अक्सर घर में किसी भी मनोकामना पूर्ति के लिए ये बोलकर पैसे उठाकर रखते हैं कि भगवान जब आप हमारा ये काम कर देंगे तब इन पैसों का प्रसाद आपको चढ़ा देंगे। ये भीखमन भक्ति (Bhakti) हुई। भक्ति में लेन देन का व्यापार नहीं होता। भक्ति में समर्पण होता है। भगवान से कोई शर्त ना रखकर उसके प्रति कृतज्ञता का भाव होता है तभी भक्ति है। मीरा कृष्ण को अपना कहकर बोलती हैं ” मेरो तो गिरधर गोपाल दूसरा न कोई”।
मीरा गाती हैं ” पायोजी मैने राम रतन धन पायो”। रहीमदासजी मुस्लिम होते हुए भी कृष्ण भक्त थे। बिहारीजी कहते हैं -”
या अनुरागी चित्त की गति समुझै नहिं कोई।
ज्यौं ज्यौं बूड़ै स्याम रँग, त्यौं त्यौं उज्जलु होई॥
मनुष्य के अनुरागी ह्रदय की स्थिति और गति को कोई नहीं समझ सकता। जैसे जैसे श्याम की भक्ति में डूबता जाता है वैसे-वैसे और उज्जवल होता जाता है। भक्ति (Bhakti) करते हुए सारे दुर्गुण निकल जाते हैं।
भक्ति करने का एकमात्र उद्देश्य मोक्ष है।अर्थात जीवन मरण के चक्र से मुक्ति इसलिए हमें माया मोह को छोड़कर भक्ति करनी चाहिए। व्यासजी ने पुजा में अनुराग को भक्ति कहा है।
भगवद गीता में कृष्ण ने नवधा भक्ति बताई है।
श्रवण (राजा परीक्षित), कीर्तन (शुकदेव), पदसेवन (लक्ष्मी ),स्मरण (ध्रुव) दासय ( हनुमान) साख्य (अर्जुन) आत्मनिवेदन (राजा बलि)। कृष्ण ने इसे नवधा भक्ति बताया। भक्ति चार प्रकार की होती है। सात्विक,राजसिक, तामसिक और पादवंदन। हनुमानजी रामजी के अनन्य भक्त थे।
रामकृष्ण परमहंस माता काली के परम भक्त थे।दक्षिणेश्वर काली मन्दिर में साधना करते रहे। एक बार रामकृष्ण परमहंस काली मां को भोजन खिलाने गए तब मां ने भोजन नहीं किया। रामकृष्ण नाराज हो गए और मां के मन्दिर को बाहर से ताला लगा दिया। दो दिन बाद उन्हें पश्चाताप हुआ और क्षमा मांगकर ताला खोल दिया।
रामकृष्ण को अपनी पत्नि में भी मां ही दिखती थी। लेकिन अंत में उन्हें काली मां के प्रेम ने ऐसा जकड़ा कि उनकी मुक्ति असंभव हो गईं। तब तोतापुरी संत ने कहा कि जब काली हर जगह दिखाई दे तब तलवार से काट देना। रामकृष्ण के हाथ कांपने लगे। अगले जिस क्षण काली ही काली उनके चारों ओर घूमने लगी तब उन्होंने तलवार से काट दिया और मुक्त हो गए।
अंतिम समय में रामकृष्ण परमहंस को गले का कैंसर हो गया था और उनका खाना खाने में बहुत पीड़ा होती थी। तब विवेकानंद ने कहा कि आप मां से क्यों नहीं कह देते? वो जगत जननी आपकी बात सुनती है तब रामकृष्ण परमहंस हंसे और बोले अरे पगले! अब मैं तुम सबके कंठों से खाना खाऊंगा। कबीर श्री राम जी के गुणों की उपासना करते हैं और स्वयं भी गुण संपन्न बन जाते हैं। कबीरदास जी ने कहा कि सच्चा भक्त है जो प्रभु के प्रेम में प्रभु के विरह में व्याकुल हो।
कबीर दास जी ने कहा जब मन तो चारों तरफ भाग रहा है, हाथ में माला है और मुख में जीभ चल रही है तो यह सही भक्ति नहीं है। सूरदास की भक्ति सख्य भाव की है और उन्होंने गुरु सेवा ,संत सेवा और प्रभु सेवा को अधिक महत्व दिया।
भक्तों को माया मोह छोड़कर केवल मोक्ष के लिए भक्ति करनी चाहिए। धर्म का पालन करना चाहिए और दान यज्ञ आदि करते रहना चाहिए। पराई स्त्री को मां बेटी और बहन की दृष्टि से देखना चाहिए।

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