केदारनाथ जी एक ही साथ उत्कृष्ट कवि,सम्मानित प्राध्यापक ,महत्वपूर्ण आलोचक और कुशल वक्ता के रूप में जाने जाते रहे. किताबघर प्रकाशन के ‘कवि ने कहा’श्रृंखला में केदारनाथ सिंह की कविताओं का चयन किया है जे. एन. यू .के भारतीय भाषा केंद्र के प्रातिष्ठित प्राध्यापक गोविंद प्रसाद जी ने. गोविंद जी पुस्तक की भूमिका में लिखते हैं : “कवि केदारनाथ सिंह के अबतक प्रकाशित सम्पूर्ण कृतित्वसे उनकी प्रतिनिधि कविताओं को छाँट निकालना एक कठिन काम है और चुनौती भरा भी।इस संकलन को तैयार करने में पहली कसौटी मेरी अपनी पसंद ही रही है।
पचास वर्षों में फैले कृतित्व में से श्रेष्ठतर को छांटकर यहां प्रस्तुत कर दिया है, ऐसा दावा मेरा बिल्कुल नहीं है।हाँ, इतनी कोशिश अवश्य है कि केदार जी की कविता के जितने रंग हैं, जितनी भंगिमाएं हैं उनकी थोड़ी बहुत झलक और आस्वाद पाठक को मिल सके।…यूं चयन दृष्टि का पता तो कविताएं खुद देंगी ही।” भूमिका के बाद कवि केदार नाथ सिंह का एक वक्तव्य भी शामिल किया गया है जिसे पढ़कर अंदाज़ लगाया जा सकता है कि कविता के संबंध में उनके विचार क्या हैं .
देखिए केदार जी की कुछ पंक्तियाँ : “……कवि को कविता के सामान्य स्वरूप पर तो बात करनी चाहिए, पर अपनी कविता के बारे में कुछ कहने से निरपेक्ष रहना चाहिए। इससे शायद कविता के सम्प्रेषण के ‘स्पेस’का दायरा खुला रहेगा -ज्यादा उन्मुक्त। यदि इतने से काम चल जाए तो सिर्फ इसी को मेरा वक्तव्य समझा जाए।” कवि और कविता के संबंध में इतनी सुलझी हुई बात कहने वाले प्रायः अकेले कवि होंगे केदार जी! इनकी कुछ कविताओं के शीर्षक देखिये “होंठ, लयभंग, बनारस, नंगी पीठ, त्रिनिदाद, विज्ञापन,मातृभाषा, सन 47 को याद करते हुए इत्यादि . कविताओं का विषय कुछ भी हो सकता है .कविताएं मनुष्य की अलग अलग समय में चिंताओं, विचारधाराओं की अभिव्यक्ति हैं. उनहत्तर चुनी हुई छोटी कविताओं के इस संग्रह में कवि के व्यक्तित्व की पूरी झलक मिल जाती है .भाषा ,शब्द विन्यास, देशज शब्दों का आकर्षक प्रयोग के दृष्टिकोण से संग्रह उत्कृष्ट है. संग्रह में एक दो लंबी कविता भी शामिल की जातीं तो और भी आनंददायक होता . संग्रह पठनीय और संग्रहणीय है.
पुस्तक: कवि ने कहा: चुनी हुई कविताएँ-केदारनाथ सिंह।
प्रकाशक : किताबघर प्रकाशन, पृष्ठ:120,मूल्य:रु 190.

(प्रमोद कुमार झा तीन दशक से अधिक समय तक आकाशवाणी और दूरदर्शन के वरिष्ठ पदों पर कार्यरत रहे. एक चर्चित अनुवादक और हिन्दी, अंग्रेजी, मैथिली के लेखक, आलोचक और कला-संस्कृति-साहित्य पर स्तंभकार हैं।)
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