Jambudweepe Bharatkhande: मयंक जी की भाषा बहुत सरल और प्रवाहमान है इसलिए गंभीर विषयों को भी बिना किसी क्लिष्टता के लोगों के सामने रख लेते हैं. ” बोले बिहसि महेश तब, ज्ञानी मूढ़ न कोई। जेहि जस रघुपति करहिं जब,सो तस तेहि छन होई।।” -रामचरितमानस पुस्तक की भूमिका के पूर्व ही लेखक ने रामचरितमानस का एक दोहा उद्धृत किया है. यहाँ उन्होंने ‘ऐतरेय ब्राह्मण’ का भी एक श्लोक उद्धृत किया है ।।
पुस्तक की भूमिका में लेखक लिखते हैं “भारतीय जीवन में देश और काल है। काल के साथ गति है और गति के संग जीवन दर्शन जुड़ा है।…..चक्रीय गति के साथ, जो ठहराव आते हैं, वे हमारे भीतर के चेतन तत्व को जानने का अवसर प्रदान करते हैं।…..भारतीय चिंतन में कहा गया कि आर्य वह है, जो भारतीय सभ्यता में डुबकी लगाकर चिरंतन सत्य को समाज के समक्ष रखता है। भारतीयों का एक वेदवाक्य रहा-कृण्वन्तो विश्वमार्यम….”
दो सौ चौबीस पृष्ठ की इस Jambudweepe Bharatkhande पुस्तक में भूमिका के अतिरिक्त बारह अध्याय हैं : 1. देश-काल की गति में लोक 2. कलप-कलप लगि प्रभु अवतरहीं 3. जीवन के प्राण हैं सूर्यदेव 4. महायुग की यात्रा का सहभागी मन्वंतर 5. महाव्योम की दर्शन चेतना में भूलोक6. जंबूद्वीपे भारतवर्षे देशान्तर्गत 7. देवत्व की प्रतिष्ठा है यज्ञकर्म 8. मानव सभ्यता का पहला राष्ट्र है भारतवर्ष 9. अंतर्मन में चिरंतन ऋतु अनुराग 10. भरतखंड में चेतना का अखंड प्रवाह 11. आर्यावर्त-दक्षिणावर्त 12. उत्सव में शाश्वत की खोज. लेखक डॉ. मयंक मुरारी ने बीसीयों ग्रंथों का संदर्भ पुस्तक के अंत में दिया है.
इन सभी पुस्तकों का सार तत्व इस पुस्तक में समाहित करने का प्रयास मयंक जी ने किया है. भारतीय सभ्यता, संस्कृति और सनातन विचारों पर कोई भी पुस्तक आपको शत प्रतिशत मानसिक रूप से प्रभावित करने के लिए नहीं लिखी जाती है-यह आपको चिंतन, मनन और आध्यात्मिक सोच की ओर उन्मुख करने का प्रयास करती है. डॉ. मयंक मुरारी बहुत दूर तक इस प्रयास में सफल होते दिखाई देते हैं. कुछ और उद्धरण दिए जाते तो पाठकों का अतिरिक्त ज्ञानवर्द्धन होता.
पुस्तक: ‘जंबूद्वीपे भरतखंडे’
लेखक:डॉ. मयंक मुरारी,
प्रकाशक: प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली, मूल्य: रु.350

(पुस्तक के समीक्षक प्रमोद कुमार झा रांची दूरदर्शन केंद्र के पूर्व निदेशक हैं और कला व साहित्य के राष्ट्रीय स्तर के मर्मज्ञ हैं।)