पर्यावरण संरक्षण की सीख देता हिन्दी सिनेमा (अंतिम भाग)

सन 2021 पर्यावरण आधारित फिल्मों की दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण वर्ष कहा जा सकता है क्योंकि इस वर्ष ऐसी अनेक फिल्में प्रदर्शित हुई हैं, जिनमें पर्यावरण संरक्षण को केंद्र में रखा गया है। ‘एक अंक’, ‘वनरक्षक’ और ‘शेरनी’ को इनमें गिना जा सकता है। ‘एक अंक’ फिल्म नदियों की दुर्दशा की करुण कहानी कहती है और एक व्यक्ति के अकेले प्रयासों से किस प्रकार एक नदी को स्वच्छ और निर्मल बनाया जा सकता है, इसकी चर्चा करती है।

Written By : प्रो. पुनीत बिसारिया | Updated on: November 5, 2024 2:24 pm

Environment Protection

सन 2021 पर्यावरण आधारित फिल्मों की दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण वर्ष कहा जा सकता है क्योंकि इस वर्ष ऐसी अनेक फिल्में प्रदर्शित हुई हैं, जिनमें पर्यावरण संरक्षण को केंद्र में रखा गया है। ‘एक अंक’, ‘वनरक्षक’ और ‘शेरनी’ को इनमें गिना जा सकता है। ‘एक अंक’ फिल्म नदियों की दुर्दशा की करुण कहानी कहती है और एक व्यक्ति के अकेले प्रयासों से किस प्रकार एक नदी को स्वच्छ और निर्मल बनाया जा सकता है, इसकी चर्चा करती है।

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‘वनरक्षक’ अभिनेता यशपाल शर्मा को केंद्र में रखकर निर्मित फिल्म है, जिसमें निर्देशक पवन कुमार शर्मा ने मशीनीकरण और आधुनिकीकरण की अंधी होड़ में पहाड़ों, विशेषकर हिमाचल प्रदेश में वनों की हो रही अंधाधुंध कटान एवं ज़रा सी असावधानी के कारण जंगलों में लग रही आग की समस्या पर प्रकाश डाला है। इस फिल्म में वृक्षों के कटने से हिमाचल प्रदेश की जलवायु में हो रहे बदलावों को एक वनरक्षक महसूस करता है और प्रकृति के संरक्षण के लिए आखिरी सांस तक लड़ता है। ‘शेरनी’ विद्या बालन की फिल्म है, जिसमें वन्यजीवों, विशेषकर बाघों के संरक्षण पर बात की गई है। यह फिल्म शिकारियों, नेताओं तथा अधिकारियों के अपवित्र गठजोड़ एवं मीडिया की निराशाजनक भूमिका को केंद्र में रखकर एक शेरनी और उसके दो शावकों को मरने से बचाने के लिए किए गए संघर्ष की कथा कहती है। इस फिल्म में बताया गया है कि मनुष्य के अंतहीन लालच के कारण किस प्रकार वन्यजीवों के चरागाह और रहवास तेज़ी से घटते जा रहे हैं और उन्हें भोजन के लिए मानव बस्तियों में आना पड़ रहा है, जो मनुष्यों तथा पशुओं दोनों के लिए ही खतरनाक है।

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इसके अतिरिक्त बीते 18 वर्षों से शेखर कपूर की बहुप्रचारित फिल्म ‘पानी’ भी बनने की बाट जोह रही है, जो पानी की समस्या पर केंद्रित होगी।

