Ram Katha
इसी वर्ष 25 जनवरी 1987 से दूरदर्शन पर रामानंद सागर का धारावाहिक ‘रामायण’ प्रसारित होना प्रारंभ होता है, जिसे बनाने की प्रेरणा रामानंद सागर को लगभग 12 वर्ष पहले अमेरिका में पहली बार टीवी देखकर मिली थी। यह धारावाहिक लोकप्रियता के शिखर को स्पर्श करने में सफल रहता है और इसकी लोकप्रियता का अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि विदेशों में भी इसके प्रसारित होने के समय लोग टीवी से चिपककर बैठ जाया करते थे।
वाल्मीकि रामायण तथा विश्व की सभी प्रमुख राम कथाओं का आधार लेकर अत्यंत परिश्रम से निर्मित छोटे परदे की इस राम कहानी के अत्यधिक प्रभावशाली होने का अनुमान आप इस बात से लगा सकते हैं कि इसके विषय में प्रतिदिन रामानंद सागर के पास लाखों पत्र देश-विदेश से आया करते थे और उन्हें प्रत्येक एपिसोड के अंत में स्वयं टीवी पर आकर कुछ प्रश्नों के उत्तर देने पड़ते थे।
यह कहना भी अनुचित न होगा कि टीवी के दर्शकों में अभूतपूर्व वृद्धि का श्रेय रामायण धारावाहिक को दिया जाना चाहिए। रामायण के सीता, राम, हनुमान, रावण क्रमशः दीपिका चिखलिया, अरुण गोविल, दारा सिंह और अरविन्द त्रिवेदी एवं अन्य सभी पात्रों ने सफलता का जो स्वाद चखा, उसका जादू आज भी बरकरार है। इस धारावाहिक की असीम लोकप्रियता और दर्शकों की माँग के आगे झुकते हुए रामानंद सागर ने ‘उत्तर रामायण’ का भी निर्माण किया और इस धारावाहिक को भी अपार लोकप्रियता और दर्शकों का असीम प्यार मिला।
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सन 1992 में जापानी फिल्म निर्माता युगो साको ने रामायण के दस भिन्न-भिन्न संस्करणों का आधार लेकर ‘रामायण : द लेजेंड ऑफ प्रिंस राम’ का एनिमेशन स्वरूप में फिल्मांकन किया, जिसके अंतरराष्ट्रीय वॉयस ओवर में राम को ब्रायन कैन्सटन/निखिल कपूर और हिन्दी संस्करण में अरुण गोविल ने आवाज़ दी। इस फिल्म के लिए युगो साको ने कहा था कि वह भगवान राम की पावन गाथा को धरती के समस्त लोगों को दिखाने के लिए ही इस फिल्म को बना रहे हैं। कोइची ससाकी और राम मोहन के निर्देशन में नब्बे करोड़ येन में दस साल में बनकर तैयार होने वाली इस फिल्म को सीमित सफलता मिलने के बावजूद आज यह फिल्म विश्व सिनेमा में क्लासिक फिल्म का दर्जा रखती है।
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सन 1997 में उत्तर रामायण का आधार लेकर वी. मधुसूदन राव के निर्देशन में ‘लव कुश’ फिल्म प्रदर्शित होती है, जिसमे जितेंद्र राम, अरुण गोविल लक्ष्मण, जयाप्रदा सीता, दारा सिंह हनुमान और प्राण वाल्मीकि की भूमिका में थे। इस फिल्म की दिक्कत यह थी कि दर्शक जंपिंग जैक और खिलंदड़ छवि के अभिनेता जितेंद्र को ढलती उम्र में राम के धीर-गंभीर एवं चिरयुवा रूप से नहीं जोड़ पा रहे थे और जिन दर्शकों ने दस वर्ष पहले अरुण गोविल को राम के रूप में सर-आँखों पर बैठाया था, वे उन्हें लक्ष्मण के रूप में भला कैसे स्वीकार करते? अतः असफल होना इसकी स्वाभाविक नियति थी।
इस संदर्भ में सन 2004 में आई मणि शंकर की फिल्म ‘रुद्राक्ष’ की चर्चा किया जाना अनावश्यक न होगा, जिसमें राम भक्त हनुमान के बल तथा राक्षसराज रावण की असीमित शक्तियों की कथा को आधुनिक संदर्भों से जोड़ने का प्रयास किया गया था, किन्तु हनुमान भक्त के रूप में संजय दत्त तथा रावण के प्रतीक के रूप में सुनील शेट्टी को दर्शकों द्वारा स्वीकार न किए जाने के करण एक अच्छी कहानी पर निर्मित यह फिल्म सफल न हो सकी।
Ram Katha
अगले वर्ष अर्थात सन 2005 में परसेप्ट पिक्चर कंपनी के बैनर तले वी.जी. सावंत के निर्देशन में ‘हनुमान’ नामक एनीमेशन फिल्म प्रदर्शित हुई, जिसे हिंदी और तेलुगु भाषाओं में एक साथ प्रदर्शित किया गया। इस फिल्म के हिंदी संस्करण में मुकेश खन्ना और तेलुगु संस्करण में चिरंजीवी ने हनुमान के पात्र को आवाज़ दी थी। इस फिल्म की बच्चों के मध्य यापार लोकप्रियता को देखते हुए सन 2007 में ‘हनुमान रिटर्न्स’ नाम से इसका दूसरा भाग प्रदर्शित किया गया और यह भी प्रयोग भी सफल रहा।
राम कथा एवं अन्य पौराणिक पात्रों पर आधारित एनिमेटेड फिल्मों की सफलता को देखते हुए सन 2010 को दशहरे के अवसर पर चेतन देसाई ‘रामायण : द एपिक’ नाम से एनिमेशन फिल्म लेकर आते हैं और यह फिल्म भी दर्शकों को पसंद आती है। इस फिल्म में मनोज बाजपेयी ने राम, जुही चावला ने सीता और आशुतोष राणा ने रावण की आवाज दी थी।
वर्ष 2012 में एक अन्य एनिमेशन आधारित थ्री डी फिल्म ‘संस ऑफ रामा’ के नाम से प्रदर्शित हुई थी, जिसे टोरंटो एनिमेशन आर्ट्स फेस्टिवल में प्रदर्शित किया गया था। अमर चित्र कथा कॉमिक्स के लेखकों अनंत पै और राम वईरकर द्वारा लिखित एवं कुशल रुइया द्वारा निर्देशित इस फिल्म में सीता को गायिका सुनिधि चौहान आवाज़ देती हैं। यह फिल्म बच्चों में सीमित प्रभाव छोड़ने में सफल रहती है।
सन 2017 में एनिमेशन फिल्मों की शृंखला में रुचि नारायण द्वारा निर्देशित ‘हनुमान : द दमदार’ फिल्म प्रदर्शित होती है, जिसमें सलमान खान हनुमान, रवीना टंडन माता अंजनी और जावेद अख्तर महर्षि वाल्मीकि को आवाज देते हैं, किन्तु यह फिल्म अधिक सफल नहीं हो पाती।

(प्रो. पुनीत बिसारिया बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय, झाँसी में हिंदी के प्रोफेसर हैं और फिल्मों पर लिखने के लिए जाने जाते हैं। वे द फिल्म फाउंडेशन ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं तथा गोल्डेन पीकॉक इंटरनेशनल फिल्म प्रोडक्शंस एलएलपी के नाम के फिल्म प्रोडक्शन हाउस के सीईओ हैं।)
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