हास्य-व्यंग्य : खाइये और पचाइये पनौती की दावत

पनौती के घर ढोल बजा तो साहित्य में सूचीबद्ध कई शब्दों को टेंशन हो गया। स्वभाविक भी था। जिस शब्द की आज तक न कोई इज्जत थी, न रुतबा था, उसकी तूती कैसे बोलने लगी। यहां तक कि पनौती शब्द को तो किसी शब्द कोष में भी जगह नहीं मिली। व्याकरण की बात तो छोड़ ही दीजिए। इतना गयागुजरा शब्द जो आज तक हमसे आंख मिलाने का साहस नहीं कर सका उसके घर ढोल बज रहा। मंगल गीत गाये जा रहे। अशुभ, मनहूस, बोतल, ढक्कन, दुर्भाग्य, बदनसीब, कर्मजला जैसे तमाम नकारात्मक शब्द पनौती के विरुद्ध गोलबंद हो गये। कामबिगाड़ू की अध्यक्षता में इमर्जेंसी मीटिंग हुई। पनौती शब्द की बढ़ती लोकप्रियता को रोकने के लिए गर्मजोशी के साथ बहस शुरू हुई।

राजनीतिक हास्य-व्यंग्य दिलीप कुमार ओझा की कलम से
Written By : दिलीप कुमार ओझा | Updated on: November 4, 2024 10:25 pm

मनहूस शब्द ने कहा- पनौती शब्द न किसी व्याकरण की किताब में है, न धर्म ग्रंथ में है, न ही किसी हिंदी की डिक्शनरी में ही है। आज तक किसी का उपहास करने के लिए हममें से ही किसी शब्द का इस्तेमाल होता रहा है। भाग्यशाली शब्द के विपरितार्थक भी अब तक किसी ने पनौती शब्द का इस्तेमाल नहीं किया। अब अचानक यह अकेले हम जैसे दर्जनों नकारात्मक शब्दों पर भारी पड़ने लगा है। अचानक यह कैसे हो गया कि हमारी रौनक वह लूट ले गया?

अब अशुभ शब्द ने बात आगे बढ़ाई। कहा, गुजरात में गिल्ली- डंडा का फाइनल मैच होने वाला था। मुखिया जी के जाने का भी कार्यक्रम था लेकिन ऐन वक्त पर लठबंधन के लोगों ने पनौती की लाठी चला दी। मजाक ही किया था- मुखिया जी पनौती हैं, जायेंगे तो अपनी टीम हार जाएगी। टीम के हारते ही यही मजाक सीरियस होता गया। अब तो हालत यह कि हमलोगों का कोई नामलेवा नहीं बचा है।

फेसबुक, ट्वीटर, यूट्यूब, इंस्टाग्राम सहित तमाम सोशल मीडिया पर पनौती ट्रेंड करने लगा है। अब जिस किसी को भाग्यहीन, मनहूस, कर्मजला कहना होता तो लोग उसको पनौती कहने लगे हैं। मुखिया जी के लोगों ने आईटी सेल वालों को इसकी काट खोजने के लिए भी कहा लेकिन उनकी बुद्धि भी घास चरने चली गयी। फिर यह मान लिया गया कि धीरे- धीरे यह मामला अपने आप ठंडा हो जाएगा।

मीटिंग में भाग्यहीन ने सवाल उठाया- जब पनौती शब्द किसी किताब में है ही नहीं तो लोग बोल क्यों रहे हैं ? न यह कोई सूचीबद्ध शब्द है, न इसका कोई अर्थ है तो बिना वजह इसके उपयोग का मतलब क्या है ? मनहूस ने जवाब दिया- लोकभाषा का शब्द है। इसका मतलब भी मनहूस ही होता है। लोकभाषा का असर साहित्य पर हमेशा भारी रहा है। साहित्यिक शब्दों को लोग समझे या नहीं लोकभाषा की बात तुरंत समझ लेते हैं। पनौती शब्द को हमें हल्के में नहीं लेना चाहिए। अगर इसका प्रचलन बढ़ा तो हम सबका अस्तित्व ही मिट जाएगा।

यह मामला तो ठंडा हो चुका था फिर कैसे उबलने लगा ? कर्मजला ने जवाब दिया- अरे लठबंधन के पोस्टर ब्वाय पंडित क्वांरे ने राजस्थान की एक सभा में मुखियाजी के लिए दोबारा पनौती शब्द का उपयोग कर डाला। उसके बाद से तो यह शब्द ऐसा ट्रेंड किया कि 24 घंटे में एक करोड़ 90 लाख लोग इसका उपयोग सोशल मीडिया पर कर चुके हैं। असाधारण। हैरान करने वाला आंकड़ा।

तभी दरवाजे पर ठक..ठक की आवाज आई। कौन आ गया, दरवाजा खोलो। दरवाजा खुला। सबकी आंखें खुली की खुली रह गईं। सामने पनौती खड़ा था। चेहरा विश्व विजेता की तरह दमक रहा था। उसके हाथ में आमंत्रण पत्र था। वह मुस्कुराया और बोला- मेरे घर दावत है। आप सब आइयेगा। मनहूस ने पूछा- किस बात की दावत ? उसने कहा- पहली बार मतदान महासभा ने लठबंधन के नवनिर्वाचित नेता को पनौती बोलने पर नोटिस भेजा है। मुझे पूरी उम्मीद है कि आगे जो भी मेरा नाम लेगा यानी पनौती का उच्चारण करेगा उस पर एफआईआर भी होगा।

ऐसा नियम जल्द आयेगा। पनौती की बात सुनकर सभी को काठ मार गया। वह चला गया। सभा में सबकी बोलती बंद थी। मनहूस ने चुप्पी तोड़ी- पनौती को अब हम रोक नहीं सकते। अच्छा होगा कि इसे नकारात्मक शब्दों की सूची में श्रेष्ठ स्थान दें और सब राजीखुशी इसकी दावत उड़ायें।

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