हिंदी सिनेमा, टीवी और OTT में चित्रित Ram Katha का अद्भुत है इतिहास(भाग-2)

सन 1942 में फिल्म निर्देशक विजयभट्ट ‘भरत मिलाप’ फिल्म लेकर आते हैं और इस फिल्म से हिंदी सिनेमा को चित्रपट के पहले राम के रूप में प्रेम अदीब तथा सीता के रूप में शोभना समर्थ मिलते हैं. विजय भट्ट अगले वर्ष 1943 में इसी जोड़ी के साथ ‘राम राज्य’ एवं 1948 में ‘रामबाण’ फिल्म लेकर आते हैं।

Written By : प्रो पुनीत बिसारिया | Updated on: November 5, 2024 2:16 pm

Ram Katha

इन तीनों फिल्मों ने हिंदी चित्रपट के इतिहास में नई कड़ी जोड़ने का काम किया| उस समय शोभना समर्थ और प्रेम अदीब के सीता राम स्वरूप के कैलेंडर घर-घर दिखाई देते थे, बाद में यही कारनामा सन 1987 में आए रामानंद सागर के टीवी धारावाहिक ‘रामायण’ के माध्यम से दीपिका चिखलिया और अरुण गोविल ने भी दोहराया। विजय भट्ट की यह विशेषता थी कि उन्होंने अपनी फिल्मों में वाल्मीकि विरचित रामायण से प्रसंग लेकर उन्हें अत्यंत प्रभावशाली ढंग से परदे पर उतारने का काम किया और यही कारण है कि उनके द्वारा बनाई गई सभी रामकथा आधारित फिल्में अत्यधिक सफल रहीं।

Ram Katha

सन 1943 में आई फिल्म ‘रामराज्य’ उस वर्ष की तीसरी सबसे अधिक कमाई करने वाली फिल्म थी। इस फिल्म के लिए दर्शकों की दीवानगी का यह आलम था कि बैलगाड़ियों में भर-भरकर दर्शक इस फिल्म को देखने जाते थे, परदे पर फूल-मालाएँ और दक्षिणा चढ़ाते थे तथा भावुक एवं मार्मिक प्रसंग आने पर आँसू बहाते थे। उस दौर में इस फिल्म ने साठ लाख का कारोबार किया था, जो बहुत बड़ी रकम हुआ करती थी।स्वतंत्रता पूर्व युग में दादा साहब फाल्के, बाबू भाई मिस्त्री और विजय भट्ट रामकथा के सिने प्रस्तोता कहे जा सकते हैं।

Ram Katha

सन 1946 में ‘सती सीता’ और ‘श्रवण कुमार’ तथा सन 1947 में पृथ्वीराज कपूर अभिनीत ‘परशुराम’ फिल्में प्रदर्शित होती हैं, किन्तु इन्हें अपेक्षित सफलता प्राप्त नहीं मिलती। सन 1948 में होमी वाडिया ‘रामभक्त हनुमान’ फिल्म निर्देशित करते हैं, जिसमें एस.एन. त्रिपाठी ने हनुमान की भूमिका निभाई थी और इस फिल्म का संगीत भी दिया था, इस फिल्म से एस.एन. त्रिपाठी के रूप में हिंदी फिल्म जगत को रामकथा का नया प्रस्तोता मिलने वाला था।

इस फिल्म के सभी गीत अत्यधिक लोकप्रिय हुए थे, जिनमें कुछ को लोग आज भी गुनगुनाते हैं, जैसे- ‘आई बसंत ऋतु आई’, ‘बीत चली बरखा ऋतु सीते’। इसके पश्चात सन 1954 में विजय भट्ट अपनी महत्त्वकांक्षी फिल्म ‘रामायण’ लेकर आते हैं, जिसमें वे प्रेम अदीब और शोभना समर्थ की जोड़ी को पुनः राम-सीता के रूप में परदे पर पेश करते हैं किन्तु फिल्म को सीमित सफलता मिलती है। सन 1956 में प्रदर्शित ‘अयोध्यापति’ फिल्म आती है। इसी वर्ष विजय भट्ट बच्चों के लिए ‘बाल रामायण’ प्रस्तुत करते हैं, जो बच्चों के लिए बनी पहली रामकथा आधारित फिल्म थी, तत्पश्चात 1967 में वे एक बार पुनः ‘राम राज्य’ फिल्म बनाकर बीना राय और कुमार सेन की जोड़ी को प्रस्तुत करते हैं, किन्तु इसके सफल न होने के बाद वे आगे अन्य विषयों को प्रस्तुत करने लगते हैं।

