कल्पना सिंह के कविता संग्रह “जो तुम हो, वही हूँ मैं” में है देश छोड़ने का दर्द

इस बार की चर्चा की पुस्तक है अप्रवासी भारतीय हिंदी कवयित्री कल्पना सिंह का कविता संग्रह "जो तुम हो, वही हूँ मैं".

Written By : प्रमोद कुमार झा | Updated on: January 16, 2025 7:01 pm

मूलतः ऐतिहासिक शहर गया की निवासी कल्पना सिंह वहां कॉलेज में अध्यापन कर रहीं थीं. पिछली शताब्दी के नवें दशक में कल्पना एक हिंदी कवयित्री के रूप में चर्चित हो चुकी थी. उनकी कविता संग्रह पर बिहार सरकार का ‘राजभाषा पुरस्कार’भी प्राप्त हुआ था .फिर कल्पना अमरीका चली गईं. वहाँ उन्होंने अंग्रेज़ी में भी ढेर सारी कविताएं लिखीं, कई संग्रह भी आए पर हिंदी में भी कविता लिखना जारी रहा. उनके हिंदी में कई संग्रह हैं.

उनकी कविताओं और संग्रहों का अनुवाद अरबी और दुनिया के कई भाषाओं में हो चुका है. कई अंतर्राष्ट्रीय कवि सम्मेलनों में कल्पना ने भाग लिया है. कल्पना ने अमेरिका जाकर फ़िल्म बनाने का बाजाब्ता प्रशिक्षण लिया है और वहाँ कई फिल्में भी बनाई हैं जो काफी चर्चित रही है . पर इन सब के बीच कल्पना सिंह मूलतः एक कवयित्री हैं. संग्रह के प्रारंभ में देश के प्रसिद्ध कवि ,लेखक लीलाधर मंडलोई लिखते हैं ‘ कल्पना सिंह की अपनी जुदा ज़मीन है, जो पूर्व से पश्चिम तक अपनी तरह से विस्तृत है. उसमें परंपरा का विकास आधुनिक समाज-संस्कृति तक आकार लेता है।’

समकालीन चर्चित कवि कुमार मुकुल इस संग्रह के प्रारंभ में अपनी टिप्पणी में कहते हैं कि ‘ कल्पना सिंह की कविताएँ एक गुस्ताखी हैं, क्षमायाचना सहित।’ वरिष्ठ लेखिका, कवयित्री डॉ अंजना संधीर ने विस्तार से लिखा है संग्रह पर .वह कहती हैं ‘ कल्पना सिंह एक ऐसी कवयित्री हैं जो सिर्फ नाम से ही कल्पना नहीं हैं, कल्पनायें उनके अंदर पल- पल तरंगित होती हैं और उनका संवेदनशील मन जो भी अनुभव करता है, उसे कागज पर उतार देता है.दो संस्कृतियों के बीच अपनी सांसों का बंटवारा वह किस तरह वह इस कविता संग्रह “जो तुम हो वही हूं मैं” में सर्वत्र दिखाई पड़ता है.’

113 पृष्ठ के इस कविता संग्रह में कल्पना ने अधिकांश पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित अपनी चुनी हुई चौअन कविताओं को शामिल किया है .कुछ कविताओं के शीर्षक देखिये तो कविताओं के मिज़ाज़ का अंदाज़ा लग जाएगा .ये शीर्षक हैं : एक गुस्ताखी, साँप और शिव, प्रेम, प्रकाश पर्व, मातृभाषा,नियंत्रण रेखा के उस पार, मेरा देश, अमेरिका में अंत्येष्ठि, आत्मा का भूगोल, स्वदेश, प्रेमिकाएं, संभ्रांत, रामायण इत्यादि. कल्पना की एक कविता की कुछ पंक्तियां देखिये : “कभी सोचती हूँ, मेरी मृत्यु पर/मेरे पार्थिव शरीर का क्या होगा?/ क्या इसे मेरे देश भारत भेजा जाएगा?/ फल्गु के तट पर अंत्येष्ठि और मुक्ति/ अब बस एक इच्छा मात्र!”

कल्पना की कविताएं भारतीय उन प्रवासियों की भावनाएं हैं जिन्हें अपना देश, अपना प्रदेश बार बार याद आता है पर विवशता है कि वो सब कुछ छाड़ कर आ भी नहीं सकते! कल्पना की भाषा सुंदर, शब्दों का विशाल भंडार और भावनाओं का ज्वारभाटा है. संग्रह पठनीय ही नहीं ,पुस्तकों की आलमारी की शोभा बढ़ाने लायक भी है.

संग्रह: जो तुम हो वही मैं हूँ

कवयित्री:कल्पना सिंह, प्रकाशक:अग्निपथ,यू.एस.ए/भारत

प्रथम संस्करण:2024

(प्रमोद कुमार झा तीन दशक से अधिक समय तक आकाशवाणी और दूरदर्शन के वरिष्ठ पदों पर कार्यरत रहे. एक चर्चित अनुवादक और हिन्दी, अंग्रेजी, मैथिली के लेखक, आलोचक और कला-संस्कृति-साहित्य पर स्तंभकार हैं।)

ये भी पढ़ें :-किताब का हिसाब: सत्या शर्मा ‘कीर्ति’ की “वक़्त कहाँ लौट पाता है” में पढ़ें 66 लघुकथा

2 thoughts on “कल्पना सिंह के कविता संग्रह “जो तुम हो, वही हूँ मैं” में है देश छोड़ने का दर्द

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *