किताब का हिसाब
अंकित की लगभग सभी कहानियां दुःख, अवसाद और जीवन में तारतम्यता के अभाव के उलझन से निपटती जान पड़ती है। अब तक हिंदी में लिखी जाने वाली कहानियों से अलग इन कहानियों कोई कथा शुरू नहीं होती, कोई रोमांस नहीं होता ,कोई दुःखद घटना भी नहीं घटती ,ज़ाहिर है अंत भी नहीं होता। अंकित की कहानियां विभिन्न अवसादग्रस्त भावनाओं का कोलाज जैसा है जिसमें एक दुःखी सूत्रधार है जो इन घटनाक्रमों को जोड़ता है। आधुनिक भारत में लोगों में असुक्षा, अकेलेपन और अस्थिरता की भावना बहुत अधिक बढ़ती जा रही है। अपूर्ण संबंध और अविश्वास की एक परत से जैसे सब ढके हों। इक्कीसवीं सदी में साइकोलोजिस्ट और काउन्सलर की सेवा लेना अब बुरा नहीं माना जाता है कारण प्रायः यह भी है कि लोगों में ‘वर्जनाओं’की परिभाषाओं को परिवर्तित कर दिया है। अंकित की कथाओं में मृत्यु, अंधेरा, एवं दुःख बार बार आता है। स्त्री-पुरुष संबंधों की अस्थिरता और अविश्वास का भाव भी बार बार उभर कर सामने आता है। किताब का हिसाब
संग्रह के ‘आमुख’में लेखक, मानसिक स्वास्थ्य शोधकर्ता पूजा प्रियंवदा लिखती है” इसमें संकलित कहानियाँ हमें उस दुःख की यात्रा पर ले जाती हैं जो मनुष्य की अंतरात्मा की गहराइयों में समाहित है। अंकित एक संवेदनशील युवा रचनाकार और सामाजिक कार्यकर्ता हैं और ऐसा संभव है कि उन्होंने अपने जीवन में इनमें से अनेक कहानियां या उनके अंशों को घटित होते देखा हो”। इन कहानियों में कई जगह मानसिक अंतर्द्वंदों का वर्णन है जो अंग्रेज़ी के ‘स्ट्रीम ऑफ कांशसनेस’शैली की याद दिलाता है। अंकित पर कुछ पश्चिमी लेखकों का भी प्रभाव दिखता है। कहीं कहीं निर्मल वर्मा याद आते हैं। अंकित संग्रह की भूमिका में लिखते हैं “…परन्तु यह पूछा जा सकता है कि दुःख जीने का सलीका हमें क्यों नहीं मालूम।जीवन के किसी भी पड़ाव पर,हमें क्यों नहीं सिखाया जाता दुःख जीने का सलीका?दुःख जीने का सलीका आखिर किससे पूछा जा सकता है? ” कहानी ‘दुःख ‘के इन पंक्तियों को देखिए: ‘ अलग हो जाने के कुछ समय तक भी हम एक दूसरे से मिलते रहे ।यह हम दोनों का एक दूसरे के प्रति प्रेम के फ़र्ज़ को निभाने जैसा था।इस फ़र्ज़ ने ही हम दोनों को एक दूसरे से अलग हो जाने का सम्बल दिया था।जाते हुए भी केवल प्रेम का एहसास रखना, दुःख जीने की ताकत सी देता है। घर से जाते हुए मैं किसी तरह के प्रेम को अपने साथ नहीं ले पाया था ।” (दुःख, पृष्ठ संख्या-29-30 ) संग्रह हिन्दी कहानी में एक नया आयाम लेकर आई है। युवा कहानीकार अंकित में संभावनाएं हैं। संग्रह पठनीय है।
किताब का हिसाब
संग्रह: दुःख के रंग ,
लेखक:अंकित गुप्ता’असीर’,
प्रकाशक:निम्बोली प्रकाशन (भोपाल),
पृष्ठ-101,
मूल्य: रु.199
प्रमोद कुमार झा तीन दशक से अधिक समय तक आकाशवाणी और दूरदर्शन के वरिष्ठ पदों पर कार्यरत रहे। (एक चर्चित अनुवादक और हिन्दी, अंग्रेजी, मैथिली के लेखक, आलोचक और कला-संस्कृति-साहित्य पर स्तंभकार हैं।)
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