हास्य-व्यंग्य : नए कानून में नए-नए लफड़े, धारा के हिसाब से रेट चार्ट 

हम सरकार बनाते हैं। सरकार कानून बनाती है। सरकार बनाना हमारी मजबूरी है और कानून बनाना सरकार की बाध्यता। देशहित में हम बिना सरकार बनाए रह नहीं सकते तो सरकार भी देश चलाने के लिए बिना कानून बनाए कैसे रहे?

Written By : अनिल त्रिवेदी | Updated on: August 12, 2024 5:44 pm

दोनों अपना-अपना कर्तव्य बखूबी निभाते हैं। हालांकि बीच में विपक्ष भी है जो कानून बनाए जाने की प्रक्रिया में होहल्ला करके अपना सहयोग करता है। कानून बहुमत से बनते हैं। सरकार के पास बहुमत होता है इसलिए विपक्ष की खींचतान के बाद भी कानून बन ही जाते हैं।

चल पड़े हैं नए कानून

कानून बनते ही देश विकास के रास्ते पर सरपट निकल पड़ता है। देश की जनता खुश कि सरकार दिन-रात हमारी भलाई में खप रही है और सरकार भी गर्व से चौड़ी होती रहती है कि वह देश सेवा में जी-जान से जुटी है। कानून बन जाने के बाद सरकार कुछ नहीं करती। बस, कानून जैसे-तैसे अपना काम करते रहते हैं।

अपराध के कानून ने बढ़ा दिया काम 

सरकार ने बीते दिनों अपराधों के संबंध में जो तीन नए कानून बनाए थे, वे अब चल पड़े हैं। सरकार का कहना है कि पहले के कानून अंग्रेजों के जमाने के थे इसलिए वे आउटडेटेड हो गए थे। जब अंग्रेजों के जमाने के जेलर नहीं रहे तो कानून क्यों रहें। सरकार ने उनकी जगह जो नए कानून बनाए हैं वे सौ फीसदी देसी हैं। उनके नाम भी भारतीय हैं। अंग्रेज चले गए लेकिन अंग्रेजी के साथ-साथ अपने कानून भी छोड़ गए। अंग्रेजी तो खैर अब सब ‌भाषाओं की अम्मा बन गई है लेकिन कानूनों से छुटकारा तो पाया ही जा सकता  है।

धाराओं की मझधार में पुलिस
नए कानूनों के अमल में आने से पुलिस वाले सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं। सभी धाराएं बदल गई हैं। बेचारे कई महीने से नए कानूनों की नई धाराओं को रटने में जुटे हैं। बड़ी मुश्किल है, कब ड्यूटी करें कब रट्टा मारें। पहले के कानूनों की प्रमुख धाराएं उन्हें जुबानी याद थीं। अब वे किसी काम की नहीं रहीं। उनका तो पूरा सिलेबस ही बदल गया है। इनदिनों पुलिस धाराओं के मझधार में फंसी है।
पुलिस की सबसे बड़ी दिक्कत तो यह है उन्हें अपनी रेटलिस्ट नए सिरे से बनानी पड़ रही है। जिन अपराधों में सजा बढ़ा दी गई है अब उनके रेट भी उसी हिसाब से बढ़ाने पड़ रहे हैं। मामला दर्ज करने- दर्ज न करने, गिरफ्तार करने-खुला घूमने देने, सबूत जुटाने-नष्ट करने, झूठे केस बनाने-फंसे हुए को बचाने आदि की नई रेटलिस्ट बनाने की कवायद करनी पड़ रही है।
कानून बदले तो रेट भी बदले
लोग अपने आप तो समझते नहीं कि कानून बदले हैं तो रेट भी बदलेंगे। पहले जब यातायात कानून बदला था तब भी ऐसी ही दिक्कत आई थी। बिना हेलमेट बाइक सवार पकड़े जाने पर सौ का नोट थमाता तो ट्रैफिक सिपाही को उसे समझाना पड़ता कि नए कानून में जुर्माना बढ़ गया है। अब दो सौ से कम में काम नहीं चलेगा। बाइक सवार कहता-आज सौ ही हैं। ट्रैफिक सिपाही को अहसान करना पड़ता-अच्छा ठीक है, अगली बार जेब में दो सौ का नोट रखकर चलना।
थाने में एक कुर्सी पर बैठे दूसरी पर पैर फैलाए थाना प्रभारी के पास आकर मुंशी आज की दिक्कत बता रहा है- सर, फोन आया है कि एफआईआर लिख लो। मैंने थाने में आकर एफआईआर लिखाने को कहा तो बोला कि फोन पर ही लिखानी है। क्या करें सर? थाना प्रभारी ने कहा- फोन पर लिखा रहा है तो लिख लो। नए कानून के तहत यह तो करना ही होगा। मुंशी का चेहरा उतर गया- सर ऐसे ही फोन पर एफआईआर लिखते रहेंगे तो थाने में कोई आएगा ही नहीं। फिर तो हम सब शाम को सब्जी का खाली झोला लेकर घर जाएंगे। थाना प्रभारी भी यह परेशानी समझता है। उसने भरोसा दिया- कोई रास्ता निकालेंगे। किसी बहाने थाने बुला लेंगे या शिकायतकर्ता के घर जाकर भी काम हो जाएगा।
वकील भी उलझे
अपराधियों को कानून के शिकंजे से बचाने-फंसाने और सालों उलझाए रखने में माहिर वकीलों के धंधे पर भी नए कानूनों का असर पड़ा है। उन्हें भी कानूनों की पेचीदगियां नए सिरे से पढ़नी पड़ रही हैं। फीस की नई सूची तैयार की जा रही है। नए कानूनों में मामलों के अदालत से जल्द निपटारे की व्यवस्था है।
अपराध करने वालों का धंडा भी डगमगाएगा
अपराध करने वालों का धंधा भी नए कानूनों से डगमगाएगा। काम को अंजाम देने से पहले जानकारी जुटानी पड़ेगी कि इसकी सजा बढ़ी है या घटी है। कहीं चूक हो गई तो अदालत में सजा सुनाते समय कहना पड़ सकता है- मी लार्ड मुझे पता नहीं चला कि इस अपराध की सजा अब पांच साल हो गई है। मैंने तो सोचा था कि फंस जाने पर एक साल जेल में रहने में कोई बुराई नहीं है। सर, एक मौका और दे दीजिए। एक साल में ही निपटा दीजिए। अगली बार यह चूक नहीं होगी। इन नए कानूनों के बारे में जब चूंचूं अंकल को पता चला तो उनके मुंह से निकला- हाय दैया, इन कानूनन में इत्ते लफड़े।
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