किताब का हिसाब : अति रोचक है प्रभात रंजन का उपन्यास ‘किस्साग्राम’

प्रभात रंजन का कुछ महीने पूर्व प्रकाशित उपन्यास "किस्साग्राम ". 'जानकीपुल' जैसी प्रसिद्ध ई पत्रिका के कर्ता धर्ता प्रभात के तीन कथा संग्रह प्रकाशित हैं .इन्होंने आलोचना के क्षेत्र में भी काफी काम किया है।दिल्ली के प्रातिष्ठित कॉलेज में पढ़ाते हैं .यशस्वी लेखक,पत्रकार मनोहरश्याम जोशी के ऊपर इन्होंने काफी काम किया है.

Written By : प्रमोद कुमार झा | Updated on: March 9, 2025 6:23 pm

इस बार की पुस्तक चर्चा में है प्रभात रंजन का कुछ महीने पूर्व प्रकाशित उपन्यास ” किस्साग्राम “. ‘जानकीपुल’ जैसी प्रसिद्ध ई पत्रिका के कर्ता धर्ता प्रभात के तीन कथा संग्रह प्रकाशित हैं .इन्होंने आलोचना के क्षेत्र में भी काफी काम किया है।दिल्ली के प्रातिष्ठित कॉलेज में पढ़ाते हैं .यशस्वी लेखक,पत्रकार मनोहरश्याम जोशी के ऊपर इन्होंने काफी काम किया है.देश के जाने माने अनुवादक हैं.प्रभात रंजन जी का यह पहला उपन्यास है.

112पृष्ठ के इस किस्साग्राम उपन्यास को पढ़ते हुए पिछली शताब्दी के अंतिम दशक के बिहार की छवि बार बार सामने आती है. प्रभात जी की भाषा सरल और रोचक है. उसमें कहीं-कहीं उस क्षेत्र विशेष की ‘बोली’ के शब्दों का प्रयोग कथा को एक माधुर्य प्रदान करता है. कहते है कि लेखक अपने आप परिवेश के बारे में सबसे सहज ढंग से लिख सकता है. नेपाल से सटे भारत के इस क्षेत्र पर लिखा यह किस्साग्राम उपन्यास अपने ढंग का प्रायः अलग ही उपन्यास होगा ! ध्यातव्य है कि यहां के निवासियों के जीवन में नेपाल के जन जीवन की वैसी ही चर्चा होती है जैसे कि किसी बगल के गाँव की चर्चा होती है.

किस्साग्राम उपन्यास एक बैठकी में पढ़ जाने वाला है. बहुत रोचक है, कहीं भी उलझन नहीं है. कहीं कहीं रिपोर्ताज पढ़ने का भी भान होता है .लेखक की मौन उपस्थिति पूरे उपन्यास में अनुभव किया जा सकता है. हिंदी की पुरस्कृत प्रख्यात कवयित्री, लेखिका अनामिका इस उपन्यास की भूमिका में लिखती हैं : “अफवाहों के धुमैले घटाटोप के इस सत्योत्तर में उनकी ‘एजेंसी’,उनके सजग चुनाव क प्रश्न कितना जटिल हो जाता-इसका एक उत्कट साक्ष्य वहन करती है यह उपन्यास ,जिसमे न कोई नायक है,न नायिका, खलनायक भी नहीं कोई, एक भीड़ है,उसकी भेड़चाल और सामने घुमड़ता एक विकट प्रश्न कि क्या होना है आगे गणतंत्र का और गणदेवताओं का!” पूरे उपन्यास को पढ़ते हुए चुटीले व्यंग्य से गुजरना पड़ता है .कभी श्रीलाल शुक्ल और कभी मनोहर श्याम जोशी याद आते हैं .

हिंदी में प्रायः ही उपन्यास होगा जिसमें किसी पात्र के स्थान पर सम्पूर्ण माहौल ही केंद्र में है !इस उपन्यास में पात्र बहुत महत्वपूर्ण नहीं हैं, माहौल है! बिहार में जातिगत राजनीतिक परिवर्तन, राजनीतिक मान्यताओं में परिवर्तन ,सामाजिक स्वरूप की स्थिति का जीवंत वर्णन है. प्रारम्भ में ‘अपनी बात ‘में प्रभात लिखते हैं “पिछली बार मेरे एक स्कूलिया मित्र ने विकास का उदाहरण देते हुए बताया था कि अब सीतामढ़ी में दिल्ली से भी अच्छा मोमोज़ मिलने लगा है।सुनकर मुझे इस बात में कोई संदेह ही नहीं रह गया कि विकास सफलतापूर्वक वहां पहुंच चुका है।” प्रभात आगे लिखते हैं: “….संयोग से सपना टी हाउस वाले कामेश्वर जी से भेंट हो गई। खुश हुआ कि मैं लेखक बन गया था। अखबार से लेकर फेसबुक तक मेरा लिखा वह पढ़ता रहता था। लेकिन एक बात पर उसने दुख जताया।बोला इतना लिखते हो, दुनिया जहान का लिखते हो। अपने देश के किसी पर तो आक तक कुछ नहीं लिखा तुमने लेकिन किसी मार्केज नामक विदेशी लेखक पर पूरी की पूरी किताब लिख डाली। लेकिन एक बात बताओ। अपने यहाँ की उस कहानी को कौन लिखेगा जिसको सब भूलते जा रहे हैं।

मुझे लगा जैसे उपन्यास का सूत्र मिल गया.”. पूरे उपन्यास में ‘ छकौरी पहलवान’ प्रकट तो नहीं होते पर उनके सहारे ही कथा आगे बढ़ती है .अंग्रेजी नाटककार बैकेट का नाटक ‘वेटिंग फ़ॉर गोदो’ याद आता है. ‘क़िस्साग्राम’के माध्यम से प्रभात रंजन ने हिंदी उपन्यास में एक प्रभावशाली उपस्थिति दर्ज कराई है. पाठक तो ज़रूर यह महसूस करेगा कि उपन्यासकार ने किस्सा जल्दी समेट लिया! थोड़ा विस्तार दिया जा सकता था. उपन्यास अति रोचक, पठनीय एवं संग्रहणीय है. उपन्यास: किस्सग्राम, लेखक: प्रभात रंजन.

प्रकाशक:-राजपाल प्रकाशन, पृष्ठ:112, प्रथम संस्करण:2024 , मूल्य:रु 199.

(प्रमोद कुमार झा तीन दशक से अधिक समय तक आकाशवाणी और दूरदर्शन के वरिष्ठ पदों पर कार्यरत रहे. एक चर्चित अनुवादक और हिन्दी, अंग्रेजी, मैथिली के लेखक, आलोचक और कला-संस्कृति-साहित्य पर स्तंभकार हैं।)

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