोह रही रतनार।३।

आलोड़ित उर कम्प पा, सम्मुख सुमुखि सुनार।
भाव व्यंजना राग सुर, अवगुण्ठित लाचार।।
मुदित मूर्च्छना मोहमय, तप्त अनुरती श्वास।
हतप्रभ जड़वत मूढ़वत, स्वयमेवी उपहास।।
अंक अधर गलहार गत, संभावित उपचार।
नव किसलय सी सहचरी, जस सावन मनुहार।
लचक तरंगित पन्नगी, सोह रही रतनार।४।

 – विनय विक्रम सिंह

कवि और कविता

दोहरे सत्य

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कहाँ सत्य का पक्ष अब, है कैसा प्रतिपक्ष।
जब मतलब हो हाँकता, बनकर ‘सौरभ’ अक्ष॥

बदला-बदला वक़्त है, बदले-बदले कथ्य।
दूर हुए इंसान से, सत्य भरे सब तथ्य॥
क्या पाया, क्या खो दिया, भूल रे सत्यवान।
किस्मत के इस केस में, चलते नहीं बयान॥

रखना पड़ता है बहुत, सीमित, सधा बयान।
लड़ना सत्य ‘सौरभ’ से, समझो मत आसान॥
कर दी हमने जिंदगी, इस माटी के नाम।
रखना ये संभालकर, सत्य तुम्हारा काम॥

काम निकलते हों जहाँ, रहो उसी के संग।
सत्य यही बस सत्य है, यही आज के ढंग॥
चुप था तो सब साथ थे, न थे कोई सवाल।
एक सत्य बस जो कहा, मचने लगा बवाल॥

‘सौरभ’ कड़वे सत्य से, गए हज़ारों रूठ।
सीख रहा हूँ बोलना, अब मैं मीठा झूठ॥
तुमको सत्य सिखा रही, आज वक़्त की मात।
हम पानी के बुलबुले, पल भर की औक़ात॥

जैसे ही मैंने कहे, सत्य भरे दो बोल।
झपटे झूठे भेड़िये, मुझ पर बाहें खोल॥
कहा सत्य ने झूठ से, खुलकर बारम्बार।
मुखौटे किसी और के, रहते है दिन चार॥

मन में कांटे है भरे, होंठों पर मुस्कान।
दोहरे सत्य जी रहे, ये कैसे इंसान॥
सच बोलकर पी रहा, ज़हर आज सुकरात।
कौन कहे है सत्य के, बदल गए हालात॥

  —डॉo सत्यवान ‘सौरभ’
(बड़वा (सिवानी) भिवानी, हरियाणा निवासी। पुस्तकें “यादें”, “तितली है खामोश”, “कुदरत की पीर”, और “इश्यूज एंड पेन्स” जैसे काव्य और निबंध संग्रह हैं।)

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One thought on “कवि और कविता: पढ़ें- डॉ.सत्यवान ‘सौरभ’, डॉ. राजेश श्रीवास्तव और अन्य की कविताएं

  1. सही कहा सौरभ जी, सत्य के प्रतिमान बदले हैं। लेकिन शायद सत्य पहले भी प्रश्नों में रहा होगा। अन्यथा सत्य बोलने के लिए श्लोक सूक्तियां नहीं लिखी गई होतीं। ये भी नहीं कहा गया होता कि, अप्रियस्य पठ्यस्य वक्ता श्रोता च दुर्लभं।
    अच्छी रचना के लिए हार्दिक साधुवाद।
    #शैली

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