Jammu-Kashmir Assembly Election
नेकां-कांग्रेस देंगे मजबूत चुनौती
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी की नेशनल कांफ्रेंस के नेताओं के साथ बुधवार और गुरुवार को हुई बैठक के बाद जिस प्रकार सीटों पर सहमति बन रही है। वह भाजपा को मजबूत चुनौती देगी। गुरुवार को नेशनल कांफ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला ने दोनों दलों के बीच गठबंधन हो जाने घोषणा की। उन्होंने कहा कि राज्य की सभी 90 सीटों पर सहमति बन जाएगी।
यहां उल्लेखनीय है कि नेकां-जितनी मजबूत कश्मीर घाटी में है, उतनी ही जम्मू संभाग के कुछ इलाकों में। चिनाब वैली हो अथवा पीरंपंजाल का इलाका, दोनों नेकां को रास आते हैं। ऐसे में कांग्रेस का साथ उनके लिए सोने में सुहागा का काम करेगा। इस गठबंधन की औपचारिक घोषणा फारूक अब्दुल्ला ने तो कर दी है लेकिन कांग्रेस की ओर से होनी बाकी है।
इन दोनों दलों के बीच जिस प्रकार सहमति बन रही है वह भाजपा को मजबूत चुनौती देगी। नेकां-जितनी मजबूत कश्मीर घाटी में है, उतनी ही जम्मू संभाग के कुछ इलाकों में। चिनाब वैली हो अथवा पीरंपंजाल का इलाका दोनों नेकां को रास आते हैं। ऐसे में कांग्रेस का साथ उनके लिए सोने में सुहागा का काम करेगा। इस गठबंधन की औपचारिक घोषणा अभी बाकी है।
कश्मीर में भाजपा का नहीं है कोई सीधा आधार
सबसे बड़ी पार्टी के रूप में भाजपा के लिए यह चुनाव इस हकीकत के साथ चुनौती हैं कि कश्मीर में पार्टी का सीधा कोई आधार नहीं है। यह हकीकत पार्टी भी जानती है। इसलिए वह हर उस समीकरण को आजमाना चाहती है जो उसे सत्ता की सीढ़ी तक पहुंचा दे। इसीलिए अंतिम मौके पर पार्टी ने कश्मीर मामलों के पुराने खिलाड़ी राम माधव को मैदान में उतार कर विपक्षियो के साथ खुद अपनी पार्टी को भी चौंका दिया है।
जम्मू में भाजपा की स्थिति ठीक लेकिन सत्ता दिलाने लायक नहीं
जानकार बताते हैं कि जम्मू संभाग में भाजपा की स्थिति ठीक है परंतु इतनी ठीक भी नहीं है कि वह सत्ता के दरवाजे तक उसे अकेले ले जा सके। फिर पार्टी खुद मानती है कि कश्मीर में उसकी स्वीकार्यता का प्रतिशत काफी कम है। ऐसे में उसे बाहर से समर्थन जुटाना होगा। कुछ निर्दलियों पर पार्टी दांव लगा रही है परंतु उनकी विश्वसनीयता पर पार्टी खुद मुतमईन नहीं है। ऐसे में पार्टी को एक मंजे हुए रणनीतिकार की जरूरत थी। ऐसे में राम माधव के अनुभव को देखते हुए उन्हें कमान जी किशन रेड्डी के प्रदेश चुनाव प्रभारी रहते हुए कमान सौंपी गई है। संभवतः भाजपा के इतिहास में यह पहला मौका है जब एक ही प्रदेश में दो लोगों को चुनाव प्रभारी की जिम्मेदारी सौंपी गई है।
Jammu-Kashmir Assembly Election
करीब एक दशक पीछे चलें तो 2015 में भाजपा के लिए प्रदेश में परिस्थितियां और भी ज्यादा कठिन थीं। पार्टी ने राम माधव को उस समय यहां की जिम्मेदारी सौंपी। जिसे बखूबी निभाते हुए प्रदेश में उन्होंने पीडीपी और भाजपा जैसे दो धुर विरोधी दलों को एक मंच पर लाकर सरकार बनवा दी। इसका सारा श्रेय राम माधव को दिया गया। माना गया कि उन्हीं की लिखी स्क्रिप्ट पर पूरा खेल खेला गया। उस दौरान भाजपा पीडीपी के साथ बी टीम की भूमिका में थी।
Jammu-Kashmir Assembly Election
वर्तमान चुनाव में भाजपा अनुच्छेद 370 व 35 ए की समाप्ति, आर्थिक समृद्धि, घाटी में आतंकवाद पर नकेल जैसी सफलताओं को पूरे देश में भुनाने के बाद अब लीडर की भूमिका में खुद को देख रही है। जमीनी हकीकत का भी उसको अंदाजा है। इसीलिए राम माधव की वापसी को बड़े कदम की भूमिका के रूप में देखा जा रहा है। राम माधव भी इस हकीकत को समझते हैं। 20 अगस्त को जिम्मेदारी मिलने के अगले ही दिन वह श्रीनगर में थे। वह घाटी में क्यों थे इस पर आधिकारिक रूप से कोई बयान भले ही न आया हो परंतु सूत्र बताते हैं कि श्रीनगर में बुधवार को उतरने के बाद राम माधव ने अपने संपर्कों को फिर सक्रिय किया है। रणनीति बनाने के बाद यहीं से दिल्ली रवाना हो जाएंगे।
अकेले बहुमत से दूर मान भाजपा अभी से बना रही अपनी रणनीति
जानकार बताते हैं कि अकेले बहुमत का आंकड़ा न हासिल होने की स्थिति में भाजपा अभी से अपनी रणनीति बनाने में जुट गई है। राजनीति में कोई हमेशा के लिए शत्रु अथवा मित्र नहीं होता। इसलिए पार्टी की नजर एकबार फिर महबूबा मुफ्ती पर जा टिकी है। उसके पीछे कारण है कि लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन का हिस्सा होने के बावजूद नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस ने उन्हें कोई तवज्जो नहीं दी थी। मजबूरन महबूबा को अकेले ही अस्तित्तव की लड़ाई लड़नी पड़ी थी। विधानसभा में भी यही स्थिति है। ऐसे में महबूबा के सामने पार्टी के वजूद को बनाए रखना बेहद अहम है।
2019 के बाद जिस प्रकार महबूबा को राजनीतिक झटके लगे हैं उनसे पार पाने के लिए सत्ता के आसपास उनकी मौजूदगी अहम है। ऐसे में भाजपा के अलावा उनके पास कोई विकल्प फिलहाल नजर नहीं आता। कश्मीर के घाटी के विशेष रूप से दक्षिण कश्मीर के कुछ हिस्सों में उनकी पार्टी की पकड़ है। यदि वह कुछ उम्मीदवारों को जिता सकीं और उनकी संख्या दो अंकों मे हुई तो भाजपा के लिए वह विश्सनीय आसरा हो सकती हैं। राम माधव की चुनाव के समय जम्मू-कश्मीर में वापसी को वर्ष 2015 पार्ट -2 की भूमिका के रूप में देखा जा रहा है।
ये भी पढ़ें :-Kashmir से अनुच्छेद 370 हटने के बाद पहली बार चुनाव, अवाम के साथ नेता कितने तैयार?