सत्संग (Satsang) की शुरुआत श्री श्री ठाकुर अनुकूलचंद्र ने 20वीं सदी में आध्यात्मिक आन्दोलन से की। पहले गुरुकुल में सत्संग के माध्यम से शिष्य आपस में शास्त्रार्थ कर अंदर छिपे हुए तत्वों को समझते थे।
तुलसीदास कहते हैं -“तात स्वर्ग अपवर्ग सुख धरिए तुला एक अंग, तुले न ताहि सकल मिलि जो सुख लव सत्संग।।”
स्वर्ग और मोक्ष के सभी सुखों को तराजू के एक पलड़े में रखा जाय, तो भी वे सब मिलकर उस सुख के बराबर नहीं हो सकते जो क्षण मात्र के सत्संग से होता है।
सत्संग (Satsang) अर्थात चरित्रवान व्यक्तियों, सज्जनों और विद्वानों आदि की संगति। जिस प्रकार पारस के स्पर्श से लोहा भी सोना बन जाता है, वैसे ही सत्संग के प्रभाव से व्यक्ति श्रेष्ठ बन जाता है।
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज में रहते हुए वह अच्छे बुरे सभी प्रकार के व्यक्तियों के संपर्क में आता है। इस प्रकार सारे मनुष्य गुण व अवगुण से भरे हैं सज्जनों की संगति से गुण और दुर्जनों की संगति से अवगुण मिलते हैं।
कबीरदास के दोहे ने सत्संग शब्द को और भी स्पष्ट कर दिया है –
“कबीर संगत साधु की बेगी कारी से जाए।
दुरमति दूर गवाही सी देसी सुमति बताएं।।”
अर्थात साधुओं के साथ रहने से तुम्हारी दुर्बुद्धि चली जाएगी और सुबुद्धि आ जायेगी।
अवधेशानंद गिरि महाराज कहते हैं – “सत्संग में जाइए ,भरोसा रखिए, आप अच्छे बन जाओगे।”
सत्संग (Satsang) में हम कीर्तन, मंत्र जप अथवा मौन ध्यान आदि करते हैं। घर में रामायण, सुंदरकांड आदि करवाना भी सत्संग है। परिवार या मित्रों के साथ बैठकर धर्म पर सार्थक चर्चा करना भी सत्संग है।
तुलसीदास कहते हैं –
“एक घड़ी आधो घड़ी आधो में पुनि आध। तुलसी संगत साधु की हरे कोटि अपराध।।”
तुलसीदासज के अनुसार संतों के साथ बिताए कुछ क्षण भी बहुत पवित्र कर देते हैं।
सत्संग से एक सामान्य कीड़ा भी महान मैत्रेय ऋषि बन गया था।
रहीम कहते हैं – “मूढ़ मंडली में सुजन ठहरत नहीं विसेख। श्याम कंचन में सेत ज्यों दूरी कीजियत देख।।”
मूर्खों की मंडली में सज्जन लोग अधिक समय तक नहीं रह सकते हैं जैसे – काले बालों के बीच में यदि कोई सफेद बाल दिख जाए तो उसे तुरन्त उखाड़ देते हैं इसी प्रकार सज्जन भी बुरी संगति और मूर्खों की संगति से दूर हो जाते हैं।
सत्संग (Satsang) का मुख्य उद्देश्य गहन विषयों को समझना है ।भारत में सत्संग(Satsang)की महान परंपरा है। हमारे ऋषि मुनि सत्संग के माध्यम से धर्म ज्ञान सबको उपलब्ध कराते थे ।सत्संग(Satsang)सभी धर्म में होता है। इस्लाम में सत्संग को इज्तिमा कहते हैं जो अभी भोपाल में संपन्न हुआ था। समूह में एकसाथ ध्यान करने से आध्यात्मिक माहौल बन जाता है। ध्यान में अपने भीतर जाकर अपने मन में वसे विकारों को दूर करना भीतर का सत्संग (Satsang)है। दुख मुक्ति के लिए सत्संग आवश्यक है।
सत्संग (Satsang) करते रहने से भक्ती प्रकट होकर दृढ़ होती जाती है और भक्त की आंखों से परमात्मा के लिए आंसू बहते रहते हैं। वियोग की अग्नि जल उठती है और गोपियों की तरह से विरह में हर जगह कान्हा ही दिखते हैं।

(मृदुला दुबे आध्यात्मिक चिंतक और योग साधक हैं)
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बहुत सुंदर दीदी