यह पर्व नवरात्रि के दौरान मनाया जाता है और दुर्गा माँ के नौ रूपों की पूजा की जाती है। भक्त उपवास रखते हैं, मंत्र-जप करते हैं, दुर्गा सप्तशती और चंडी पाठ करते हैं। पाँच दिनों (षष्ठी से विजयादशमी तक) विशेष पूजा और उत्सव होते हैं।
दुर्गा पूजा का महत्व:
दुर्गा माँ असुर महिषासुर का वध कर धर्म की स्थापना करती हैं। यह उत्सव नारी-शक्ति और मातृ-शक्ति की पूजा का प्रतीक है।भक्त अपने भीतर की नकारात्मक शक्तियों (लोभ, क्रोध, अहंकार) का नाश करने का संकल्प लेते हैं। माँ से शक्ति, ज्ञान, स्वास्थ्य और समृद्धि की प्रार्थना की जाती है।
दुर्गा पूजा के प्रमुख मंत्र:
1.या देवी सर्वभूतेषु शक्ति-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
अर्थ – जो देवी सम्पूर्ण प्राणियों में शक्ति स्वरूप विद्यमान हैं, उन्हें बार-बार प्रणाम है।
2. दुर्गा सप्तश्लोकी मंत्र
ॐ जया त्वं देवी चामुण्डे जय भूतार्तिहारिणि।
जय सर्वगते देवि कालरात्रि नमोऽस्तु ते॥
अर्थ – हे देवी! आप चामुंडा स्वरूपिणी हैं, सब प्राणियों के दुःख दूर करने वाली हैं, सबके भीतर विद्यमान हैं, कालरात्रि को भी जीतने वाली हैं – आपको मेरा प्रणाम।
3. शांति और मंगल के लिए मंत्र
सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोऽस्तु ते॥
अर्थ – हे देवी! आप सब मंगलों की मंगलमयी हैं, शिव की संगिनी हैं, सब कार्यों को सिद्ध करने वाली हैं। आपको नमस्कार है।
दुर्गा पूजा केवल धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक और सामाजिक उत्सव भी है। यह हमें सिखाता है कि—
बुराई चाहे कितनी भी प्रबल क्यों न हो, सत्य और धर्म की विजय निश्चित है। स्त्री का रूप केवल कोमलता ही नहीं, बल्कि शक्ति और पराक्रम का भी प्रतीक है। हमें अपने जीवन में आत्मबल, धैर्य और करुणा को जगाना चाहिए।
विजयादशमी का संदेश: जब रावण और महिषासुर जैसे अधर्म नष्ट होते हैं, तब हम यह सीखते हैं कि –
“सत्य, धर्म और प्रेम की विजय अवश्य होती है।”
(मृदुला दुबे योग शिक्षक और अध्यात्म की जानकर हैं।)
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