राजनीति में अच्छे चरित्र और अच्छी भाषा की अनिवार्यता नहीं होती। कुछ लोग चरित्रहीनता का आभूषण पहन और भाषा के साथ बलात्कार करने के बाद भी वर्षों तक उच्च किस्म की राजनीति करते रहते हैं। फिर भी राजनीति के चाणक्यों ने, इस क्षेत्र में शुचिता और मर्यादा बनाए रखने के उद्देश्य से, कुछ शब्दों को परिष्कृत कर दिया है। जैसे राजनीति की जगह देश सेवा, नेता की जगह जन प्रतिनिधि और चमचा की जगह कार्यकर्ता। इन परिष्कृत शब्दों का प्रयोग करने से सार्वजनिक शौचालय की सड़ांध नुमा राजनीति से भी कन्नौज के उम्दा इत्र जैसी खुशबू आती है।
अधिकांश नेतागण अपना कैरियर चमचागीरी से प्रारंभ करते हैं
कुछ अपवादों को छोड़कर अधिकांश नेतागण अपना कैरियर चमचागीरी से प्रारंभ करते हैं। ‘चमचा’ के साथ ‘गीरी’ शब्द संज्ञा को क्रिया में परिवर्तित कर देता है। या, यूं कह लें कि कार्य का व्यवसायीकरण हो जाता है जैसे -उठाईगीरी। जिस प्रकार कोई अनुभवी मुंशी, किसी वकील की भांति तमाम कानूनों और उनकी पेंचीदगियों से परिचित हो जाता है। उसी प्रकार एक तपा हुआ चमचा भी राजनीति के तमाम दांवपेंचों और दंद-फंद को आत्मसात कर लेता है। ऐसे ही चमचे कालांतर में उच्च कोटि के नेता बन देश सेवा में उतर जाते हैं। ‘चमचा’ शब्द बर्तन समुदाय का है। इसी समुदाय का एक सदस्य ‘छुरी’ भी है। नाम से हिंसक और स्वयं में दफा 302 की संपूर्ण संभावनाएं सहेजे यह धारदार बर्तन चमचागीरी की साधना में बहुत उपयोगी है। वैसे तो बिना धार की छुरी, बैलेंस हीन बैंक खाते वाले एटीएम कार्ड के समान होती है। लेकिन राजनीति में बिना रीढ़ की काया की भांति धार हीन छुरी की भी उपयोगिता है। चमचागीरी में छुरी का सर्वाधिक प्रयोग मक्खन लगाने में होता है। इसके अलावा कुछ महत्वाकांक्षी चमचे इसे बगल में रखकर, मुंह से राम नाम का भी जाप करते हैं। अपने आका की गर्दन पर इसे फेरने के उदाहरण भी यदा-कदा दिख जाते हैं।
हर बात में ‘हां ‘ मिलाने से लेकर अदृश्य दुम हिलाने तक का काम
एक सच्चे चमचे का जीवन बहुत कठिन होता है। कर्तव्य परायण चमचा सुबह जल्दी उठ कर अपने आका की ड्योढ़ी पर पहुंच जाता है। आका के यहां चूंकि कई चमचे पले होते हैं इसलिए सबमें होड़ रहती है कि कौन सबसे पहले पहुंचकर वहां हाज़िरी बजाता है। इस दौड़ में अव्वल आने के लिए कुछ सिद्धहस्त चमचे अपनी आंखों के कीचड़ सहित आका के दर्शन करते हैं। उनकी ड्योढी पर बैठकर हर बात में हां मिलाने से लेकर अदृश्य दुम हिलाने तक का कार्य करते हैं। अपने घर में चाहे तिनका भी इधर से उधर न करें किंतु आका के घर का गेहूं पिसाने से लेकर, सब्जी-भाजी लाने और उनके बच्चों को स्कूल से लाने-ले जाने तक का काम खुशी-खुशी करते हैं।
चमचा समुदाय की बेहतरी के लिए प्रयास करें
‘चमचागीरी’ एक कला है लेकिन अफ़सोस कि अन्य ललित कलाओं की सूची में इसका दूर-दूर तक कोई स्थान नहीं है। और तो और देश में उच्च कोटि के चमचे तैयार करने के लिए कोई प्रशिक्षण संस्थान तक नहीं है। आज हर राजनीतिक दल और नेताओं के पास जो भी चमचे हैं, वे सब अपनी मेहनत और लगन के कारण हैं। ये भी दुख की बात है कि देश की बड़ी आबादी ‘चमचागीरी’ के पुनीत कार्य में लगी है। यह लाखों-करोड़ों लोगों के पेट पालने का जरिया है किंतु अभी तक सरकार की नज़र इस असंगठित क्षेत्र पर नहीं पड़ी है। यहां तक कि जिन चमचों के आकागण प्रगति करके सरकार का हिस्सा बन गए, उन्होंने भी अपने इन नमक हलालों के बारे में कुछ नहीं सोचा। हालांकि, कुछ उदीयमान चमचे अपने बलबूते आगे बढ़कर नेतत्व को प्राप्त हो जाते हैं और डायरेक्ट देश सेवा करते हैं। किंतु उनकी संख्या बहुत कम है। ऐसे में हम सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है कि दबे-कुचले चमचा समुदाय की बेहतरी के लिए प्रयास करें। आमीन।