कवि और कविता : पढ़ें श्रीकांत त्रिवेदी, नासिर अली ‘नदीम’ और कपिल कुमार को

कवि और कविताएं की इस कड़ी में शरत पूर्णिमा के अवसर पर लिखी गई श्रीकांत त्रिवेदी की कविता, नासिर अली 'नदीम की लिखी ग़ज़ल और बेल्जियम से कपिल कुमार की प्यारी से रचना के साथ विश्वनाथ शिरढोणकर की रेसिपी नेतागिरी की बर्फी की ।

Written By : रामनाथ राजेश | Updated on: November 5, 2024 2:50 pm

Poets and Poems

शरद पूर्णिमा
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कलम आज कुछ ऐसा लिख!
महा रास के जैसा लिख!!
प्रेमभूमि बरसाने सी लिख,
मन वृंदावन जैसा लिख!!
कलम आज कुछ ऐसा लिख!
राधा के पायल की छन छन,
कंगन की,चूड़ी की खनखन,
पांवों के नूपुर की रुनझुन,
सप्तम स्वर के जैसा लिख !
कलम आज कुछ ऐसा लिख!
गोकुल का महका सा उपवन,
नंद यशोदा का जीवन धन,
मोहन का मोहक चंचलपन,
यमुना जल के जैसा लिख!
कलम आज कुछ ऐसा लिख!
शरद पूर्णिमा की रजनी में,
निधिवन की पावन धरनी में,
सभी गोपियां सुध बुध भूलीं,
वंशी के स्वर जैसा लिख!
कलम आज कुछ ऐसा लिख!
पूर्ण चंद्र था नील गगन में,
हरसिंगार की महक पवन में,
कृष्ण समाए सबके मन में ,
मन मधुवन हो ऐसा लिख!!
कलम आज कुछ ऐसा लिख!
हर गोपी के संग में मोहन,
राधा के अंग अंग में मोहन,
यमुना तट कण कण में मोहन,
सृष्टि कृष्ण मय ऐसा लिख!
कलम आज कुछ ऐसा लिख!
कृष्ण हो रहे थे राधा मय,
राधा सदा सदा मोहन मय,
सुध बुध भूले सभी देव गण,
रास अलौकिक ऐसा लिख!
कलम आज कुछ ऐसा लिख!
कलम आज कुछ ऐसा लिख!!

 

-श्रीकांत त्रिवेदी, लखनऊ (भारतीय स्टेट बैंक के पूर्व प्रबंधक, 4 पुस्तकें प्रकाशित, विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविताएं और कहानियों का नियमित लेखन)

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poets and Poems

शरद पूर्णिमा

ग़ज़ल
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देखियेगा जिधर, है उधर चंद्रमा
मुझसे कहता है यह रात-भर, चंद्रमा

बिंब दिखता इधर है हर-इक झील में
मुस्कुराता है लखकर, उधर चंद्रमा

तम जगत का हरे, बदलियों से लड़े
व्योम भर में फिरे है निडर चंद्रमा

बीच में जो भी दर्पण के था, हट गया
अब उधर चंद्रमा है, इधर चंद्रमा

सारे जग का है वह, एक-दो का नहीं
जगमगाये हर इक गाँव-घर चंद्रमा

धीर सागर की गंभीरता भी तजे
आये पूनम को जब सज-संँवर चंद्रमा

फिर चकोरी निहारे न आकाश को
देख ले जो कभी भूमि पर चंद्रमा

मन की थाली में जो प्रेम का जल भरे
आये उसके ही आंँगन उतर चंद्रमा

हां ‘नदीम’ एक दुल्हन भी होगी कहीं
तारे बाराती हैं और वर चंद्रमा

-नासिर अली ‘नदीम’, जालौन, 50 वर्षों से हिंदी और उर्दू में समान रूप से लेखन, हिंदी ग़ज़ल लेखन में खास पहचान. संप्रति: संपादक -‘अदबनामा’

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Poets and Poems

जाओ तुम क्या प्यार करोगे

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जीना ही बेकार करोगे
जाओ तुम क्या प्यार करोगे

तुमने किससे प्यार किया है
जो तुम हमसे प्यार करोगे

हमको ये मालूम नही था
तुम भी हम पर वार करोगे

देखें आख़िर सच्चाई से
कब तक तुम इनकार करोगे

ये दिल तोड़ा , वो दिल तोड़ा
ये तुम कितनी बार करोगे

-कपिल कुमार, बेल्जियम(अभिनेता, लेखक और पत्रकार। 30 वर्षों से यूरोप में। गज़ल की आधा दर्जन पुस्तकें प्रकाशित. दर्जनों संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत।)

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एक रेसिपी-नेतागिरी की बर्फी !!
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-एक चम्मच श्रम लीजिये,

इसमें दो चम्मच असम्भव से कुछ लक्ष्य मिलाइये,

इनमें तीन चम्मच आंकड़ों की बाजीगरी डालिये,

अब चार चम्मच स्वार्थ की शक्कर मिला लीजिये,
पांच चम्मच आशावाद का गुड मिलाइये,

छ: चम्मच खुशामद मिलाइये,

इनमें सात चम्मच मक्कारी का अर्क मिलाइये,

आठ चम्मच हाथ झटकने और अनभिज्ञता का पावडर मिलाइये,

नौ चम्मच शातिर राजनीति का घोल डालिये,

झूठ और फरेब का एक चम्मच नमक डालिये,

स्वाद के लिए थोड़ी सेवाभाव की इलायची मिलाइये,

लीजिये मिश्रण तैयार हो गया. अब सब की बर्फी बना लीजियें

लीजिये उस पर नामी दादा-भाई बाजार की गुंडई का वर्क चढ़ा लीजिये
लीजिये तैयार हो गयी नेतागिरी की सुनहरी बर्फी !

चुनाव के कुछ समय पहले से
इसे अपने मतदाताओं में निरंतर बाटते रहे
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विश्वनाथ शिरढोणकर, इंदौर (हिंदी/मराठी में 25 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित. विश्वविद्यालय के पाठयक्रम में एक कविता और एक कहानी का समावेश. सोशल मीडिया पर 10 लाख से अधिक पाठक. ऑडिओ बुक में उपन्यास एवं 18 कहानियां.)

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