महंत अवधेश दास के बाद इस सत्र में इतिहास और संस्कृति के प्रसिद्ध विद्वान ‘पद्मश्री’ भरत गुप्त ने इस मत को आगे बढ़ाते हुए कहा कि जिन संप्रदायों से मंदिर जुड़े हैं, उन्हीं संप्रदायों के लोग ही उनका प्रबंधन समुचित ढंग से कर सकते हैं।
उक्त विद्वान दूसरे दिन के प्रथम सत्र ‘भारतीय समाज में मंदिर प्रबंधन’ पर अपने मत व्यक्त कर रहे थे। तीन दिवसीय ‘अयोध्या पर्व’ इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के परिसर में चल रहा है। महंत अवधेश दास जी ने कहा कि धर्म से राजनीति का निर्धारण हो सकता है, लेकिन राजनीति धर्म का मार्ग तय नहीं कर सकती। भरत गुप्त ने कहा कि यह संयोग है कि रामजन्म भूमि के लिए एक गैर-सरकारी प्रबंध समिति गठित की गयी है। इसके विपरीत प्रायः पूरे देश में प्रसिद्ध मंदिरों पर सरकार का ही नियंत्रण है।
इस सत्र को भारतीय रेल सेवा के वरिष्ठ अधिकारी राजीव वर्मा, दिल्ली सरकार में उप महालेखा परीक्षक आशीष सिंह और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के डीन (प्रशासन) डॉ. रमेश चंद्र गौड़ ने भी संबोधित किया। अयोध्या के पूर्व सांसद लल्लू सिंह ने अतिथियों का स्वागत किया। सायं का सत्र ‘भारतीय संस्कृति के नवाचार में तुलसीदास जी का योगदान’ विषय पर केंद्रित था।
इसे हनुमन्निवास अयोध्या के श्रीमहंत मिथिलेश नंदिनी शरण जी, दिल्ली विश्वविद्य़ाल के प्रो. चंदन चौबे, कला एवं रंगमंच समीक्षक ज्योतिष जोशी, साहित्यकार उमेश प्रसाद सिंह और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के डीन (अकादमिक) प्रो. प्रतापानंद झा ने संबोधित किया। दोनों सत्रों का संचालन भारती ओझा ने किया। सायंकाल सांस्कृतिक कार्यक्रम भी हुए।
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