त्रेता युग में ताड़का वध के दोष से मुक्ति के लिए विश्वामित्र मुनि प्रभु श्रीराम और लखन को पांच प्रमुख पवित्र स्थानों पर लेकर गये थे। इन पांचों धार्मिक स्थानों की दूरी पांच कोस है इसलिए इस परिक्रमा का नाम पंचकोसी पड़ा। इन पांच स्थानों पर प्रभु श्रीराम को स्थानीय नागरिकों ने लिट्टी-चोखा भोजन परोसा वही अब प्रसाद के रूप में भक्त ग्रहण करते हैं।
अगहन माह में कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि को बक्सर के चरित्रवन में लिट्टी-चोखा खाकर प्रभु ने इस परिक्रमा का समापन किया था। तब से इस दिन लिट्टी चोखा प्रसाद के रूप में भक्त ग्रहण करते हैं।
बक्सर में भक्तों का रेला
बक्सर में आज भक्तों की भीड़ ऐसी उमड़ी की विधि व्यवस्था चरमरा गयी। प्रशासन को एडवाइजरी जारी करनी पड़ी। कहीं भजन, कहीं मानस पाठ तो कहीं गीत- नृत्य के आयोजन से पूरा माहौल उत्सवी बन गया था। वाहनों के दबाव से दिन भर बक्सर में जाम की स्थिति बनी रही। लिट्टी लगाने के लिए जगह की “लूटपाट” भी होती रही। आत्मीयता आलम यह कि हर भक्त एक दूसरे को अपनी लिट्टी का स्वाद चखने के लिए आग्रह करते रहे। धुंआ का गुब्बार शाम से उठना शुरू हुआ तो देर रात तक जारी रहा। भीड़ को संभालने में ठंड में भी प्रशासन को पसीना आ गया।
हर घर में फैली लिट्टी और शुद्ध घी की खुशबू
जो लोग बक्सर नहीं जा पाये घर में ही लिट्टी चोखा का प्रसाद ग्रहण किए। हर घर से लिट्टी और चोखा की खुशबू आ रही थी। एक दूसरे को लोग शाम से ही आमंत्रित कर रहे थे। शाम ढलते ही गांव के हर घर में अहड़ा ( लिट्टी बनाने का अलाव ) सुलग उठा. आटा गूंथने और सत्तू का मसाला बनाने का काम महिलाओं के जिम्मे था जबकि अहड़ा पर लिट्टी सेंकने का काम पुरुषों के जिम्मे था.
युवाओं ने किया सामूहिक आयोजन
इसके अलावा गांवों में कई जगहों पर सामूहिक रूप से भी लोगों ने लिट्टी चोखा भोज का आयोजन किया. इसमें अधिकांश युवा वर्ग की टोलियां थीं।
बाजारों में लगी भीड़, भाव में तेजी
सुबह से ही बाजारों की रौनक बढ़ गयी थी। बैंगन, टमाटर, आलू , प्याज, हरा लहसुन, अदरक के भाव में तेजी आ गई थी। गोल बैंगन तीस रुपए से बढ़कर 40-50 रुपए तक जा पहुंचा। देसी टमाटर 50 से बढ़कर 70 रुपए तक बिका। शाम में देसी टमाटर की किल्लत भी देखी गई। मिर्च, धनिया पत्ता आदि के भाव भी तेज थे। हालांकि भारी बिक्री के बावजूद सत्तू का भाव यथावत था। दूसरी ओर गोइंठा (कंडा) का भाव बक्सर में ड्योढ़ा पर जा पहुंचा।
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A good and vivid report. I have seen this at charitravan once long back. Felt nostalgic.Thanks for the report and describing the religious importance of this occasion.