Spiritualism : शून्य होकर इस तरह होगी शिव की प्राप्ति 

कबीर एक बार अपनी बुनी चादर लेकर काशी के बाजार गए. शाम हो गयी कोई खरीदार नहीं मिला. वापस लौटते समय एक राहगीर ने पूछा- बाबा यह चादर कितने की? कबीर ने कहा- पता नहीं. तुम्हे चाहिए? राहगीर ने कहा, हाँ. कबीर ने कहा ले लो. राहगीर फिर पूछा, कितने पैसे ? कबीर बोले, पता नहीं. तुम्हे जो देना हो दे दो. उसने कुछ पैसे निकलकर कबीर को दे दिए और चादर ले ली. राहगीर थोड़ी दूर ही गया होगा कि कबीर ने पीछे से उसे आवाज़ लगाई- अरे भाई सुनना. राहगीर ने सोचा कि शायद इनके मन में और पैसे लेने की बात आ गयी है. पलटकर उसने पूछा- क्या बात है? कबीर उसके पास गए और कहा - कुछ नहीं, बस इतना कहना चाहता हूँ कि इस चादर को बड़ी सावधानी से ओढ़ना. उसने पूछा- क्यों? कबीर ने कहा क्योंकि मैंने इसके हर रेशे में राम को बुन दिया है।

Written By : बी. कृष्णा | Updated on: November 4, 2024 10:15 pm

शिव की प्राप्ति: पूर्णता प्राप्त करने के लिए जीवन को बुनना होगा

ठीक इसी प्रकार से हम सब को भी जीवन में पूर्णता प्राप्त करने के लिए जीवन को बुनना पड़ता है. जीवन के हर रेशे में राम को बुनना पड़ता है. दिलचस्प बात यह कि हर रेशे में राम को बुनने की प्रक्रिया की शुरुआत होती है शिव से, शून्य से.

शून्य होना किस प्रकार होगी शिव की प्राप्ति ?

एक उदाहरण से इसे समझें-

मान लीजिए एक बहुत बड़ा गोलाकार झूला है जो बड़ी तेजी से घूम रहा है. आप उस झूले पर सवार हैं ( परिधि पर हैं) तो क्या होगा ? आप घूम रहे झूले के अधिकतम गति को महसूस करेंगे.

अब यदि आप झूले के केंद्र और परिधि के बीच में आ जाते हैं अर्थात केंद्र के थोड़े करीब आ जाते हैं, तब क्या होगा? तब यह होगा कि झूले के बड़ी तेजी से घूमने के बावजूद आप अधिकतम गति को नहीं महसूस करेंगे. उसकी तीव्रता में कमी आएगी.

इसी तरह केंद्र के नजदीक आते-आते एक अवस्था ऐसी आएगी जब आप बिलकुल केंद्र में आ जायेंगे.तब क्या होगा?

झूला चाहे कितनी भी गति से घूमे आप उस गति को महसूस नहीं कर पाएंगे. जहाँ झूले के परिधि पर आप अधिकतम गति को महसूस कर रहे थे वहीं केंद्र में आते ही आप शून्य गति को महसूस करने लगते हैं. झूला वही है. उसकी गति वही है पर आपके मह्सूस  करने में बदलाव आया। ऐसा क्यों?

ऐसा इसलिए कि आप धीरे-धीरे केंद्र के करीब आते गए. हमारे जीवन में भी बिलकुल ऐसा ही होता है. जीवन में शून्यता की महसूस करने के लिए हमें अपने केंद्र में आना होता है. जीवन में शून्यता का भान होने पर ही हमें अपने असीमित क्षमता का दर्शन होगा. यदि हमें शिव की प्राप्ति करनी है, असीमित क्षमता के बारे में जानना है तो इसके लिए हमें अपने भीतर की यात्रा आरंभ करनी होगी. अपने केंद्र को जानना होगा. आत्मा को जानना होगा.

आइये, जीवन-तंत्र की खोज करनी शुरू करें

तब हमारे भीतर की यात्रा आरंभ होगी और अपने भीतर ही निहित असीमित क्षमताओं को हम जान पाएंगे और न सिर्फ जान पाएंगे बल्कि उन्हें निर्बाध गति प्रदान करते हुए सकारात्मक दिशा देकर जीवन के सर्वोच्च को प्राप्त कर सकेंगे. सावन के इस पवित्र माह में जब हमारे जीवन की डोर को श्री हरि ने शिव को सौंपा है तो क्यों न हम सब शून्य होकर शिव के शरण में चलें. परिधि से केंद्र तक पहुँचने की यात्रा की शुरुआत करें. अपनी सोच को सकारात्मक बनाएं. जीवन को ऊर्जावान बनाएं. गतिशील बनाएं.

बी कृष्णा (ज्योतिषीयोग और आध्यात्मिक चिंतक )

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