किताब का हिसाब : पढ़ें, मनीषा ‘सुमन’ के संग्रह ‘चांद पर घर’ में 10 कहानियाँ

चांद पर घर हिंदी की लेखिका मनीषा 'सुमन'का नवीनतम प्रकाशित कहानी संग्रह है.मनीषा कई दशकों से कहानी, कविता, शोध निबंध ,हास्य व्यंग्य, बाल कविताएं लिखती रही हैं. इनकी लगभग बीस किताबें प्रकाशित हैं. मनीषा ने कई संकलनों का संपादन भी किया है. मनीषा को उनके लेखन के लिए कई पुरस्कार और सम्मान भी मिले हैं.

Written By : प्रमोद कुमार झा | Updated on: November 4, 2024 10:19 pm

‘चांद पर घर’ हिंदी की लेखिका मनीषा ‘सुमन’का नवीनतम प्रकाशित कहानी संग्रह है.मनीषा कई दशकों से कहानी, कविता, शोध निबंध ,हास्य व्यंग्य, बाल कविताएं लिखती रही हैं. इनकी लगभग बीस किताबें प्रकाशित हैं. मनीषा ने कई संकलनों का संपादन भी किया है. मनीषा को उनके लेखन के लिए कई पुरस्कार और सम्मान भी मिले हैं.

कहानी पेड़ों की व्यथा की पंक्ति पर नजर डालें

“मम्मी देखो नन्हीं -नन्हीं चीटियाँ मुंह में दाना लेकर लाइन लगा कर जा रही हैं,जैसे हम स्कूल की क्लास में जाते हैं.”(पेड़ों की व्यथा) “अक्सर गाँव के लोग भी मेरे पत्ते, टहनियाँ पशुओं को खिलाने व पूजा के लिये तोड़ ले जाते थे। मैंने सब हँस- हँस कर सहा है। जानते हो क्यों?? क्योंकि मुझे अपनी जड़ों पर विश्वास था। पर इन मनुष्यों ने आज मुझे जड़ से अलग कर दिया।” (पेड़ों की व्यथा) मनीषा की कहानियां बहुत सरल भाषा में लिखी गयी हैं. आम बोलचाल की भाषा में सामान्य लोगों की सोच विचार को कहानियों में व्यक्त किया गया है.

मनीषा की कहानियों में भाषा की क्लिष्टता ,विचारों की उलझन और प्रतीकों का अंबार नहीं है पर कोई गंभीर पाठक अगर कोई विशेषार्थ निकाल ले तो इसे लेखिका की क्षमता ही कहेंगे.

‘चांद पर घर’कहानी संग्रह में दस कहानियां हैं. बेरानबे पृष्ठों के इस संग्रह की छपाई बहुत सुंदर है. संग्रह में प्रूफ की कोई गलती भी नहीं दिखाई दी. कहानियां हैं ‘मुट्ठी भर ख्वाब’, ‘पेड़ों की व्यथा’, ‘दादी की वसीयत’, ‘सत्यम शिवम सुंदरम’,’ आत्मसंवाद’, ‘रोजी रोटी का धर्म’, ‘मेमसाहिब’,’चांद पर घर’, ‘कोई अफसोस नहीं!’और ‘तितली’.सारी कहानियां अपने चतुर्दिक परिवेश से ली गयी कहानी है.

आम आदमी की व्यथा की कथा है संग्रह में

एक कथाकार के रूप में मनीषा की विशेषता है उनकी पैनी नज़र!समाज में चारों ओर कहानियां तो बिखरी पड़ी होती हैं पर उसे अपने मानस पटल पर अंकित कर रोचक कहानी के रूप में प्रस्तुत करना ही कहानीकार की खूबी है. संग्रह की कहानियों में साक्षात रूप में करुणा दिखाई नहीं देती पर आम आदमी की व्यथा कथा है, आशा है, विश्वास है, उम्मीद है और आने वाले कल पर भरोसा भी है. नए युग के नायक डॉ. कलाम के प्रति सम्मान, श्रद्धा और विश्वास भी है तो नए ग्रहों के प्रति उत्सुकता और आकर्षण भी है. लगभग सारे पात्र सामान्य हैं .पर इस सामान्य जीवन की सामान्य सोच और अभिलाषा ही कहानियों को रोचक बनाती है.

यूँ तो कहानी की भाषा अत्यंत सरल है पर हिंदी में उपलब्ध शब्दों के स्थान पर तद्भव शब्दों का प्रयोग कहीं कहीं चुभता है. संग्रह पठनीय है,कहानी के पाठकों को रुचिकर लगेगा.

(पुस्तक के समीक्षक प्रमोद कुमार झा रांची दूरदर्शन केंद्र के पूर्व निदेशक हैं और कला व साहित्य के राष्ट्रीय स्तर के मर्मज्ञ हैं।)

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