मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की बेंच ने सुनवाई के दौरान कहा कि दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण एक “सिस्टम-फेलियर” का मामला है। बेंच ने सवाल उठाया कि GRAP (ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान) के बावजूद निर्माण गतिविधियों पर प्रतिबंध, पानी का छिड़काव, धूल-नियंत्रण और वाहनों की जांच जैसे उपाय कितनी प्रभावी तरीके से लागू हुए।
“पराली को लेकर राजनीति न हो, किसानों पर पूरा भार डालना गलत”
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट टिप्पणी की कि पराली जलाने को लेकर माहौल को राजनीतिक रंग नहीं दिया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि किसानों पर पूरा दोष मढ़ना उचित नहीं है, क्योंकि इसके अलावा भी कई बड़े प्रदूषण-स्रोत हैं जिनसे स्थिति और बिगड़ती है। न्यायालय ने केंद्र से यह भी पूछा कि फसल अवशेष प्रबंधन और वैकल्पिक मशीनों की उपलब्धता को लेकर जमीनी स्तर पर क्या कदम उठाए गए।
हर महीने कम से कम दो बार सुनवाई
कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर के प्रदूषण की गंभीरता को देखते हुए आदेश दिया कि अब यह मामला हर महीने कम से कम दो बार सूचीबद्ध किया जाएगा, ताकि लागू की जा रही व्यवस्थाओं की नियमित समीक्षा हो सके। बेंच ने कहा कि “हमें कागज़ी योजनाओं से नहीं, धरातल पर दिखाई देने वाली कार्रवाई चाहिए।”
सरकारों को ‘एक्शन-ओरिएंटेड’ रिपोर्ट देने का निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र, दिल्ली सरकार, पंजाब, हरियाणा और CAQM (Commission for Air Quality Management) से कहा है कि वे बताएं:
निर्माण-प्रतिबंधों का कितना पालन हुआ
सड़क धूल कम करने के लिए कितनी मशीनें तैनात की गईं
वाहनों से उत्सर्जन नियंत्रित करने के क्या उपाय हुए
औद्योगिक उत्सर्जन और कचरा-जलाने पर कितनी निगरानी रखी गई
बेंच ने कहा कि अदालत “खतरे की इस स्थिति पर चुप नहीं बैठ सकती” और अब सुनिश्चित करेगी कि संबंधित एजेंसियों की जवाबदेही तय हो।
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