कविता भाषा का संगीत है, और संगीत ध्वनि की कविता है: जावेद अख्तर

इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र (आईजीएनसीए) में भारत के पहले क्यूरेटेड संगीत शोकेस फेस्टिवल और वैश्विक सम्मेलन ‘साउंडस्केप्स ऑफ़ इंडिया’ के दूसरे सीजन की शानदार शुरुआत हुई। 10-12 सवंबर तक चलने वाले इस तीन दिवसीय फेस्टिवल का आयोजन इंडियन परफॉर्मिंग राइट सोसाइटी लिमिटेड (आईपीआरएस) ने भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के समर्थन से कर रहा है। इसमें आईपीआरएस का सहयोग किया है म्यूजीकनेक्ट इंडिया ने। फेस्टिवल की शुरुआत के अवसर पर आईपीआरएस के अध्यक्ष प्रसिद्ध शायर, गीतकार और पटकथा लेखक पद्म भूषण जावेद अख्तर ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को सम्बोधित किया और फेस्टिवल सहित कई मुद्दों पर विस्तार से बातचीत की। आईपीआरएस के मुख्य कार्यकारी अधिकारी राकेश निगम और प्रोफेशनल स्टोरीटेलर व स्क्रीनराइटर मयूर पुरी ने भी सम्बोधित किया। पहले दिन जावेद अख्तर ने सॉन्गराइटिंग पर आयोजित एक विशेष सत्र को भी सम्बोधित किया।

Written By : Ramnath Rajesh | Updated on: November 10, 2025 10:14 pm

द आर्ट ऑफ़ सॉन्ग राइटिंग’ शीर्षक से आयोजित इस सत्र में जावेद अख्तर ने कविता, संगीत और सृजनात्मकता के गहरे संबंध पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा, “कविता भाषा का संगीत है, और संगीत ध्वनि की कविता है,” उन्होंने कविता की लय और संगीत के सामंजस्य के बीच समानता स्थापित करते हुए इसे पाइथागोरस के अनुपात और संतुलन के दर्शन से भी जोड़ा। श्री अख़्तर ने कहा कि कविता और संगीत दोनों ही पूर्ण छंद, लय और अनुनाद पर आधारित संरचनाएं हैं, और जब ये दोनों एक साथ आते हैं, तो “यह एक अद्भुत संयोजन बन जाता है, जो भाषाई या सांस्कृतिक सीमाओं से परे लोगों के हृदय तक पहुँचता है।”

गद्यात्मक कविता एक छलावा है- जावेद अख्तर

समकालीन काव्य प्रवृत्तियों पर अपने विचार प्रकट करते हुए  अख़्तर ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि प्रोज़ पोएट्री (गद्यात्मक कविता) ‘एक छलावा’ और ‘धोखा है। उनके अनुसार, गद्य कविता में लय और संगीतात्मकता का अभाव उसे कविता के सार से दूर कर देता है। यदि वह पोएटिक प्रोज़ होती, तो उसे उचित ठहराया जा सकता था। उन्होंने कहा, “लेकिन प्रोज़ पोएट्री से उसका राग और लय छीन लेती है।” उनके मत में, सच्ची कविता का प्रमाण उसकी गेयता में निहित है।
उन्होंने आगे कहा कि कविता प्रतीकों और अर्थों का निर्माण करती है, जो बिना साहित्यिक प्रशिक्षण के भी पाठकों से जुड़ सकते हैं, बशर्ते वह अनुशासन और लय के साथ लिखी जाए। उन्होंने कहा, “कविता लिखना कठोर अभ्यास मांगता है। एक कवि को कविता पढ़नी चाहिए और यह समझना आवश्यक है कि कविता में शब्दों का अर्थ केवल शब्दकोशीय नहीं होता। शब्द अपने संबंध, प्रभाव और पहचान बनाते हैं, और यह प्रक्रिया अवचेतन स्तर पर होती है। यही असली सृजन का आधार है।

फ़िल्मी गीतों की गुणवत्ता में गिरावट पर पूछे गए प्रश्न के उत्तर में अख़्तर ने कहा कि समाज स्वयं अपनी रचनात्मक गिरावट का दर्पण है। उन्होंने कहा, “आप मुझे समाज के बारे में बताइए, मैं आपको उसकी सौंदर्यबोध की स्थिति बता दूँगा।” उन्होंने टिप्पणी की कि आज शिक्षा केवल रोज़गार पाने का माध्यम बन गई है, समझ विकसित करने का नहीं। जब सीखने का उद्देश्य केवल कमाई हो, तो उसमें काव्यात्मक गहराई कैसे आ सकती है!”

कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) पर अपने विचार व्यक्त करते हुए श्री अख़्तर ने कहा, “AI एक सक्षम माध्यम तो हो सकता है, पर रचनात्मक नहीं।” उन्होंने कहा, “कला चेतन और अवचेतन मन के बीच स्थित नो मैन्स लैंड से जन्म लेती है।” प्रत्येक कला में भावना, कल्पना, जुनून और शिल्प कौशल का मेल होता है, जो किसी यांत्रिक प्रक्रिया से संभव नहीं। शिक्षा और सांस्कृतिक समझ पर विचार करते हुए उन्होंने कहा कि आज समाज में कला को समझने और सराहने की क्षमता घट रही है। उन्होंने कहा, “अपने जुनून का अनुसरण करना नदी के सागर तक पहुँचने जैसा है, वह स्वयं अपना मार्ग बना लेती है।”

प्रेस कॉन्फ्रेंस में जावेद अख़्तर ने भारत को “संगीत का देश” बताया, और इसके विविध व समृद्ध संगीत परंपराओं की चर्चा की। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश, पूर्वोत्तर भारत सहित भारत के विभिन्न प्रांतों में संगीत के संदर्भ में बहुत संभावनाएं हैं, जिन्हें तलाशा जाना बाकी है। साउंडस्केप्स ऑफ़ इंडिया के आयोजन के बारे में बात करते हुए उन्होंने बताया कि यह कोई टैलेंट हंट नहीं, बल्कि प्रतिभा का शोकेस है। यह एक प्रयास है रचनात्मकता और बाज़ार को जोड़ने का।
उन्होंने संस्कृति मंत्रालय और आईजीएनसीए के सहयोग की सराहना करते हुए जावेद अख्तर ने कहा कि मंत्रालय ने कलाकारों को सशक्त बनाने और अनूठी सांस्कृतिक पहल को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। तीन दिनों का यह फेस्टिवल आईजीएनसीए में आयोजित हो रहा है, जिसमें 100 से अधिक कलाकार और 24 बैंड शामिल परफॉर्म करेंगे। इस फेस्टिवल में दो अंतरराष्ट्रीय कलाकार और 15 से अधिक ग्लोबल फेस्टिवल डायरेक्टर, क्यूरेटर, पॉलिसी मेकर और इंडस्ट्री के लीडर शामिल हो रहे हैं। इन बैंडों में संगीत की विविध धाराएं देखने को मिलेंगी, जिसमें फोक-फ़्यूज़न, क्लासिकल-फ़्यूज़न, हिप-हॉप, जैज़, मेटल, पॉप और रॉक जैसी शैलियों का संगम होगा। भाषाई विविधता भी इस उत्सव की एक विशेषता होगी, जहाँ कलाकार अंग्रेज़ी, हिन्दी, कोंकणी, लद्दाखी और तमिल सहित अनेक भारतीय भाषाओं में गीत प्रस्तुत करेंगे।

इस आयोजन में न केवल संगीत प्रेमियों की उपस्थिति रहेगी, बल्कि यह देश के कलाकारों के लिए अंतरराष्ट्रीय अवसरों का द्वार भी खोलेगा। कार्यक्रम में कनाडा, मिस्र, एस्टोनिया, जर्मनी, इंडोनेशिया, जापान, नीदरलैंड, पोलैंड, पुर्तगाल, दक्षिण कोरिया, स्पेन और थाईलैंड सहित 15 देशों से आए फेस्टिवल डायरेक्टर, बुकिंग एजेंट और प्रमोटर शामिल होंगे।

पिछले वर्ष के संस्करण ने कई उभरते भारतीय बैंडों के लिए नए रास्ते खोले। उदाहरण के तौर पर, ‘बाउल मोन’ नामक बंगाली लोक-संगीत तिकड़ी ने इसी मंच के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय पहचान बनाई। उन्हें दक्षिण कोरिया के ग्वांगजू में आयोजित ‘बस्किंग वर्ल्ड कप’ में भाग लेने का अवसर मिला, जहां उन्होंने न केवल हिस्सा लिया, बल्कि विजेता का खिताब भी अपने नाम किया। इसी प्रकार, दिल्ली स्थित फोक और क्लासिकल-फ़्यूज़न परकशन ग्रुप ‘ताल फ्राय’ ने इस मंच से आगे बढ़ते हुए कुचिंग (मलेशिया) में आयोजित प्रतिष्ठित ‘रेनफॉरेस्ट वर्ल्ड म्यूज़िक फेस्टिवल’ में अपनी प्रस्तुति दी।

‘साउंडस्केप्स ऑफ़ इंडिया’ केवल एक संगीत उत्सव नहीं, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक और भाषाई विविधता का जीवंत उत्सव है, जो भारतीय कलाकारों को वैश्विक संगीत समुदाय से जोड़ता है। यह पहल भारत को न केवल एक उपभोक्ता बाजार के रूप में, बल्कि एक सृजनशील संगीत महाशक्ति के रूप में स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

जैसे-जैसे भारत का संगीत जगत अंतरराष्ट्रीय पहचान प्राप्त कर रहा है, वैसे-वैसे ‘साउंडस्केप्स ऑफ़ इंडिया’ जैसी पहलें यह साबित कर रही हैं कि भारतीय संगीत की ध्वनियां अब केवल सीमाओं के भीतर नहीं, बल्कि पूरे विश्व में गूंज रही हैं।

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