हमारे संगीत परम्परा की जननी हवेली संगीत है- रणछोड़लालजी गोस्वामी

हवेली संगीत पर संगोष्ठी के साथ संस्थान इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) के 38वें स्थापना दिवस का शुभारम्भ हुआ। यह उत्सव 17 मार्च से 19 मार्च तक चलेगा। इस तीन दिवसीय कार्यक्रम में भारतीय कला, संस्कृति, संगीत और नृत्य की समृद्ध परंपराओं की प्रस्तुति होगी। उद्घाटन कर्यक्रम में मुख्य अतिथि थे आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी। संगोष्ठी का संचालन प्रसिद्ध संगीतशास्त्री एवं हवेली संगीत के विशेषज्ञ आचार्य श्री रणछोड़लालजी गोस्वामी ने किया।

Written By : डेस्क | Updated on: March 17, 2025 10:51 pm

इस अवसर पर सेंटर फॉर कल्चरल स्टडी एंड डेवलपमेंट (सीसीएसडी) की संस्थापक सदस्य सचिव पॉलोमी गुहा और सीसीएसडी के प्रोजेक्ट एडवाइजर जी.एन. बालाजी और आईजीएनसीए के कलादर्शन विभाग की अध्यक्ष प्रो. ऋचा कम्बोज सहित अन्य विभागाध्यक्ष भी उपस्थित रहे। मुख्य अतिथि के रूप में  डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने कहा कि आईजीएनसीए कला के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए निरंतर काम कर रहा है। उन्होंने कहा कि भारत में संगीत सिर्फ मनोरंजन का माध्यम नहीं है, बल्कि ईश्वर से जुड़ने का माध्यम है। उन्होंने कहा कि हवेली संगीत यानि पुष्टिमार्गीय कीर्तन परंपरा भारतीय शास्त्रीय संगीत की परंपरा में महत्त्वपूर्ण विधा है।

आचार्य श्री रणछोड़लालजी गोस्वामी ने कहा कि करीब 500 वर्ष पूर्व वल्लभाचार्य जी द्वारा भगवान श्रीनाथजी की सेवा में कीर्तन के रूप में हमारे मंदिरों में संगीत को सुरक्षित करने का महत्त्वपूर्ण काम हुआ, जिसमें भगवान की सेवा में विविध राग-तालबद्ध प्रबंध और ध्रुपद धमार गाये जाते हैं। ऋतु चक्र और समय चक्र के आधार पर यह सब क्रम निश्चित है। नारद ऋषि, भरत मुनि और विल्वमंगल जैसे महान शास्त्रकार इस परंपरा का मूल स्रोत रहे हैं। यह परंपरा आज भी अक्षुण्ण है। हवेली संगीत की कई रचनाएं आज ध्रुपद, धमार व ख्याल की शास्त्रीय संगीत परंपरा में गाई जाती हैं।

आचार्य श्री रणछोड़लालजी गोस्वामी ने कहा कि कीर्तन का अर्थ होता है कृति का गान करना। उन्होंने गायन और व्याख्यान के माध्यम से हवेली संगीत के बारे में विस्तार से बताया। पहले उन्होंने प्रबंध के बारे में बताते हुए प्रस्तुति दी, फिर ध्रुपद और धमार के बारे में बताते हुए दो प्रस्तुतियां दीं। उन्होंने आश्रय पद के गायन से कार्यक्रम का समापन किया। उन्होंने कहा कि होरी दो प्रकार की होती है- कच्ची होरी और पक्की होरी। कच्ची होरी उपशास्त्रीय और लोकगायन है, जबकि पक्की होरी धमार में गाई जाती है। उन्होंने कहा कि हमारे संगीत परम्परा की जननी हवेली संगीत है। हवेली संगीत भारत की प्राचीनतम कीर्तन परंपराओं को सहेजे हुए अति दुर्लभ स्वरूप रखती है।

18 मार्च को सायं 6:00 बजे भारतीय समकालीन नृत्य के कार्यक्रम ‘आदि अनंत’ के तहत अन्वेषण समूह द्वारा कलारिपयट्टु और छऊ नृत्य की प्रस्तुति होगी, जिसका डिजाइन, निर्देशन और कोरियोग्राफी संगीता शर्मा की है। इसी दिन सायं 7:00 बजे रोनकिनी गुप्ता हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायन की प्रस्तुति देंगी।

19 मार्च को सायं 6:00 बजे पद्मश्री बेगम बतूल लोक संगीत प्रस्तुत करेंगी और सायं 7:00 बजे सुभाष देवराड़ी व उनके समूह द्वारा वीर नृत्य और उत्तराखंड के अन्य लोक नृत्यों की प्रस्तुति दी जाएगी।

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