वन विभाग की सच्ची घटनाओं पर आधारित ‘एलीफेंट व्हिस्पर्स’ वृत्तचित्र ने गत वर्ष सर्वश्रेष्ठ वृत्तचित्र का अकादमी का ऑस्कर अवार्ड जीतने में कामयाब रही थी। इसमें परिवार से बिछड़े हाथी के बच्चे और वन विभाग के कर्मचारी के बीच के भावनात्मक जुड़ाव को दिखाने में सफल रही थी।
वेबसीरीज़ की दुनिया में नज़र दौड़ाएं तो सन 2019 में प्रदर्शित ‘द फैमिली मैन के पहले सीज़न के अंतिम भाग में पाकिस्तानी आतंकवादियों द्वारा दिल्ली में एक फैक्ट्री से ज़हरीली गैस छोड़े जाने की घटना दिखाई गई है, जिसे सन 2021 में प्रदर्शित इसके दूसरे सीज़न में बेहद हल्के-फुल्के ढंग से निपटाकर इसका पटाक्षेप कर दिया गया है। अतः इस घटना को इस सीरीज़ की प्रधान पर्यावरणीय चिंता की कथावस्तु नहीं माना जा सकता| इसके अतिरिक्त वर्ष 2019 में ही एक अन्य वेब सीरीज़ ‘हवा बदले हस्सू’ प्रदर्शित हुई थी, जिसमें पर्यावरण संरक्षण के लिए जीवन शैली में बदलाव की वकालत की गई है और प्रकृति से तादात्म्य स्थापित करने के लिए लोगों को जागरूक किया गया है।

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निर्देशक सप्तराज और शिवा ने जलवायु परिवर्तन और विज्ञान थ्रिलर का मसाला इस सीरीज़ में इतनी कुशलता से मिश्रित किया है कि गेल इण्डिया के सहयोग से निर्मित यह सीरीज़ अपने जलवायुविक संरक्षण के संदेश को प्रसारित करने में सफल सिद्ध होती है। फिल्मकार नीलमाधव पांडा ने भी हाल ही में पर्यावरण संरक्षण पर एक वेबसीरीज़ बनाने की घोषणा की है।
इनके अलावा बीते कुछ वर्षों में पर्यावरण संरक्षण को केंद्र में रखकर अनेक वृत्तचित्र बनाए गए हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शोहरत बटोरी है। साल 2019 में नई दिल्ली मे आयोजित हुए सीएमएस फिल्म फेस्टिवल की थीम ‘हिमालय’ थी, जिसमें 60 देशों की एक हजार से अधिक फिल्मों में से 77 को प्रदर्शन हेतु चुना गया था। इसी वर्ष निर्मित ‘शिखर से पुकार’ वृत्तचित्र जल संरक्षण और माउंट एवरेस्ट पर बढ़ रहे प्रदूषण की कथावस्तु पर आधारित था। साल 2019 में ही स्टोरी ऑफ प्लास्टिक’ वृत्तचित्र प्रदर्शित हुआ था, जिसमें प्लास्टिक का मनुष्य के स्वास्थ्य पर पड़ रहा दुष्प्रभाव दिखाया गया था।
वर्ष 2021 में राहुल जैन द्वारा निर्मित वृत्तचित्र ‘इनविजिबल डीमन्स’ दिल्ली में सूक्ष्म कणों के कारण फैल रहे वायु प्रदूषण पर आधारित है। दिल्ली तथा इसके आसपास के क्षेत्रों मे विगत कुछ वर्षों में बढ़ते स्मॉग की भयावहता को यह वृत्तचित्र स्थिर चित्रों एवं सचल चित्रों के माध्यम से महसूस कराने में सफल रहा है। इस वृत्तचित्र को अमेरिकी फिल्म ‘स्टीलवाटर’, फ्रांसीसी फिल्म ‘द क्रूसेड’ तथा वृत्तचित्रों ‘अबव वाटर’, ‘एनीमल’, आइ एम सो सॉरी’, ‘बिगर दैन यूएस’ और ‘ला पैन्थर डेस नी’ के साथ 06 से 17 जुलाई 2021 के मध्य आयोजित होने वाले केन्स फिल्म फेस्टिवल में प्रदर्शन हेतु चुना गया था। सन 2022 में आई ‘शेरदिल: द पीलीभीत सागा’ फिल्म में जंगल में एक शेर को हत्या किए जाने के बाद मुआवजा हासिल करने की लड़ाई लड़ता है। इसी साल प्रदर्शित कन्नड़ मूल की हिन्दी तथा अनेक भाषाओं अनूदित फिल्म ‘कांतारा’ में जंगल से उजाड़े गए आदिवासियों की अपनी जमीन को पुनः हासिल करने की लड़ाई दर्शाई गई है।
इसी विषय पर गत वर्ष नेटफ्लिक्स पर ‘द रेलवे मेन’ शीर्षक से वेबसीरीज प्रदर्शित हुई थी, जिसमेें भोपाल में मिक गैस के रिसाव के बाद रेल अधिकारियों और आम जनता द्वारा लोगों की जान बचाने के लिए की गई जद्दोजहद का लोमहर्षक चित्रण किया गया था। पिछले साल ही प्रदर्शित ‘जोरम’ फिल्म में प्रकृति की कीमत पर विकास के ज़रूरी विषय को उठाया गया था। इसी साल आई फिल्म ‘फुकरे-3’ हँसी-हँसी में दिल्ली में पानी की समस्या और टैंकर माफिया कल्चर को दिखाती है। जनवरी 2023 में आई ‘ लकड़बग्घा’ फिल्म एक्शन फिल्म थी, जिसमें एक लकड़बग्घे को बचाने की कहानी वर्णित की गई है। नवम्बर 2023 में रिलीज़ ‘द आर्चीज’ में लोगों को एक पार्क की हरियाली को बचाने के लिए संघर्ष करते दिखाया गया है। साल 2023 में ही प्रदर्शित हुई ‘आज़ादी के लिए’ फिल्म में कंक्रीट के जंगलों के फैलाव से होने वाले नुकसान की चर्चा की गई है।

