बटरोही जी ने भारतीय विश्वविद्यालयों में छत्तीस वर्ष और पश्चिम के विश्विद्यालय में तीन वर्ष तक हिंदी अध्यापन किया है. पिछली शताब्दी में सम्मानित पत्रिका ‘धर्मयुग ‘ में बटरोही जी की कहानियां नियमित छपती थीं. आज की पुस्तक “हम तीन थोकदार” एक आख्यानों का संकलन है। “अपनी ओर से दो बातें” में बटरोही जी लिखते हैं : – ‘द ला, तु मैं खै जए!’
एक ही जीवनकाल में तय की जाती रही भाषा की अनंत शवयात्राएँ…. ब्रह्मवादियों को भरोसा देने के लिए हम भले ही मान लेते हों कि शब्द की कभी मौत नहीं होती मगर शब्द की मदद से बनने वाली भाषा तो हर पल बनती, बिगड़ती और मरती रहती है.
लोक से जुड़ी अपनी दादी, नानी और बूढ़ी रिश्तेदारिनों को मैं जब- जब अपने गाल और सिर सहलाते हुए दोनों आंखों से झर -झर नितरते आंसुओं के साथ, कभी- कभी बिना बात रोते हुए देखता हूँ, मुझे उनकी निरर्थक-सी लगने वाली भाषा के अर्थ कितने ही सार्थक रूप समझ में आने लगते हैं. निश्चय ही यह ताकत शब्द-ब्रह्म की नहीं,मेरी उन बूढ़ी माँओं की है जिनके पास हर क्षण लुटाने के लिए संवेदना का असीम सागर है.’ आख्यानों के इस 199 पृष्ठों की पुस्तक में बारह अलग- अलग आख्यान हैं.
1 .हम तीन थोकदार
2.यात्रा बूमरैंग-कोरोना समय में थोकदार
3.नोस्टैल्जिया नहीं सचमुच के दिन
4.तुम्हें किस नाम से पुकारूं मेरे पुरखों
5.मिथक नहीं,राजनय है अंधविश्वास
6.जोशी मनोहरादित्य नाथ जोगी बिष्ट
7.प्रेमचंद के लेखन कक्ष में कुछ दिन
8.थोकदार-पुत्री योगिनी, शैलेश मटियानी और योगी का अयोध्या -उत्सव
9.शिवानी के साथ खलनायक-पिता का प्रस्थान
10.पनार घाटी का थोकदार जिम कॉर्बेट
11.ठेले पर हिमालय में काफल पका आमा, मैंने नहीं चखा और
12. और अंत में. प्रत्येक आख्यान के शीर्षक अलग अलग हैं और इन शीर्षकों को देखकर ही अनुमान लग सकता है कि भारत के इस क्षेत्र की परंपराओं, मान्यताओं, रीति रिवाजों ,आपसी संबंधों , सामाजिक और आर्थिक अन्तरसंबंधों और अंतर्विरोधों का भी आख्यान है इसमें. हिंदी भाषा साहित्य लोक रुचि के अनुसार उपन्यासों, कहानियों ,कविताओं और नाटकों तक ही सिमट कर रह गया है.
बटरोही जी की आख्यान की ये पुस्तक इन सबों से अलग एक विधा में है जो अत्यधिक महत्वपूर्ण है. इस पुस्तक की भाषा सुंदर, प्रवाहमान और परिष्कृत है. लेखन के प्रवाह में कुमायूं क्षेत्र में प्रयुक्त लोकभाषा के शब्दों का रोचक समावेश है. हिंदी भाषा के समृद्ध होने में ऐसी लेखनी अवश्य ही सहायक सिद्ध होगी.
पुस्तक-हम तीन थोकदार, लेखक-बटरोही ,प्रकाशक:समय साक्ष्य प्रकाशन(देहरादून), पृष्ठ-199,मूल्य -रु.200
(पुस्तक के समीक्षक प्रमोद कुमार झा रांची दूरदर्शन केंद्र के पूर्व निदेशक हैं और कला व साहित्य के राष्ट्रीय स्तर के मर्मज्ञ हैं।)
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