आम शिक्षित भारतीय महिलाओं और लेखिकाओं के साथ ये एक अलिखित नियम रहा है कि उन्हें अपने घर, परिवार और बच्चों, बुजुर्गों के देख रेख की पूरी जिम्मेदारी उठानी पड़ती है पर इस परिस्थिति में भी लेखिकाओं, कथाकारों और कवयित्रियों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है. बंगला की प्रातिष्ठित लेखिका आशापूर्णा देवी इसका सबसे महत्वपूर्ण उदाहरण है. एक विद्वान प्रतिष्ठित परिवार में जन्म लेकर उच्च शिक्षा ग्रहण कर, सारी जिम्मेदारियों का निर्वहन कर, शिक्षण कार्य करते हुए शेफालिका सिन्हा ने अपनी लेखन को भी जारी रखा. संग्रह ‘ये बड़ी बात है’ पचास पृष्ठों का संकलन है जिसमें छोटी छोटी चौंतीस कविताएं हैं.
कुछ कविताओं के शीर्षक देखिए : किसान,विदाई,पहाड़ी शहर,वक्त,विश्वास,पैमाना, ज़द्दोज़हद, इंतज़ार, बेकरार, सोच, मौसम, ज़िंदा लाश, नदी और बारिश की बूंदें इत्यादि. ‘किसान’ कविता की कुछ पंक्तियाँ देखिये : “खाने को अन्न मिले/तन पर वसन हो/बारिश की बूंदें ही/ इनकी जान हैं/क्योंकि ये हाशिये पर/रहने वाले किसान हैं।” शेफालिका बहुत साधारण ,सरल आम बोलचाल की भाषा में अपनी कविता कहती हैं. एक बिल्कुल दूसरे धरातल की कविता है “भाव”.देखिए इसकी पंक्तियां कैसे अपनी बात कहती हैं: ” सौंदर्य चेहरे का/कुत्सित भावों से/ ढंक जाता है/ क्योंकि/मस्तिष्क में/ चलने वाला भाव/विचारों के रूप में/ बाहर निकल आता है।”
शेफालिका की कविताओं में जीवन और जीवन की विसंगतियाँ ही मुख्य भाव हैं. इनकी भाषा प्रांजल है और शब्द विन्यास तो बहुत प्रभावशाली हैं. कवियित्री ने कविताओं को विस्तार देने में कदाचित कोताही बरसी है. और भी कविताओं का समावेश किया जाता तो बेहतर था. पुस्तक की छपाई बहुत उत्तम है .संग्रह पठनीय है और नई सदी की कविताओं का एक प्रतिनिधि संग्रह मान सकते हैं.
संग्रह : ये बड़ी बात है’ , कवयित्री : शेफालिका सिन्हा , पृष्ठ: 50, प्रकाशक: Xpress Publishing (Notion Press).

(प्रमोद कुमार झा तीन दशक से अधिक समय तक आकाशवाणी और दूरदर्शन के वरिष्ठ पदों पर कार्यरत रहे. एक चर्चित अनुवादक और हिन्दी, अंग्रेजी, मैथिली के लेखक, आलोचक और कला-संस्कृति-साहित्य पर स्तंभकार हैं।)
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