किताब का हिसाब: स्त्री केंद्रित कविताओं का संग्रह है “चालीस पार की औरत”

आज की चर्चा में हिंदी कविता संग्रह "चालीस पार की औरत". किसी में व्यक्ति के जीवन में चालीस की उम्र एक महत्वपूर्ण मोड़ है. प्रसिद्ध अंग्रेज़ी उपन्यासकार एच. जी. वेल्स ने कहीं लिखा है कि चालीस की उम्र में मनुष्य के उपलब्धियों का आकलन किया जा सकता है. उसकी सफलताओं, असफलताओं, उपलब्धियों, पारिवारिक संरचना, दाम्पत्य जीवन, बच्चों की जीवन में संभावनाएं सब का अनुमान किया जा सकता है.पूरी दुनिया में विभिन्न भाषाओं में इस उम्र को लेकर बहुत कुछ लिखा गया है. हिंदी में भी बहुत कुछ लिखा गया है.

Written By : प्रमोद कुमार झा | Updated on: December 18, 2024 11:18 pm

झारखंड की चर्चित कवयित्री कलावंती सिंह ने भी इस उम्र को अपने नज़रिए से देखा है .उन्होंने कुछ दिन पूर्व प्रकाशित अपनी कविता संग्रह का नाम ही रख दिया “चालीस पार की औरत”. संकलन के प्रारंभ में “सूक्ष्म और फिलचस्प संकेत” के अंतर्गत प्रसिद्ध कवयित्री अनामिका लिखती हैं “.कलावंती की स्त्री केन्द्रित कविताएं एक सबल प्रतिपक्ष रचती हैं.

रीतिकालीन प्रौढ़ाओं और चौदहवीं शताब्दी के अंग्रेज़ी कवि चौसर की प्रसिद्ध पुस्तक ‘द कैंटरबरी टेल्स’ की’द वाइफ ऑफ बाथ’का चालीस पार की इस जीवंत औरत का किरदार सामने रखते हैं” इस संग्रह में छोटी -छोटी चौसठ कविताएं हैं. कविताओं के शीर्षक भी रोचक हैं जैसे नारी, कफन, मासूमियत , प्रेम और खुद्दारी, मोनालिसा:एक, मोनालिसा:दो, मोनालिसा:तीन, मोनालिसा:चार, मोनालिसा :पांच, मोनालिसा: छह,मोनालिसा: सात, चीख, अभिसार, आदर्श, मुखौटा गौरैया, ईर्ष्या, जीवट, चुप रहने वाली लड़को, पगड़ी,डर, मन, क्षणिकाएं इत्यादि. इन छोटी कविताओं के शीर्षक से ही अनुमान लगाया जा सकता है कि ये कविताएं सामान्य जीवन की घटनाओं, विविधताओं,वर्जनाओं, संस्कारों, विसंगतियों ,विचाओं, परेशानियों और दोहरे विचारों से उत्पन्न परेशानियों इत्यादि की कविताएं हैं.

देखिये कुछ कविताओं को: “मासूमियत सबको अच्छी लगती है।/पर कौन खड़ा होना चाहता है,/ मासूमियत की रक्षा के लिए।/ हाशिये पर लिखी कविता की समीक्षा के लिए?” (मासूमियत,पृष्ठ 23) अब मोनालिसा श्रृंखला की सात कविताओं में से एक देखिये : “किसी के प्यार में हो आजकल / मोनालिसा/ तुम्हारी मुस्कान कितनी दिव्य हो गयी है/ इस नश्वर संसार में/ बस यही अनश्वर बचा है/ इन दिनों तुम थोड़ी दार्शनिक हो गई हो मोनालिसा .” (मोनालिसा:चार,पृष्ठ30) एक दूसरे मिज़ाज़ की कविता भी देखें : ” दिन राय आय्याशियाँ करनेवाले/ डर जाते हैं औरत की,/एक छोटी सी अय्याशी से।,हिल जाती है दीवारें धर्म की. /समाज की।/धड़क जाती है छाती मुल्ला,मौलवी, पादरी और साधुओं की/गली मोहल्ले में उठ जाता है शोर।/मालकिन को लगा है कोई/ डाईन, भूत, चोर।” (जैसे रात हो डंसती नागिन, पृष्ठ: 73)

महिलाओं के प्रति एक विचित्र सा रवैया आदिकाल से रहा है पुरुषों का. कलावती की सारी की सारी कविताएं स्त्री विमर्श की कविताएं कही जा सकती हैं. कवयित्री कुछ कविताओं को थोड़ा और विस्तार देतीं तो प्रायः कुछ और बातें सामने आ पाती. संग्रह संग्रणीय और पठनीय है. संग्रह:चालीस पार की औरत

कवयित्री: कलावंती सिंह,

प्रकाशक:बोधि प्रकाशन, मूल्य:रु.120.

(प्रमोद कुमार झा तीन दशक से अधिक समय तक आकाशवाणी और दूरदर्शन के वरिष्ठ पदों पर कार्यरत रहे. एक चर्चित अनुवादक और हिन्दी, अंग्रेजी, मैथिली के लेखक, आलोचक और कला-संस्कृति-साहित्य पर स्तंभकार हैं।)

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