Spiritualism : धर्म संप्रदायों में बांटता नहीं, जोड़ता है

धर्म न हिंदू बौद्ध है, धर्म न मुस्लिम जैन। धर्म चित्त की शुद्धता, धर्म शांति सुख चैन।। हिन्दू, मुस्लिम, आरसी सिख, ईसाई आदि संप्रदाय हैं। धर्म वो होता है, जो संप्रदायों में बांटता नहीं बल्कि जोड़ता है। वेदांत यह मानता है कि ईश्वर व्यक्तिगत भी हो सकता है जो हर युग में मानव रूप धारण कर सकता है। वेद के अनुसार धर्म आत्मा और परमात्मा को एक बताता है।धर्म मनुष्य को ये बताता है कि सबके साथ कैसा व्यवहार किया जाए।

Written By : मृदुला दुबे | Updated on: November 4, 2024 10:17 pm

Religion

तुलसीदास कहते हैं –
दया धर्म का मूल है, पाप मूल अभिमान। तुलसी दया न छाडीये, जब लग घट में प्राण।।

दया धर्म (Religion) का मूल स्वभाव है। और अभिमान पाप है। तुलसीदास कहते हैं कि दया हमेशा साथ रखो। किसी को भी अपने शरीर और वाणी से दुख न देना ही सच्चा धर्म है। वर्तमान क्षण में अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनना और बहुत सजग रहना धर्म है। अपने भीतर जमा विकारों की गंदगी को साफ करना धर्म है। अपनी वासनाओं को लगाम लगाना धर्म है। नैतिकता धारण कर न्यायपूर्वक कर्म करना, सेवा देना, दान देना धर्म है।

गोयनकाजी कहते हैं –
“धारण करे तो धर्म है, वरना कोरी बात। सूरज उगे प्रभात है, वरना काली रात।।”

अर्थात तेरा घर मेरा धर्म (Religion) कहकर कोरी बातें करने से कोई धार्मिक नहीं होता। सदाचार को धारण करो तभी धर्म है।

विवेकानंद के अनुसार, आत्म त्याग ही सर्वोच्च धर्म है। पवित्र और निस्वार्थ बनने की कोशिश करना धर्म है

महावीर कहते हैं –

जो धर्मात्मा है, जिसके मन में सदा धर्म रहता है उसे देवता भी नमस्कार करते हैं। अहिंसा, संयम और तप ही धर्म है

कबीर सभी धर्म को एक मानते थे। कबीर ने कहा सच्चा संत वही है जो सांप्रदायिक भेदभाव, सांसारिक मोह माया से दूर निश्चल भाव से लोगों के साथ व्यवहार करता है। मेरा धर्म अच्छा तेरा धर्म अच्छा नहीं है इस प्रकार की लड़ाई करना मूर्खता है ।

प्राचीन काल में आर्य धर्म और अनार्य धर्म कहते थे। अर्थात भले आदमी को आर्य धर्म वाला और बुरे आदमी को अनार्य धर्म वाला कहते थे। प्रकृति के नियम ही धर्म के नियम है।

श्री कृष्ण ने अर्जुन को बताया कि जो कर्म तुम करते हो वही तुम्हारा धर्म (Religion) बन जाता है। तथागत बुद्ध का धर्म एक अभ्यास पद्धती है जिसमें चार महान सत्य, आर्य अष्टांगिक मार्ग ज्ञान और प्रकृति की वास्तविकता है। जब कोई व्यक्ति धर्म को गहराई से समझता है और उसके अनुसार जीवन जीता है तो वह चीजों के वास्तविक स्वरूप को समझता है, जिससे दुख से मुक्ति मिलती है।

मेरे अनुभव….धार्मिक का अर्थ है अपने अस्तित्व के बारे में जानकारी की जिज्ञासा पैदा करना। अपने मूल के दर्शन कर लेना। हम केवल एक तत्त्व हैं और परम तत्व के साथ एकाकार हो जाना ही हमारा अन्तिम लक्ष्य है। परिवार, धन, पद, प्रतिष्ठा आदि सब कुछ हमारे साथ नहीं जायेगा। शरीर को जलाया जायेगा और धन बंट जायेगा, पद किसी और को दे दिया जायेगा। हम कहां बचे ? केवल सूक्ष्म तत्व ही बचा जो की अगले शरीर में प्रवेश कर जायेगा। इस शरीर के रहते हुए हम वर्तमान में जागरूक रहते हुए, मैं को मिटाकर उस परम तत्व में समा जाएं।

(मृदुला दुबे योग शिक्षक और आध्यात्मिक गुरु हैं.)

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