अगले वर्ष सन 1957 में हनुमान पर आधारित दो फिल्में बाबू भाई मिस्त्री की ‘पवनपुत्र हनुमान’ और एस.एन. त्रिपाठी की ‘राम हनुमान युद्ध’ तथा पौराणिक फिल्मों के लिए विख्यात हिंदी-मराठी अभिनेता शाहू मोदक अभिनीत ‘राम लक्ष्मण’ प्रदर्शित होती हैं। राम हनुमान युद्ध अपनी नवीन कथा शैली के कारण ध्यान आकृष्ट करने में सफल होती है।

Ram Katha की दृष्टि से ‘सम्पूर्ण रामायण’ फिल्म को मील का महत्त्वपूर्ण पत्थर माना जाना चाहिए, जो सन 1961 में प्रदर्शित हुई थी। बाबूभाई मिस्त्री निर्देशित इस फिल्म में अनिता गुहा और महिपाल ने क्रमशः सीता और राम की भूमिका निभाई थी तथा सुलोचना ने कैकेयी, ललिता पवार ने मंथरा और हेलन ने शूर्पणखा का अभिनय किया था। इस फिल्म में बाबू भी मिस्त्री ने स्पेशल इफेक्ट के बेहतरीन प्रयोग से राम कथा को अत्यंत प्रभावमय बना दिया था।

सम्पूर्ण रामायण के कुछ सेमी क्लासिकल गीत आज भी लोकप्रिय हैं, जैसे- सन सनन सनन, जा रे ओ पवन और बादलों बरसों नैनों की ओर से। बाद में सन 1981 में गिरीश मनुकांत ने इसका पुनर्निर्माण किया। सन 1965 में मणिभाई व्यास पृथ्वीराज कपूर, वनमाला, राजकुमार और निरूपा रॉय को साथ लेकर ‘श्रीराम भरत मिलाप’ फिल्म निर्देशित करते हैं, किन्तु इतने सितारों से सजी होने के बावजूद यह फिल्म कमाल नहीं दिखा पाती क्योंकि इस फिल्म का प्रस्तुतीकरण रामकथा की भव्यता के अनुरूप नहीं था। सन 1974 में एक बर फिर बाबू भाई मिस्त्री ‘हनुमान विजय’ नामक फिल्म लेकर आते हैं, जिसमें बंगाली अभिनेता आशीष कुमार राम, मशहूर पहलवान हरक्युलिस हनुमान और अभिनेता राजकुमार लक्ष्मण की भूमिका निभाते हैं, किन्तु असंगत पात्र चयन के कारण इसे सफलता नहीं मिलती।

सन 1976 में निर्देशक चंद्रकांत द्वारा निर्देशित फिल्म ‘बजरंगबली’ परदे पर आती है, जिसमे विश्वजीत राम, मौसमी चटर्जी सीता की भूमिका में तथा पहली बार दारा सिंह हनुमान की भूमिका में नज़र आते हैं। अगले वर्ष सन 1977 में ‘सीताराम वनवास’ फिल्म में जयाप्रदा सीता माँ के रूप में दिखती हैं, किन्तु तेलुगु से डब होने के कारण यह फिल्म हिंदी दर्शकों को प्रभावित नहीं करती। सन 1979 में बंगाली अभिनेता आशीष कुमार निर्देशित तथा आशीष कुमार और ललित पवार अभिनीत ‘राजा हरिश्चंद्र’ फिल्म आती है, किन्तु इसे भी अपेक्षित सफलता नहीं मिलती। सन 1981 में प्रखर हनुमान भक्त बाबूभाई मिस्त्री निर्देशित फिल्म ‘महाबली हनुमान’ आती है, जिसे अपेक्षित सफलता नहीं मिल पाती क्योंकि तब तक शायद अमिताभ बच्चन का एंग्री यंग मैन स्वरूप लोगों के सिर चढ़कर बोलने लगा था।

(प्रो. पुनीत बिसारिया बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय, झाँसी में हिंदी के प्रोफेसर हैं और फिल्मों पर लिखने के लिए जाने जाते हैं। वे  द फिल्म फाउंडेशन ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं तथा गोल्डेन पीकॉक इंटरनेशनल फिल्म प्रोडक्शंस एलएलपी के नाम के फिल्म प्रोडक्शन हाउस के सीईओ हैं।)

ये भी पढ़ें :-हिंदी सिनेमा टीवी और ओटीटी में चित्रित Ram Katha का अद्भुत है इतिहास (भाग-1)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *