माया(Illusion) के कारण ही अपने को नहीं जान पाते हैं, ये है उपाय

इस जगत में सभी पदार्थ अनित्य हैं। यह जानकारी होने के बाद भी गहरी आसक्ति होना ही माया(Illusion) का एक रूप है, जो दुख लाती है। हमसे छूटने वाली चीजों के लिए लालायित रहना और भोग-वृत्ति में आसक्त रहना ही माया के जाल में फँसना है।

Written By : मृदुला दुबे | Updated on: September 23, 2024 1:24 pm

माया(Illusion) का अर्थ है भ्रम। भौतिक आकर्षण के कारण हम अपने आप को नहीं जान पाते। अपने अस्तित्व तक पहुँचने में जो रुकावट आती है, उसे माया या भ्रम कहते हैं।

कबीरदास कहते हैं, “माया महा ठगिनी हम जानी।”
कबीर ने माया को पापिनी, निशाचिनी और ठगिनी तक कहा है।

 

ओशो कहते हैं-

स्वप्न जब हम देख रहे होते हैं, तब वह बिल्कुल वास्तविक प्रतीत होता है। सुबह होते ही लुप्त हो जाता है, लेकिन रात को फिर से स्वप्न देखेंगे और इसमें रत्तीभर भी संदेह नहीं होगा।

बर्कले क्या कहते हैं-

पश्चिम का एक महान विचारक हुए , बर्कले। वह कहते हैं कि मुझे इस जगत पर शक है कि यह है भी या नहीं! हो सकता है, यह एक बड़ा सपना हो। मैं कैसे भरोसा करूँ कि आप सच में यहाँ बैठे हैं? हो सकता है, मैं सिर्फ सपना देख रहा हूँ।

“स्वप्न भी तो उतना ही वास्तविक होता है, जितना आप यहाँ वास्तविक हैं।”

अपने पूरे जीवन में जहाँ पर भी हम सुखी होते हैं, वहाँ और अधिक सुख पाने के लिए संघर्ष करते हैं। लेकिन कुछ समय बाद दुख आता है, क्योंकि जिसे हम सुख समझ रहे थे, वह आसक्ति थी। वह सुख नहीं था, बल्कि माया(Illusion)थी।

माया क्या करती है ?

माया (Illusion) एक को छोड़ दूसरे को पकड़ लेती है। माया सुख मिलने का झूठा आश्वासन देती है। यह बुद्धि को भोग में सुख का लालच देकर फंसा लेती है। माया(Illusion) मनुष्य को सत्संग(Satsang) में जाने से रोकती है। यह महापुरुषों से ज्ञान सुनने से मना करती है, ध्यान में मन नहीं लगने देती, कीर्तन में मन नहीं लगने देती, भगवान की चर्चा में आनंद नहीं लेने देती। यह सब माया के लक्षण हैं। जैसे – हिरण्यकश्यप भगवान का नाम सुनना भी पसंद नहीं करता था, ठीक उसी प्रकार रावण अहंकार में मदमस्त रहता था। दुर्योधन को भी अहंकार रूपी माया ने घेर रखा था। धृतराष्ट्र ने कहा था कि “मैं सब कुछ जानता हूँ, फिर भी क्या करूँ, मेरा मोह नहीं छूटता।”

निरंतर सत्संग करना चाहिए

संकट के बादलों को रोकने के लिए निरंतर सत्संग(Satsang) करना चाहिए, गीता का पाठ करना चाहिए, रामायण का पाठ करना चाहिए, ध्यान में बैठना चाहिए, महापुरुषों और महाज्ञानियों के पास जाना चाहिए। धर्म-चर्चा करनी चाहिए। तभी अज्ञानरूपी माया का पर्दा हटेगा। हम सबके लिए यह आवश्यक है कि माया के चंगुल से बचें, जिससे संसार, समाज और परिवार में सुख-शांति आए।

माया के वशीभूत होकर प्राणी दुराचार, बेईमानी, लोभ और अहंकार करता है। ये सब माया की ही संतानें हैं। जैसे ही हम सत्संग(Satsang) करेंगे या ध्यान करेंगे, हमारे भीतर के दुर्व्यसन और बुराइयाँ धीरे-धीरे समाप्त हो जाएँगी।

माया(Illusion) एक प्रपंचकारी स्थिति है, जो पाँच तत्वों से बने शरीर पर राज करती है। इंद्रियों के माध्यम से माया हमारे सिर पर नाचती है और हम विवश होकर आँसू बहाते हैं। माया को हटाने का एकमात्र साधन प्रभु के प्रति समर्पण है। अहंकार को त्यागकर, परमात्मा के प्रति समर्पित होकर और अपने मन को शुद्ध बनाकर ही हम निश्चित रूप से माया से मुक्त हो सकते हैं। जब तक माया है, तब तक दुख है।

मेरे अनुभव

यह संपूर्ण संसार और संसार में मौजूद प्रत्येक चीज माया है, क्योंकि कुछ भी सदा नहीं रहता। कुछ समय बाद सब समाप्त हो जाता है, चाहे वह व्यक्ति हो, वस्तु हो, स्थिति हो या घटना हो। माया हमारी आँखों, कानों, जिह्वा और स्पर्श के द्वारा भीतर प्रवेश करती है और सत्य न होते हुए भी हमें सत्य का अनुभव कराती है।

खूब सत्संग कीजिए अथवा ध्यान कीजिए, तब समझिए कि आप मुक्त हो गए। मुक्ति आपके सामने खड़ी होगी, उसका स्वागत कीजिए।

(मृदुला दुबे योग शिक्षक और आध्यात्मिक गुरु हैं.)

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