Namvar Singh आलोचना को साहित्य की मुख्यधारा में लेकर आए

इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के कला निधि विभाग ने ‘प्रो. नामवर सिंह(Namvar Singh) स्मारक व्याख्यान’ का आयोजन किया, जिसका विषय था- ‘नामवर का होना और न होना’। व्याख्यान के मुख्य वक्ता थे दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व सम कुलपति प्रो. सुधीश पचौरी और अध्यक्षता की आईजीएनसीए के अध्यक्ष श्री राम बहादुर राय ने। अतिथियों का परिचय दिया डीन (प्रशासन) व कला निधि के विभागाध्यक्ष प्रो. रमेश चंद्र गौड़ ने।

Written By : देव कुमार पुखराज | Updated on: July 29, 2024 10:18 pm

इस अवसर पर आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी भी उपस्थित थे। इसी आयोजन में नामवर सिंह कृत पुस्तक ‘हिन्दी कविता की परम्परा’ का लोकार्पण भी किया गया। वाणी प्रकाशन से आई इस पुस्तक के संकलनकर्ता हैं नामवर सिंह जी के पुत्र श्री विजय प्रकाश सिंह।

Namvar Singh पर  सुधीश पचौरी ने क्या कहा

नामवर सिंह(Namvar Singh) पर अपने विचार व्यक्त करते हुए प्रो. सुधीश पचौरी ने कहा कि विचार को लेकर हम लोग अटके रहते थे, लेकिन नामवर सिंह(Namvar Singh) अटकते नहीं थे। वे सुलझाकर, रास्ते बनाकर चलते थे, लेकिन अपनी बुनियादी जमीन नहीं छोड़ते थे। उन्होंने नामवर सिंह जी से अपनी मुकालातों और सम्बंधों के कई संस्मरण भी साझा किए। इसी क्रम में उन्होंने नामवर सिंह की पत्नी से जुड़ा एक संस्मरण भी सुनाया। प्रो. सुधीश पचौरी ने कहा, नामवर सिंह जैसा पढ़ने-लिखने वाला व्यक्ति कोई नहीं था, उनमें ज्ञान की पिपासा थी। उन जैसा जागरूक व्यक्ति कोई नहीं था। उनकी बहुत याद आती है। अब उन जैसा कोई वक्ता हिन्दी साहित्य में नहीं है। श्रोता भी नहीं है। उनके समकालीन आलोचक उनसे पीछे छूट गए। नामवर सिंह हिन्दी साहित्य के अमिताभ बच्चन हैं। उन जैसा कोई नहीं बन सका। वे आंखों में आंखें डालकर बात करते थे।

प्रो. सुधीश पचौरी ने यह भी कहा कि नामवर जी आलोचना को साहित्य की मुख्यधारा में लेकर आए, उनके पहले हिन्दी साहित्य में केवल दो विधाएं थीं- कविता और कहानी। नामवर जी का न होना हम सब के लिए नुकसान है। वह हिन्दी के अंतिम आलोचक थे।

श्री रामबहादुर राय ने क्या कहा

अध्यक्षीय भाषण देते हुए श्री रामबहादुर राय ने कहा, नामवर सिंह जी ने आलोचना को समालोचना में बदला। समालोचना का मतलब है सम्यक आलोचना। वह आहार में सम्यक थे (ज्यादा नहीं खाते थे), व्यवहार में सम्यक थे और विचार में भी सम्यक थे। वह बातों-बातों में ऊंची बात समझा देते थे, ऐसी सामर्थ्य उनमें थी। नामवर सिंह पूरी ज़िंदगी ज़ंजीरों को तोड़ते रहे। श्री रामबहादुर राय ने यह भी प्रस्ताव रखा कि दो वर्ष बाद नामवर सिंह की जन्मशती है, उसकी तैयारी हम सब को मिल कर करनी चाहिए।
‘हिन्दी कविता की परम्परा’ पुस्तक के लोकार्पण के बाद विजय प्रकाश सिंह ने इस पुस्तक के बारे में बताया और कहा कि उनके पिता सरस्वती पुत्र थे। इस अवसर पर वाणी प्रकाशन के अध्यक्ष श्री अरुण माहेश्वरी ने भी नामवर सिंह को आत्मीयता से याद किया। कार्यक्रम का संचालन श्रीमती विनीता ने किया।

 

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