पुस्तक चर्चा के तहत आज की चर्चा में पुस्तक का नाम है: “शम्भू बादल की चुनी हुई कविताएं”. बादल जी की सैकड़ों कविताओं में से छांटकर इन कविताओं का चयन और पुस्तक का संपादन किया है हिंदी और भोजपुरी के चर्चित विद्वान बलभद्र जी ने.
पेशे से हिंदी के प्राध्यापक उन्यासी वर्षीय प्रो. शम्भू बादल पिछले लगभग पचास वर्ष से हिंदी लेखन में तल्लीन हैं. कवि, आलोचक, संपादक शम्भू बादल जी एक कुशल संपादक के रूप में भी ख्यातिप्राप्त हैं. बादल जी ने विश्व के अनेक देशों की साहित्यिक यात्राएं की हैं जिनमें उज्बेकिस्तान, इंग्लैंड, नीदरलैंड, बेल्जियम, फ्रांस, स्वीटजरलैंड, इटली, वेटिकन सिटी, ऑस्ट्रिया, जर्मनी, थाईलैंड और रूस जैसे देश प्रमुख हैं. झारखंड निवासी कवि बादल में इन यात्राओं का भी खूब प्रभाव पड़ा है.
एक सौ पचास पृष्ठ के इस संग्रह में सड़सठ कविताएं शामिल हैं. संपादक और कविताओं के चयनकर्ता बलभद्र जी की विस्तृत संपादकीय संग्रह की विशेषता है. इस संग्रह की कविताओं ने झारखंड के जंगल, वहां की निवासियों की जीवन शैली और तथा-कथित सभ्य समाज के द्वारा उपेक्षा की भी चर्चा है तो छोटे यूरोपीय देश के भाषाई कवियों की भावनाओं की प्रतिध्वनि भी सुनाई देती है.
“खपड़े टूटते हैं/घर जलता है/सोमरा/ दारू-मुर्गे पर खुश/खूब झूमर गाता है/मन भर नाचता है/ शिकारी/मांदर थमा/हंसता है” ( कविता :सोमरा, पृष्ठ-22 ) बादल जी की कविता में वही सत्य उभर कर आया है जो भाव पूरे भारत और विश्व के कवियों की कविता में इक्कीसवीं सदी में दिखाई दे रही है.
एक दूसरे मिजाज के कविता की झलक भी देखिए: “प्यारी कविता/ विज्ञान/ आज की महान उपलब्धि है/ प्रखरतम बुद्धि/प्रयोगशालाएँ/मशीनें/-सभी कहीं-कहीं प्रयुक्त हो रही हैं !/ हम यहीं -के -यहीं हैं/धूल फाँकते/वर्षों की प्रतिभाओं से/ कृत्रिम संताने आयीं/मुस्कायीं/ नामकरण हुआ मशीनज/मुझे लगता है/मशीनज तेजी से बढ़ रहे है/मानव की तरह ही/पर मानव से नितांत भिन्न………” (मानव और मशीनज,पृष्ठ-132)
संग्रह : शम्भू बादल की चुनी हुई कविताएं
चयन और संपादन: बलभद्र, पृष्ठ: 150 ,
प्रकाशक : विकल्प प्रकाशन, मूल्य : रु300.

प्रमोद कुमार झा तीन दशक से अधिक समय तक आकाशवाणी और दूरदर्शन के वरिष्ठ पदों पर कार्यरत रहे. एक चर्चित अनुवादक और हिन्दी, अंग्रेजी, मैथिली के लेखक, आलोचक और कला-संस्कृति-साहित्य पर स्तंभकार हैं।)
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प्रभावी संक्षिप्त समीक्षा
शंभु बादल जी एक महत्वपूर्ण कवि हैं