अपने जीवन में हमसे भी भूलें हुई हैं और हमने सबसे माफी की उम्मीद लगाई है।अहंकार और जिद से सास बहू के रिश्ते में अलगाव आता है। बहू की शिकायत भूलकर भी बेटे से न करें वरना आपस में अविश्वास हो जाता है। बेटे के मन की शान्ति के लिए मौन रहकर बड़प्पन बनाए रखें। महारानी कैकेई द्वारा रामजी को वन भेजने पर भी माता कौशल्या अपने विशाल और प्रेम से भरे ह्रदय का परिचय देते हुए कहती हैं – रात गई बात गई कैकेई बहिन! रथ में बैठकर राम के स्वागत को चलो और कैकेई को अपने प्रेममयी ह्रदय से लिपटा लेती हैं। कौशल्या माता अधिकतर समाधि में बैठी रहती थीं। समाधि से उन्होंने अपने भीतर का कर्ता भाव और मेरा – तेरा का भाव मिटा लिया था। अगर प्रत्येक सास का ह्रदय माता कौशल्या जैसा हो जाए तो स्वर्ग यहीं है।
देह मिल जाने के बाद अज्ञानता में रहना ही माया है। युधिष्ठिर से यक्ष ने पूछा कि इस संसार का सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है ? तब युधिष्ठिर ने कहा कि अपने सामने अन्य को शमशान में जलता हुआ देखकर भी ऐसा सोचना कि मैं नहीं जलूंगा । यह सबसे बड़ा आश्चर्य है। जो माया में फंसे हैं वो मूर्ख जैसे होते हैं और सिर्फ अपने सुख की परवाह करते हैं। उन्होंने सच्चे आनंद को कभी जाना ही नहीं। माया से घिरे लोगों की संतों में और सत्संग में कोई रुचि नहीं होती। माया से छूटे न होने के कारण उनके मन में लोभ चलता है ,मोह चलता है और अहंकार चलता है। उन्हें अभी इतना प्रेम नहीं मिला जितने की उन्हें जरूरत है। इसीलिए बुद्ध ने कहा घृणा को प्रेम से मिटाओ। तुम बहुत प्रेम देते रहो।
60,70,80 की उम्र में भी चाहतों का झोला खाली है, क्योंकि मिलने की कोई कृतज्ञता नहीं है और न मिलने से भीतर ही भीतर क्रोध है, अतृप्ति है, बहुत गहरी तृष्णाओं का बुना जाल है। इसी से Tension है। मन की ऐसी बुरी हालत हो गई और मन अपनी ही सच्चाई से अनजान है। इसलिए बहुत असंतुलित है। ऐसा मन बाहर वालों के सामने तो खूब नम्रता का अभिनय कर लेता है लेकिन घर वालों के साथ खूब झगड़ा करता है। शक्ति का कितना निम्न स्तर है। उस परम शक्ति से अभी कोसों दूर है और उस परम सत्ता को छू भी नहीं सकते क्योंकि होश में नहीं रहते। “मैं” के भाव से भरा दंभी इंसान किसी की भी परवाह नहीं करता। अनित्य भाव जागृत ना होने से स्वयं को अमर मानता हुआ व्यक्ति अपने अहंकार को छोड़ नहीं पाता। घर में कलह होने के मुख्य कारण यही Tension है।
बुद्ध संबोधि प्राप्त करने के बाद जब घर आए तब उन्होंने कहा – “मेरे ज्ञान प्राप्ति में तीन लोगों का सहयोग है:-
1. मां जिसने पालन पोषण किया।
2. पिता जिन्होंने जन्म दिया।
3. मंगला काकी जिन्होंने मुझे संन्यासी से मिलवाया”।
मंगला काकी को बुद्ध के द्वारा माता पिता की श्रेणी में रखकर सम्मानित किए जाने से मंगला काकी अपने ह्रदय की अपार खुशी से सारे विकारों से मुक्त होकर देवी स्वरूप हो गईं। बुद्ध ने कहा – घृणा को केवल शुद्ध प्रेम से मिटाया जाता है।