इम्तिहान
रश्मि का जब चौथा महीना पूरा हुआ, तब उसने अनुभव किया कि अब किसी की मदद की ज़रूरत है। अपनी माँ की दमा की बीमारी के कारण, वह मायके नहीं जा सकती थी। रात में रोहित से परामर्श कर उसने घर जाने का प्रस्ताव रखा। रोहित ने एक बार कहा भी, कि मम्मी पिछले एक साल से गठिया से पीड़ित हैं। वह अपना ख़ुद का काम नहीं कर पातीं। ऐसे में तुम्हारी तीमारदारी कैसे करेंगी? लेकिन रश्मि की ज़िद के आगे विवश होकर उसने उसे घर पहुँचा दिया।
बेटे-बहू के आते ही राधिका अपना गठिया का दर्द भूलकर उनकी आवभगत में लग गयी। रोहित, रश्मि को घर पर छोड़कर तीसरे दिन दिल्ली लौट गया। रश्मि का समय जैसे-जैसे नज़दीक आता गया, राधिका पर काम का बोझ बढ़ता गया। दिन भर वह काम में खटती और रात भर दर्द के मारे कराहती। ठण्ड के दिन शुरू होने के कारण राधिका की हालत दिनोंदिन ख़राब होती जा रही थी, लेकिन वह रश्मि को कभी कोई काम न करने देती थी।
दिसम्बर के आख़िरी हफ़्ते में रश्मि ने अस्पताल में एक सुन्दर और स्वस्थ पुत्र को जन्म दिया। रोहित भी दो दिन के लिए आकर चला गया। एक महीने बाद रोहित ने घर आकर पुत्रजन्म की बड़ी पार्टी दी और दूसरे दिन माँ को रश्मि के साथ अपनी वापसी का फ़ैसला सुना दिया। राधिका ने कहा भी कि अभी बेटा बहुत छोटा है। कुछ दिन….। रोहित ने कहा- मार्च में रश्मि का एक इम्तिहान है। उसकी तैयारी करनी होगी। बच्चे की देखभाल आया कर लेगी। राधिका ख़ुद को घसीटती हुई बेटे-बहू को बिदा करती हुए सोच रही थी- अभी उसके कितने इम्तिहान बाक़ी है ?
कहानीकार- डाॅ. राम गरीब पाण्डेय ‘विकल’
(मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी से पुरस्कृत। गीत, नवगीत, ग़ज़ल, कहानी, लघुकथा, निबन्ध, आलोचना आदि गद्य एवं पद्य की विविध विधाओं में पिछले लगभग पैंतालीस वर्षों से सक्रिय लेखन। अद्यावधि गद्य एवं पद्य की सोलह पुस्तकें प्रकाशित।)
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