Spiritualism: परिवार में साथ नहीं रह पाने के कारण, जानें इसका निवारण

परिवार में आज के समय कोई भी एक साथ नहीं रहना चाहता और यदि रहने की मजबूरी हो तो सभी खुश नहीं रह पाते। इसके मुख्य कारण हैं:-

Written By : मृदुला दुबे | Updated on: November 5, 2024 1:54 pm
Family Problem
1. अपेक्षाएं
आत्मसाक्षात्कार हुए बिना कोई भी अपनी समझ को विकसित नहीं कर पाता। देह के साथ ही इच्छाएं, वासनाएं, अपेक्षाएं, अहंकार और साथ ही दया, सेवा, प्रेम भी पनपने लगते हैं। प्रभु के प्रेम में स्वयं को समर्पित करने से या ध्यान में बैठने से अथवा धार्मिक पुस्तकें पढ़ने से भी अपेक्षाएं समाप्त हो जाती हैं और संसार की नश्वरता का अनुभव हो जाता है तब मन शुद्ध होकर वश में रहता है।
2. अहंकार
मैं हूं के भाव में रहना और मेरा मेरा कहते रहना ही अहंकार है। महर्षि रमण ने कहा कि स्वयं से पूछो “मैं कौन हूं”। मैं कौन हूं जान लेने से अहंकार मिट जाता है।
3. लोभ
 भौतिक पदार्थों के प्रति लोभ अज्ञानता के कारण बढ़ता जाता है। लोभ बढ़ने से सारा संसार ख़रीद लेना चाहते हैं। जो है वो काफी नहीं ,और चाहिए। स्वयं को भूले इन्सान अंधी दौड़ में बड़ी सरलता से शामिल हो जाते हैं। भौतिक वस्तुओं के प्रति संग्रह भाव बढ़ जाने से व्यक्ति अन्याय करता है और क्रूर हो जाता है। सभी में लोभ की प्रवृत्ति बढ़ रही है।
4. संतुलन है मुख्य Family Problem
इंद्र जब क्रोध में आता तब अपने रथ को बहुत तेज दौड़ाता था ।अन्य किसी भी देवता की सफलता से द्वेष भाव से भरकर तेज आंधी चलाता, ओले बरसाता, तेज तेज आवाजें करता था। इसी प्रकार से हमारा मन भी  इंद्र है जो हरदम जलता, भुनता है और आपा खोकर सब तोड़ने फोड़ने लगता है। जब संसार में प्राणी आंखें खोलता है तो उसे अपने चारों ओर नश्वर पदार्थों के ढेर दिखते हैं और वह इंद्रियों के प्रभाव में रहता हुआ खूब भोग भक्ति की ओर बढ़ता है। प्रारब्ध से यदि उसे सत्संग मिल जाए तो वह रुकना सीख लेता है और उसकी चेतना इंद्रियों को परास्त करने लगती है । हम समझने लगते हैं कि अगले ही पल मृत्यु बिना बताए आ सकती है और हमने उसके स्वागत की अभी कोई तैयारी नहीं की है । नश्वर संसार की भंगुरता को अनुभव कर लेना ही सच्चा ज्ञान है। अकेला यही ज्ञान तुम्हें संतुलन में लाकर शांत कर देगा। आज की पीढ़ी जागरूक न रहने से किसी भी अति में जा रही है। अति में जाने से रोकने के लिए बचपन से ही बच्चों को उनकी मेंटल हेल्थ की सारी जानकारी देनी जरुरी है। किसी भी अति में न जाने से परिवार में सभी बहुत खुश रहेंगे।
Family Problem
हम आध्यात्मिक यात्रा पर चलते हुए अपने मन के स्वभाव को अच्छी तरह से जान लेते हैं और पाप करने की जगह पवित्र कर्म करते हुए अपनी प्रज्ञा जगा लेते हैं। प्रज्ञावन व्यक्ति प्रतिक्षण अनित्य के दर्शन करता है और समता में रहता है ।इस संसार में हर चीज दो रूपों में है जैसे- दिन रात, अंधेरा प्रकाश, लाभ हानि, सुख दुख , जन्म मृत्यु। सुख का दूसरा रुप दुख है। सुख अच्छा लगता है और दुख अच्छा नहीं लगता। सुख ही चाहिए दुख नहीं चाहिए। लेकिन ऐसा क्यों? इस पूरी कायनात में सुख है तो दुख भी अवश्य रहेगा। बुद्ध ने दुख मिटाने का उपाय बताया कि अपने आपको जान लेना और वर्तमान में जागरूक रहते हुए समता बनाए रखना। बुद्ध ने कहा सबसे पहले वाणी को शुद्ध बनाओ। कबीरदास कहते हैं –
“ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोए। औरन को सीतल करे आपहु सीतल होय”।।
प्रेम नहीं मिला अपेक्षा के अनुरूप
कोई हमें कितना भी रुलाए, सताए, हम पर आरोप लगाए, हमारी उपेक्षा करे, अपमान करे, नफरत करे तो कोई बड़ी बात नहीं। यह सब सामान्य है। बेचारे भोले मनुष्य अभी माया के चंगुल से छूटे नहीं हैं। इसलिए मन में लोभ चलता है, मोह चलता है, अहंकार चलता है। उन्हें अभी इतना प्रेम नहीं मिला जितने की उन्हें  जरूरत है। मन के विकारों की जेल में कैदी हैं बेचारे! सच्चे प्रेम की पाठशाला कभी नहीं गए। हमारे पास अपार सहनशक्ति हो। सहनशक्ति से हमारा मन बड़ा प्रसन्न रहता है।  हाड़ मांस के पुतले को न देखकर उनके भीतर पनप रहे राग और द्वेष से भरे चंचल मन को देखें ।उनका राग और द्वेष हमारे शुद्ध मन पर कोई प्रहार नहीं कर  पाता। हम किस-किस से भागें? राग कहां नहीं? द्वेष कहां नहीं? लोभ कहां नहीं ?अहंकार कहां नहीं? मन के विकारों के साक्षी बनें और खुश रहें ।दुखी रहने की हमारे पास कोई वजह न हो।
“तुलसी भरोसे राम के निर्भय, होके सोए”।
तुलसी दासी नए और ऊर्जावान विचारों से लोगों को निर्भय बनाते हैं। कर्ता न बनकर सब रामजी को सौंप दो।
पहले बहू के विचारों को सुनो
Family Problem से बचने के लिए समय के साथ अपने विचारों और आदतों में बदलाव लाएं। पहले अपनी बहू के विचारों को सुनो और समझो फिर समय के अनुरूप  प्यार से समझौता बनाएं
बहू हमारे बेटे का भविष्य है। हमारी आने वाली पीढ़ी की जन्म दाता है इसलिए उसके साथ अपनी बेटी जैसा प्यार देना चाहिए। उसकी गलतियों को न देखो। बहू हमारे घर की शान है इसलिए उसका पूरा ख्याल रखना चाहिए। प्रतिक्षण मन को साफ करते रहें और माफ करते हुए कृतज्ञता का भाव बनाए रखें।
(मृदुला दुबे आध्यात्मिक चिंतक और योग साधक हैं)

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