नई दिल्ली: गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ (एक देश, एक चुनाव) के महत्व पर जोर देते हुए इसे सुशासन की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम बताया। उन्होंने कहा कि यह नीति शासन में स्थिरता, संसाधनों का कुशल उपयोग, वित्तीय बचत और नीति गतिरोध को रोकने में सहायक हो सकती है।
राष्ट्रपति ने अपने संबोधन में कहा, “इस योजना के माध्यम से शासन को सुगठित और प्रभावी बनाया जा सकता है। यह कदम देश के विकास की गति को तेज करेगा और वित्तीय बोझ को कम करेगा।”
औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्ति की दिशा में बड़ा कदम
राष्ट्रपति मुर्मू ने औपनिवेशिक मानसिकता को समाप्त करने के लिए सरकार के प्रयासों का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि ब्रिटिश युग के कानूनों को बदलकर नए और आधुनिक कानून लागू करना इस दिशा में एक साहसिक कदम है। उन्होंने नए कानूनों जैसे ‘भारतीय न्याय संहिता’, ‘भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता’ और ‘भारतीय साक्ष्य अधिनियम’ का जिक्र किया, जिनका उद्देश्य न्याय वितरण को प्राथमिकता देना है।
आर्थिक प्रगति और समावेशी विकास पर जोर
राष्ट्रपति ने पिछले वर्षों में भारत की आर्थिक वृद्धि दर और इसके द्वारा सृजित रोजगार के अवसरों का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि किसानों और श्रमिकों की आय में वृद्धि हुई है और गरीबी रेखा से बाहर आने वाले लोगों की संख्या में इजाफा हुआ है।
उन्होंने सरकार की समावेशी विकास नीतियों की सराहना करते हुए कहा कि यह विकास योजनाएं दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए समर्पित हैं। इसमें ‘प्रधानमंत्री अनुसूचित जाति अभ्युदय योजना’ और ‘प्रधानमंत्री जनजाति न्याय महा अभियान’ जैसे कार्यक्रम शामिल हैं।
शिक्षा और तकनीकी क्षेत्र में सुधार
राष्ट्रपति ने शिक्षा क्षेत्र में हुई प्रगति की भी सराहना की। उन्होंने बताया कि डिजिटल समावेश और क्षेत्रीय भाषाओं में शिक्षा के माध्यम से सीखने की गुणवत्ता में सुधार हुआ है। विशेष रूप से महिला शिक्षकों की बढ़ती संख्या का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि वे इस बदलाव की धुरी बनी हैं।
गांधीजी के आदर्शों पर बल
महात्मा गांधी का उल्लेख करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि सुशासन और नागरिक जीवन में नैतिकता का महत्व अत्यधिक है। उन्होंने गांधीजी के शब्दों को दोहराते हुए कहा, “यदि स्वराज हमें सभ्य नहीं बनाता, तो उसका कोई मूल्य नहीं।”
भविष्य की ओर आशावाद
राष्ट्रपति ने देशवासियों से गांधीजी के सत्य, अहिंसा और करुणा के आदर्शों का पालन करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि युवाओं, खासकर महिलाओं के सपने, आने वाले समय में भारत के भविष्य को परिभाषित करेंगे।
अपने संबोधन के अंत में उन्होंने संविधान के 75 वर्षों की यात्रा पर प्रकाश डालते हुए इसे भारत की प्रगति और सामूहिक पहचान का आधार बताया। उन्होंने सभी नागरिकों से भारत को एक समृद्ध, समावेशी और नैतिक राष्ट्र बनाने की दिशा में काम करने का आग्रह किया।
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