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स्पष्ट है कि हिन्दी फिल्म और वेबसीरीज़ की दुनिया में पर्यावरण संरक्षण जैसे ज़रूरी विषय पर फिल्म बनाने में अभी हिचक बरकरार है क्योंकि अधिकांश फिल्मकार इसे गौण कथा के तौर पर जोड़कर आगे बढ़ जाते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि पर्यावरण संरक्षण तथा जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दे पर बना सिनेमा या वेबसीरीज़ अपनी लागत नहीं निकाल सकेगा, किन्तु वे यह भूल जाते हैं कि भारतीय पर्यावरणीय मुद्दे पर वर्ष 2009 में बनी ‘अवतार’ जैसी फिल्म को भारत समेत पूरी दुनिया में बेहद पसंद किया जाता है और यह फिल्म ‘टाइटेनिक’ को पीछे छोड़कर दुनिया की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म बन जाती है| अतः आवश्यक है कि हिन्दी फिल्मकार सिनेमा, टीवी धारावाहिक, वेबसीरीज़, शॉर्ट फिल्म तथा वृत्तचित्र आदि विधाओं के माध्यम से पर्यावरण के क्षेत्र में मानव द्वारा किए गए गैरज़रूरी दखल की देश-दुनिया में फैली असंख्य कहानियों को परदे पर उकेरें और दर्शकों को पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक करने की अपनी सामाजिक जिम्मेदारी का निर्वहन करें, ताकि हम सब स्वस्थ पृथ्वी, आरोग्यप्रदायक वनस्पतियाँ, निर्मल जल, स्वच्छ हवा, स्वच्छ अंतरिक्ष और स्वच्छ वातावरण आने वाली पीढ़ी को सफलतापूर्वक सौंप सकें।

(प्रो. पुनीत बिसारिया बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय, झाँसी में हिंदी के प्रोफेसर हैं और फिल्मों पर लिखने के लिए जाने जाते हैं। वे  द फिल्म फाउंडेशन ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं तथा गोल्डेन पीकॉक इंटरनेशनल फिल्म प्रोडक्शंस एलएलपी के नाम के फिल्म प्रोडक्शन हाउस के सीईओ हैं।)

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