satire
झम्मन: बड़े उनींदे दिख रहे हो, सिरम्मन!
सिरम्मन: हां यार। सारी रात सपना देखने में गुज़र गई।
झम्मन: देखो -देखो। जी भर के देखो। 60 के बाद कब्र के सपने तो देखने ही चाहिए।
सिरम्मन: और नेता लोगों को?
झम्मन: उनको भी देखना चाहिए।
सिरम्मन: बाइडेन कौन सा सपना देख रहे थे?
झम्मन: वे च्यवनप्राश के जार का सपना देख रहे थे।
सिरम्मन: क्या बेतुकी बात करते हो!
झम्मन: बेतुकी नहीं। समझाता हूं।
सिरम्मन: समझाओ। (Satire)
झम्मन: हुआ यह था कि बाइडेन बुढ़ापे के कारण संन्यास के मूड में आ गए थे। एक दिन उन्हें एक भारतीय बाबा मिल गया। उसने राष्ट्रपति को महर्षि च्यवन का किस्सा सुनाया। बाइडेन का मुरझाया मन किस्सा सुन कर हरियाने लगा। फिर यह जानकर वे मुरझा गए कि पुनर्यौवन प्राप्ति का यह किस्सा सतयुग का है। बाबा ने उन्हें ढाढस बंधाया। बोला परेशान न हों। भारत में सतयुग न सही, अमृतकाल तो चल ही रहा है। इस अमृतकाल में चरक के चेले आरामदेव ऐसी तमाम आयुर्वेदिक दवाएं बना रहे हैं, जिनकी एलोपैथी सौ साल तक कल्पना भी नहीं कर सकता।
सिरम्मन: फिर?
झम्मन: फिर क्या बाबा ने बाइडेन से एडवांस लेकर आरामदेव निर्मित च्यवनप्राश की सप्लाई का आश्वासन दे दिया।
सिरम्मन: फिर उसके बाद?
झम्मन: आश्वासन के बाद बाइडेन चुनाव में कूद पड़े। और च्यवनप्राश की खेप का इंतज़ार करने लगे। च्यवनप्राश तो नहीं आया, डिबेट की तारीख आ गई। मजबूरी में उन्हें लोकल ब्रांड का च्यवनप्राश गुटक लिया। डिबेट में उनकी बड़ी फजीहत हुई।
सिरम्मन: फिर?
झम्मन: फिर क्या। उन्होंने फोन पर बाबा जी को फटकारा। बाबा ने फिर आश्वासन दिया। बाइडेन ने आसरे में फिर कुछ दिन खींचा। लेकिन एक हफ्ते बाद बाबा ने च्यवनप्राश भेजने में असमर्थता जता दी। बोले, आरामदेव कानूनी पचड़े में फंस गए हैं। उसी दिन बाइडेन ने खुद को चुनाव से हटा लिया।
सिरम्मन: अब समझा…
Satire
झम्मन: क्या?
सिरम्मन: यही कि हमारे यहां के नेता बूढ़े क्यों नहीं होते। अपने नेहरू जी ही को लो। आखिरी दम तक मीलों जाने का सपना देख रहे थे
झम्मन: सपने से याद आया…तुमने रात में कोई सपना देखा था!
सिरम्मन: हां भाई सपने में मैं एक ऐसे देश में पहुंच गया था, जहां राष्ट्रपति का चुनाव हो रहा था।
झम्मन: कुछ अलग था क्या?
सिरम्मन: कुछ न पूछो। वहां राष्ट्रपति के चुनाव के लिए कोई भी आवेदन कर सकता था। मेरे सपने में 1000 लोगों ने अप्लाइ किया था।
झम्मन: फिर स्क्रीनिंग कैसे हुई?
सिरम्मन: स्क्रीनिंग के कई चरण थे। पहली स्क्रीनिंग मैराथन दौड़ के रूप में हुई, जिसमें अंतिम 100 सेलेक्ट किए गए।
झम्मन: नेक्स्ट?
सिरम्मन: अगली स्क्रीनिंग में बचे हुए सौ लोगों से एक निबंध लिखाया गया कि अगले पांच साल में वे देशहित के लिए क्या करेंगे। इस स्क्रीनिंग में 50 लोग निकाल दिए गए।
झम्मन: फिर?
सिरम्मन: तीसरी स्क्रीनिंग भी दौड़ने की थी। इस बार सिर्फ एक मील की दौड़ थी। लेकिन दौड़ से पहले इन लोगों दो दिन तक भूखा रखा गया था। इस दौड़ के बाद सिर्फ पांच लोग बचे।
झम्मन: अगली स्क्रीनिंग?
सिरम्मन: अगली स्क्रीनिंग बजबजाते गटर में डुबकी मारकर बजबजाते सीवर की सफाई करने की थी।
झम्मन: क्या हुआ उसमें
सिरम्मन: बस दो उम्मीदवारों ने गटर में उतरने का साहस दिखाया। तीन ने इनकार किया। वे राष्ट्रपति की दौड़ से बाहर हो गए।
झम्मन: आगे क्या हुआ?
सिरम्मन: इन्हीं दोनो गतिवीरों के बीच चुनाव हुआ। एक जीता। उसे राष्ट्रपति बनाया गया। जो हारा उसे नेता प्रतिपक्ष का पद मिला।
झम्मन: अच्छा, यह स्क्रीनिंग कौन कर रहा था? बेइमानी भी तो हो सकती थी!
सिरम्मन: नामुमकिन। सपना मेरा था। स्क्रीनिंग भी मै कर रहा था।
झम्मन: क्या अपने देश में ऐसा संभव है?
सिरम्मन: नहीं। हमारे यहां प्रेसिडेंशियल फॉर्म ऑफ गवर्नमेंट नहीं।
झम्मन: थैंक गॉड। मेरी तो गटर को देखकर ही रूह फना हो जाती।
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