इन्हे हमारी जरूरत नहीं है पर इनकी जरूरत हमें क्यों है?
प्रकाश संश्लेषण के बारे में हम सब जानते हैं। इस रासायनिक प्रक्रिया के बाइप्रोडक्ट के रूप में ऑक्सीजन का निर्माण ही नहीं होता बल्कि पेड़ों ( trees) द्वारा वातावरण में इसे छोड़ा भी जाता है। कहते हैं एक बड़े पीपल वृक्ष से एक दिन में चार मनुष्यों के ऑक्सीजन की पूर्ति होती है, तो हुए न ये प्राणरक्षक सुपर हीरो।
पीपल की क्यों पूजा होती है ?
हमारे यहाँ अनेक धार्मिक अवसरों पर पीपल वृक्ष के पूजन का विधान है। पीपल में पितरों का वास माना गया है। आखिर पीपल के वृक्ष को हमारे यहाँ इतनी महत्ता क्यों प्रदान की गयी है ? क्या सिर्फ इसी वजह से या इस वजह से कि यह चौबीसों घंटे जीवन प्रदायिनी ऑक्सीजन उत्सर्जित करता है ?
हम दोनों का एक दूसरे से जुड़ाव की वजह कहीं यह भी तो नहीं..
इस संसार में प्रवेश हेतु दोनों (पीपल और हम) एक ही प्रकार की प्रक्रिया से गुजरते हैं और वह है परकाया प्रवेश।
पीपल – इसे भी जन्म लेने हेतु परकाया प्रवेश करना होता है। कौए के शरीर में आहार स्वरुप इसके बीज का प्रवेश होता है। यही बीज जब कौए के मल में बाहर आता है तब यह वृक्ष (trees) बनता है अन्यथा नहीं।
पेड़( पीपल) और पक्षी (कौआ) विकास के लिए दो सर्वथा अलग- अलग प्रकृति और प्रवृति का एकात्म इतनी लयवद्धता .. अद्भुत है। विराट प्रकृति.. असीम सामर्थ्य..मनुष्य का जन्म भी परकाया प्रवेश से ही संभव है। पहले पिता के शरीर (वीर्य में) में, फिर माता के शरीर (गर्भ में) में।
भिन्न-भिन्न शारीरिक और मानसिक व्याधियों के इलाज के लिए भिन्न-भिन्न पौधों और पेड़ों (trees) की जड़, फूल, छाल और पत्तों की बात की गयी है। इनमें से कुछ निम्नांकित हैं-
ग्रहों के अनुसार वृक्ष और उनकी दिशा –
सूर्य – आक, मदार, मध्य भाग,
चंद्र- ढ़ाक, पलाश, टेसू , दक्षिण पूर्व दिशा,
मंगल – कथा, खैर, दक्षिण दिशा,
बुध – चिरचिरी (अपामार्ग), उत्तर दिशा,
बृहस्पति – पीपल , उत्तरपूर्व दिशा,
शुक्र – गूलर, अंजीर, पूर्व दिशा,
शनि – शमी, पश्चिम दिशा,
राहु – दूब, दक्षिण-पश्चिम दिशा
केतु – दूर्वा घास, उत्तर-पश्चिम
मस्तिष्क – ब्राह्मी,शंखपुष्पी, बाल – भृंगराज,नीम, हृदय– अर्जुन, तुलसी, त्वचा– एलोवेरा,नीम, नेत्र– हरड़, बहेरा, आँवला,गाजर, गला– मुलेठी, फेफड़े- गंभारी, किडनी– पुनर्नवा, अंगूर, पित्ताशय- गुडहल, लिवर– भूमि आँवला, पपीता, अग्न्याशय– कालमेघ, शकरकंद, धमनियां– नीम, पीपल, शीशम, मूत्राशय– पलाश, गोखरू, घुटना– हरसिंगार( पारिजात), गर्भाशय– अशोक, शक्ति- अश्वगंधा, सहनशक्ति– शतावरी, प्रतिरक्षा – गुडुची, पाचन – अदरक, चयापचय – नारियल, प्रोस्टेट – टमाटर, लाल रक्त कणिकाएँ – अनार, मांसपेशियां और जोड़ – सहजन ( मोरिंगा)।
तो क्यों न सकारात्मक बदलाव के संवाहक बनें। इस बरसात में ग्रहों के अनुसार कम से कम पांच वृक्ष (trees) अवश्य लगाएं।
@ बी कृष्णा (ज्योतिषी, योग और अध्यात्मिक चिंतक )
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