20वीं सदी के एक अद्भुत व्यक्तित्व थे जिद्दू कृष्णमूर्ति

जिद्दू कृष्णमूर्ति 20वीं सदी के एक अद्भुत व्यक्तित्व थे जिन्होंने मनुष्य की चेतना, स्वतंत्रता और ध्यान की वास्तविक प्रकृति पर रोशनी डाली। वे किसी धर्म, किसी परंपरा के नहीं थे, वे स्वयं एक खोज थे—एक अन्वेषण, जो इंसान को अपनी भीतरी बंधनों से मुक्त होने का मार्ग दिखाता है। उनके जीवन का संदेश था : “सत्य का कोई एक निश्चित मार्ग नहीं है। यह एक पथहीन मार्ग है.

जिद्दू कृष्णमूर्ति की फाइल फोटो
Written By : मृदुला दुबे | Updated on: December 4, 2025 1:37 pm

दक्षिण भारत के  मदनपल्ले कस्बे में 11 मई 1895 को इनका जन्म हुआ। समुद्र किनारे बैठे इस बालक में योग्यता देखकर थियोसोफिकल सोसाइटी ने गोद ले लिया। थियोसोफिस्टों ने कृष्णमूर्ति पर विश्वास किया कि वे ही आनेवाले “विश्वगुरु” हैं, जिसकी भविष्यवाणी उन्होंने की थी।

इसीलिय 1911 में “ऑर्डर ऑफ द स्टार इन द ईस्ट” नामक अंतरराष्ट्रीय संगठन को बनाया गया और कृष्णमूर्ति को उसका प्रमुख बना दिया। हज़ारों लोग उन्हें “वह महान गुरु” मानने लगे। सन् 2929 में 3000 अनुयायियों की सभा के बीच मंच पर आकर कृष्णमूर्ति ने ऐलान किया कि वे किसी भी आध्यात्मिक संस्था का नेतृत्व नहीं करेंगे। उन्होंने स्टार संगठन को भंग कर दिया और कहा: “सत्य एक पथहीन भूमि है। कोई भी संस्था, कोई भी मत, कोई भी गुरु आपको सत्य तक नहीं ले जा सकता। आपको स्वयं चलना होगा।” यह घोषणापत्र आध्यात्मिक स्वतंत्रता का साहसी उद्घोष माना जाता है।

२. मन क्या है? — मन चेतना की अंतर्वस्तु है। कृष्णमूर्ति के अनुसार मन एक जीवित घटना है— विचारों, भावनाओं, प्रतिक्रियाओं, यादों और कंडीशनिंग का प्रवाह है। मन स्थिर नहीं है बल्कि एक चलती हुई पुस्तक है। मन के पन्नों पर— सुख के अनुभव, दुख की छापें, भय, तुलना, इच्छाएँ, विश्वास और समाज द्वारा डाले गए दबाव हैं। सुख को पकड़े रहने की चाह और दुःख को हटाने की इच्छा से मन में निरंतर संघर्ष चलता है।

3. कंडीशनिंग : मन की एक अदृश्य कारागृह के समान है। हमें लगता है कि हम स्वतंत्र हैं, जबकि वास्तव में हमारा मन—परिवार, संस्कृति, धर्म, शिक्षा, अनुभव और पुरानी स्मृतियों में ही लिप्त रहता है। कृष्णमूर्ति इसको कंडीशनिंग कहते हैं-
मन एक ऐसा कारागृह है, जिसमें मन अनजाने बंधा रहता है। मनुष्य तभी स्वतंत्र होता है जब वह पहले अपनी बंधनों को देख लेता है।

4. कृष्णमूर्ति कहते हैं – मन को बदले बिना केवल देखो और समझो। मन को समझने की एक ही विधि है: विकल्पहीन होकर देखना। बिना निंदा. बिना दमन, बिना प्रतिरोध, बिना सुधार, बिना किसी लक्ष्य के केवल देखना कि मन में क्या हो रहा है।देखने की शक्ति से मन की जड़ों में प्रकाश आता है और प्रकाश पहुंचने से ही परिवर्तन होता है।

5. “मुझे नहीं पता” —ऐसा कहने से अहंकार पिघलता है। उनके अनुसार मानव बुद्धि को ऐसा बोलना चाहिए़ – “मुझे नहीं पता।” ऐसा कहने से ऊर्जा बर्बाद नहीं होती है और नया सीखने की क्षमता खुलती है। कृष्णमूर्ति कहते हैं: “जहाँ मन खाली है, वहीं कुछ नया जन्म लेता है।

ध्यान : ध्यान किसी साधना, मुद्रा, विधि का विषय नहीं है। वह कोई उपलब्धि भी नहीं है, ध्यान में मन अपनी हर गतिविधि को बिना भागे देखता है। विचार आते हैं, जाते हैं, भावनाएँ उठती हैं, यादें उभरती हैं और मन उन्हें पकड़े बिना केवल देखता है। उस देखने में, वह समझ में, एक अद्भुत मौन जन्म लेता है — जिसे वे ध्यान की ‘जीवित अवस्था’ कहते थे। कृष्णमूर्ति का मानना था कि- मानव समाज तभी बदलेगा जब मानव का मन बदलेगा। उनके अनुसार— संबंध ही सबसे बड़ा दर्पण हैं, विचार स्वयं समस्या है, और आत्म-ज्ञान से ही परिवर्तन होता है। कृष्णमूर्ति ने ब्रॉकवुड पार्क स्कूल (इंग्लैंड), ओजाई स्कूल (अमेरिका) और राजघाट विद्या मंदिर (भारत) की स्थापना में सहयोग दिया। यहां शिक्षा का लक्ष्य केवल करियर नहीं, मनुष्यता का जागरण होना था। अनेक प्रसिद्ध ग्रंथों में उनकी शिक्षाएं प्रकाशित हुई हैं – The First and Last Freedom Freedom From the Known The Awakening of Intelligence The Ending of Time Commentaries on Living Education and the Significance of Life.

सत्य का स्पर्श भीतर है। कृष्णमूर्ति किसी के भी अनुयाई नहीं बने। उन्होंने कहा—“मेरे शब्दों को मत मानना। स्वयं जाँचो, देखो और सत्य को स्वयं खोजो।” सत्य बाहर नहीं है,भीतर है। सत्य प्रति क्षण उपलब्ध है। मन पूरी जागरूकता से सत्य को देखता रहे।

[मृदुला दुबे योग शिक्षक और अध्यात्म की जानकार हैं.]

ये भी पढ़ें :-भैरवनाथ: शिव का रूप,भय का हरण करने वाले रक्षक

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *