किताब का हिसाब : दस्तावेज जैसा है रामचंद्र ओझा का उपन्यास ‘विषहरिया’

"पर ये साँप उसका पीछा क्यों नहीं छोड़ते?सब जगह साँप ही साँप लगता है पूर्व जन्म का सँपेरा होगा। जगह-जगह इन साँपों से बचना होता है। जमीन वाले सर्प को मात दो तो कुर्सी पर बैठा मिलेगा, कुर्सी वाले से बचो, तो वह मंदिर में देवता के रूप में मिलेगा।..और न जाने कहाँ कहाँ?"

Written By : प्रमोद कुमार झा | Updated on: September 25, 2024 3:51 pm

आत्मकथ्यात्मक शैली में लिखा गया उपन्यास ‘विषहरिया’ (vishhariya) स्वतंत्र भारत के एक पुलिस अधिकारी की दृष्टि से वर्णित उपन्यास है।आम तौर पर एक फार्मूला की तरह भारतीय पुलिस को नष्ट, भ्रष्ट और अनैतिक रूप में दिखाया जाता है।

‘विषहरिया’ का पुलिस अधिकारी देव अपने चयन, प्रशिक्षण और विशेष प्रशिक्षण के वर्णन के माध्यम से अपने अनुभव को व्यक्त करता है।कहीं कहीं बहुत छोटी बातों का सूक्ष्म वर्णन पुलिस के जीवन की असुरक्षा और कठिनाई को बहुत गंभीरता से व्यक्त किया गया है।

नहीं, ये उपन्यास कहीं भी पुलिस की नाकामियों को ढकने, ज्यादातियों को सही ठहराने का प्रयास नहीं है, न ही तथाकथित भ्रष्टाचारी पुलिस व्यवस्था को ईमानदार साबित करने की कोशिश है! यह उपन्यास का नायक देव एक तटस्थ द्रष्टा ‘बर्बरीक ‘ की तरह घटनाक्रम और दृश्यों को सामने रखता है। यों तो भारत के साहित्य जगत में बीसीयों प्रशासनिक और पुलिस अधिकारी लेखक और कवि हुए हैं पर कुछेक में ही आंतरिक व्यवस्था पर लिखने का साहस हुआ।

प्रसिद्ध भारतीय अंग्रेज़ी लेखक उपमान्यु चटर्जी के उपन्यासों की शृंखला में हिंदी उपन्यास ‘विषहरिया’ को भी रखा जा सकता है।। प्रसिद्ध हिंदी उपन्यासकार संजीव के चंपारण के कुख्यात डाकुओं पर लिखे उपन्यास ‘जंगल जहाँ शुरू होता है ‘ को पाठक याद करें ।

‘विषहरिया’ (vishhariya) के उपन्यासकार रामचंद्र ओझा एक पुलिस अधिकारी के रूप में वहां कार्यरत थे पर कहीं भी उन्होंने पुलिस विभाग का पक्ष लेकर कथा का वर्णन नही किया है। सत्ताईस अलग अलग खंडों में वर्णित इस उपन्यास में सभी दृष्टिकोण से सम्पूर्ण परिवेश को दिखाने का प्रयास किया गया है।

विषय और परिवेश की विशालता को देखते हुए कहीं- कहीं महसूस होता है कि वर्णन को कम शब्दों में समेटने की कोशिश की गई है। प्रायः थोड़ा और विस्तार और रोचक हो सकता था। बहुत ही सुंदर और लोकप्रिय शैली में लिखी गयी में अंत तक रोचकता बनी रहती है। एक ही बैठक में पढ़ लेने की इच्छा होती है।

आप इसके पन्नों को छोड़कर आगे बढ़ेंगे तो हो सकता है कुछ छूट जाए! लेखक रामचंद्र ओझा जी की भाषा प्रांजल है और प्रवाहमान है। उपन्यास एक कालखंड का महत्वपूर्ण दस्तावेज की तरह है जो पठनीय भी है और संग्रहणीय भी।

कृति: विषहरिया(उपन्यास), लेखक: रामचंद्र ओझा, पृष्ठ:240 मूल्य:रु.250.प्रकाशक :कुतज प्रकाशन, नई दिल्ली.

 

(पुस्तक के समीक्षक प्रमोद कुमार झा रांची दूरदर्शन केंद्र के पूर्व निदेशक हैं और कला व साहित्य के राष्ट्रीय स्तर के मर्मज्ञ हैं।)

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