इसके गंभीर परिणाम होंगे। इन तीनों देशों ने 28 मई मंगलवार को मान्यता देने की बात कही है। अभी तक भारत सहित दुनिया के 143 देश फलस्तीन को मान्यता दे चुके हैं। नार्वे को इजरायल का समर्थक माना जाता था लेकिन गाजा पर उसकी कार्रवाई ( Action on Gaza) का उसने शुरू से विरोध किया है।
फलस्तीन का नैतिक समर्थन
अमेरिका,( America) कनाडा,( Canada) आस्ट्रेलिया,( Australia) जापान,( Japan) दक्षिण कोरिया ( south Korea) और यूरोप के कुछ देश ही फलस्तीन को मान्यता नहीं दिए हैं। यूरोपीय संघ के 27 देशों में सात पहले ही मान्यता दे चुके हैं। इन देशों की मान्यता को फलस्तीन के नैतिक समर्थन के रूप में ही देखा जाना चाहिए। फलस्तीन कह सकता है कि यह उसके संघर्ष को समर्थन है। हमास और फलस्तीनी राष्ट्रपति ने इस कदम का स्वागत किया है। हमास ने कहा है कि यह हमारे लगातार प्रतिरोध और संघर्ष का परिणाम है। यह फलस्तीन मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय स्थिति में एक महत्वपूर्ण मोड़ है। फलस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने कहा है कि यह फैसला फलस्तीनी लोगों के आत्मनिर्णय को सुनिश्चित करेगा और इजरायल के साथ दो रार्ष्ट नीति पर समाधान लाने के प्रयासों का समर्थन करेगा।
प्राधिकरण को टैक्स नहीं : इजरायल
इजरायल ने कहा है कि वह उन लोगों के आगे नहीं झुकेगा जो उसकी संप्रभुता को कमजोर कर रहे हैं जबकि नार्वे के प्रधानमंत्री ने कहा है कि अगर मान्यता नहीं दी गई तो मध्य पूर्व में शांति स्थापित नहीं हो सकती। इससे हम अरब शांति योजना का समर्थन करते हैं। उधर इजरायल के विदेश मंत्री इजरायल कात्ज ने कहा कि हम इस पर शांत नहीं रहेंगे। इजरायल के वित्त मंत्री ने कहा है कि वह फलस्तीन प्राधिकरण को टैक्स हस्तांतरित नहीं करेंगे। इजरायल वेस्ट बैंक से टैक्स वसूलता है जिसे वह प्राधिकरण को हस्तांतरित करता है। प्राधिकरण ही गाजा की व्यवस्था देखता है।
अब तक 143 देशों का समर्थन
इन तीन देशों के अलावा स्लोवेनिया,माल्टा और बेल्जियम भी इस पर विचार कर रहे हैं कि फलस्तीन को कब मान्यता दी जाय। इस तरह यूरोप के और देश उसके समर्थन में आ रहे हैं। इसी महीने राष्ट्रसंघ के 193 सदस्य देशों में 143 इस बात के पक्ष में थे कि फलस्तीन को राष्ट्रसंघ में शामिल किया जाना चाहिए। इस साल बहमास,ट्रिनिडाड, टोबैगो, जमैका और बारबोडास ने फलस्तीन को मान्यता दी है। 2011 में यूनेस्को ने इसे अपनी सदस्यता दे दी थी जिससे नाराज हो कर अमेरिका ने यूनेस्को को फंड देने से मना कर दिया था। 2012 में महासभा ने इसे गैर सदस्य पर्यवेक्षक सीट देने का प्रस्ताव पारित किया था,। 2015 में इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट ने फलस्तीन को एक पार्टी के रूप में मान्यता दे दी है। 2014 में स्वीडेन इसे मान्यता देने वाला पश्चिमी यूरोप का पहला देश था।